Kahani: एक गांव में एक बहुत बड़ा धनवान व्यक्ति रहता था। लोग उसे सेठ धनीराम कहते थे। उस सेठ के पास प्रचुर मात्रा में धन संपत्ति थी, जिसके कारण उसके सगे-संबंधी, रिश्तेदार, भाई-बहन हमेशा उसे घेरे रहते थे। वे उन्हीं के राग अलापते रहते थे। सेठ भी उन सभी लोगों की काफी मदद करता था। तभी अचानक कुछ समय बाद सेठ को भंयकर रोग लग गया।

इस भयंकर बीमारी का सेठ ने बहुत उपचार करवाया, लेकिन इसका इलाज नहीं हो सका। आख़िरकार सेठ की मृत्यु हो गई। यमदूत उस सेठ को अपने साथ ले जाने के लिए आ गए, जैसे ही यमदूत सेठ को ले जाने लगे तभी सेठ थोड़ी दूर जाकर यमदूतों से प्रार्थना करने लगा कि “मुझे थोड़ा सा समय दे दो, मैं लौटकर तुरंत आता हूँ”, दूतों ने उसे अनुमति दे दी।

सेठ लौटकर आया, चारों ओर नज़रे घुमायीं और वापस यमदूतों के पास आकर बोला- “शीघ्र चलिए” यमदूत उसे इस प्रकार अपने साथ चलने के लिए तैयार देखकर चकित रह गए और सेठ से इसका कारण पूछा। सेठ ने निराशा भरे स्वरों में कहा- “मैंने हेराफेरी करके अपार धन एकत्रित किया था। लोगों को खूब खिलाया-पिलाया और उनकी बहुत मदद भी की। सोचा था कि वो मेरा साथ कभी नहीं छोडेंगे। अब जब मैं इस दुनिया को सदा के लिए छोड़ कर जा रहा हूँ, तो वे सब बदल गए हैं। मेरे लिए दुखी होने के बजाय, ये अभी से मेरी संपत्ति को बांटने की योजना बनाने लगे हैं, किसी को मेरे लिए जरा-सा भी अफसोस नहीं है।

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सेठ की बात सुनकर यमदूत बोले- “इस संसार में प्राणी अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है। इंसान जो भी अच्छा या बुरा कर्म करता है उसे इसका परिणाम स्वयं ही भुगतना पड़ता है। हर प्राणी इस सत्य को समझता तो है पर देर से।

शिक्षा: हम इस बात को अपने जीवन में भी देख रहे हैं। लोग जीवन के सत्य को भूलकर मानव द्वारा बनाए गए जाल जैसे लालच, रूपए-पैसा, बुराई आदि तले दब गए हैं।

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