Prerak Katha: यह कहानी संत के ज्ञान को दर्शाने वाली कथा है, क्योंकि हमेशा ही ये माना जाता है की संत, गुरु, साधु और मुनि महाराज के पास उन सभी सांसारिक समस्याओं का तुरंत हल मिल जाता है, जिसके बारे में लोग हमेशा से ही परेशान रहते हैं। समाज में साधू, संत, गुरु और मुनि ही हर समस्या की एक मात्र चाबी माने जाते रहे है। यह सही भी है की इनके पास जाने मात्र से ही हमारे मन को शांति प्राप्त हो जाती है। इनके दो सांत्वना भरे बोल या ज्ञान बढ़ाने वाले शब्द जब हमारे कान में जाते है, तो जेसे अन्दर तक आत्मा को ठंडक पहुंचती है।

एक बार गोमल सेठ अपनी दुकान पर बेठे थे। दोपहर का समय था इसलिए कोई ग्राहक भी नहीं था, तो वो थोड़ा सुस्ताने लगे। इतने में ही एक संत भिक्षुक भिक्षा लेने के लिए दुकान पर आ पहुंचे। और सेठ जी को आवाज लगाई कुछ देने के लिए। सेठजी ने देखा कि इस समय कौन आया है? जब उठकर देखा तो एक संत याचना कर रहा था। सेठ बड़ा ही दयालु था वह तुरंत उठा और दान देने के लिए कटोरी चावल बोरी में से निकाला और संत के पास आकर उनको चावल दे दिया। संत ने सेठ जी को खूख आशीर्वाद दिया।

तब सेठजी ने संत से हाथ जोड़कर बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि हे गुरुजन आपको मेरा प्रणाम। मैं आपसे अपने मन में उठी शंका का समाधान पूछना चाहता हूँ। संत ने कहा कि जरूर पूछो- तब सेठ जी ने कहा कि लोग आपस में लड़ते क्यों हैं? संत ने सेठजी के इतना पूछते ही शांत स्वभाव और वाणी में कहा कि सेठ मैं तुम्हारे पास भिक्षा लेने के लिए आया हूँ। तुम्हारे इस प्रकार के मूर्खता पूर्वक सवालों के जवाब देने नहीं आया हूँ। संत के मुख से इतना सुनते ही सेठ जी को क्रोध आ गया और मन में सोचने लगे की यह कैसा घमंडी और असभ्य संत है?

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ये तो बड़ा ही कृतघ्न है। एक तरफ मैंने इनको दान दिया और ये मेरे को ही इस प्रकार की बात बोल रहे है। इनकी इतनी हिम्मत। ये सोच कर सेठजी को बहुत ही गुस्सा आ गया और वो काफी देर तक उस संत को खरी खोटी सुनाते रहे। और जब अपने मन की पूरी भड़ास निकाल चुके तब कुछ शांत हुए। तक संत ने बड़े ही शांत और स्थिर भाव से कहा कि जैसे ही मैंने कुछ बोला आपको गुस्सा आ गया और आप गुस्से से भर गए और जोर जोर से बोलने और चिल्लाने लगे। वास्तव में केवल विवेकहीनता ही सभी झगड़े का मूल होता है। यदि सभी लोग विवेकी हो जाये तो अपने गुस्से पर काबू रख सकेंगे। हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना सीख जाये तो दुनिया में झगडे ही कभी न होंगे।

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