Kavita: मेरी मां को

मेरी मां को तस्वीर के लिए मुस्कुराना नहीं आता मैं जैसे ही खोलती हूं कैमरा वो झेंपने लगती हैं शर्माती हैं आठवीं कक्षा की लड़की सी दो तीन बार पल्लू…

Kavita: मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था

मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था एक क़तरा भी नहीं मिला मुझे ख्वाहिश थी खुद को ढूंढ लाने की फिर आइना भी, टूटा मिला मुझे ना मिलता तू तो जब्त…

Kavita: अब बदलने वाला होगा बहुत कुछ

अब बदलने वाला होगा बहुत कुछ तुम मिलोगे कुछ नये लोगों से बहुत कुछ पीछे रह जाएगा। शायद कुछ ही ऐसे रिश्ते होंगे या यूं कहें कि कुछ यादें जो…

Kavita: सड़कों पर लावारिस मौत

सड़कों पर लावारिस मौत, मरते जानवर, घरों के अंदर हिंसा और अलगाव झेलते वृद्ध। खत्म होते हुए गिद्ध और गिद्ध बनते आदमी, अंधा कानून और कानून से अंधा बनाती सरकारें।…

Kavita: मैं इस घर से प्रेम करता हूँ

मैं इस घर से प्रेम करता हूँ इस टूटे-फूटे और पुराने घर से जिसकी मिट्टी सुदूर मैदानों से खोदकर लाई गई थी बैलगाड़ियों में कभी पिता के ज़माने में प्रेम…

Poem: सबसे भारी क्या है?

सबसे भारी क्या है? पर्वत पहाड़ या दर्द से भारी मन, नहीं! सबसे भारी है माथे का वो घूंघट जिसमें संस्करों के नाम पर पिघल जाती हैं कितनी ही कलाएँ,…

Kavita: माँ सुबह का सूरज होती है

माँ भोर में उठती है कि माँ के उठने से भोर होती है ये हम कभी नहीं जान पाये। बरामदे के घोसले में बच्चों संग चहचहाती गौरैया माँ को जगाती…

Poetry: इतनी क्यों जलती है तुम्हारी तशरीफ

वो खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाये तो तकलीफ वो सैनिकों का हौंसला बढ़ाये तो तकलीफ। इतनी क्यों जलती है तुम्हारी तशरीफ? वो देश का मान बढ़ाये तो तकलीफ वो देश को…