अब बदलने वाला होगा बहुत कुछ
तुम मिलोगे कुछ नये लोगों से
बहुत कुछ पीछे रह जाएगा।

शायद कुछ ही ऐसे रिश्ते होंगे
या यूं कहें कि कुछ यादें जो
तुम्हे हर पल पीछे खींच रही होंगी
तुम चाहोगे उन यादों को सहेजना।

पर तुम्हारी हर कोशिश नाकाम हो रही होगी
न चाहकर भी तुम कुछ नहीं सहेज पाओगे
तुम्हारे अंतर्मन में कुछ असहजता रहेगी
पीछे जो जा रहा है उसे समेटने की ओर।

आगे जो है उसे थामने की
इस अंतर्मन के द्वंद में तुम्हें
स्वयं को थामे रखना कठिन होगा
बस इसी द्वंद से तुम्हे सुलझाना है स्वयं को
खुद को उलझने से बचाने के लिए।

-वैद्य शुभम मंगल

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