सुमित मेहता

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का मतदान नजदीक है। राजनीतिक पार्टियों की तरफ से उम्मीदवारों का ऐलान लगातार किया जा रहा है। वहीं गोंडा जनपद के कैसरगंज लोकसभा सीट बीजेपी प्रत्याशी पर सबकी निगाहें अटकी हुई हैं। बीजेपी भी इस बार कैसगंज लोकसभा सीट पर बृजभूषण शरण सिंह को लेकर काफी उलझ गई है। एक तरफ नैतिकता है तो दूसरी तरफ जीत। बृजभूषण शरण सिंह के बहाने बीजेपी को घेरने वाले दल इस सीट पर सारे राजनीतिक हथकंडे अपना रहे हैं। बता दें कि वर्ष 2009 से बृजभूषण शरण सिंह कैसगंज सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। यहां से उन्हें शिकस्त दे पाना आसान बात नहीं है। बीजेपी के साथ विपक्ष भी इस बात का जानता है। शायद यही वजह है कि बृजभूषण सिंह के बहाने बीजेपी को घेरने वाले दलों को भी उनके शरण में हैं और बृजभूषण शरण सिंह को अपने पाले में लाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

कैसरगंज लोकसभा सीट पर बीजेपी के साथ सपा और बसपा ने भी अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। सपा-बसपा इसी ताक में हैं कि बीजेपी अगर बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटती है, तो उन्हें प्रत्याशी बनाने का इनको मौका मिल जाएगा। वहीं राजनीति सूत्रों की मानें तो बीजेपी चुनाव जीतने के लिए लड़ती है और वह कोई भी ऐसा फैसला नहीं लेगी जो आत्मघाती हो। ऐसे में माना जा रहा है, देर से ही सही कैसरगंज सीट से बृजभूषण शरण सिंह ही बीजेपी प्रत्याशी होंगे। फिलहाल उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट पर सभी की नजरे हैं। इस सीट पर पांचवें चरण यानी 20 मई को मतदान होने हैं।

गौरतलब है कि बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने वर्ष 2009 में पहली बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर कैसरगंज की सीट पर जीत दर्ज की थी। लेकिन 2014 में वह बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद 2019 में भी इस सीट पर उन्होंने जीत दर्ज की। बता दें कि बृजभूषण शरण सिंह का कैसरगंज में दबदबा है। 2009 में उन्होंने 45,974 वोटों से जीत दर्ज की थी। जबकि 2014 में 78,218 और 2019 में जीत का अंतर 2,61,601 रहा। यानी हर बार बृजभूषण सिंह अपनी लोकसभा सीट पर मजबूत होते गए।

कैसरगंज सीट पर सपा और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर है। सपा के वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने 1996, 1998, 1999 और 2004 में कैसरगंज सीट पर जीत दर्ज की। वहीं 2009 से बृजभूषण शरण सिंह लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। बात की जाए कांग्रेस की तो 1984 में राणा वीर सिंह पार्टी के आखिरी सांसद थे, जिन्होंने कैसरगंज से जीत दर्ज की थी, उसके बाद से इस पर सपा और बीजेपी का ही कब्ज़ा है।

जातीय समीकरण पर नजर दौड़ाएं, तो कैसरगंज लोकसभा सीट पर 18.80 लाख मतदाता है, जिसमें महिलाएं 8.84 लाख और 9.96 लाख पुरुष हैं। कैसरगंज की तीन विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण मतदाता ज्यादा हैं, जबकि कुछ इलाकों में राजपूत वोटरों की संख्या ज्यादा है। वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक, कैसरगंज में 3 लाख से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। सूत्रों का कहना है कि, बीजेपी चाहती है कि बृजभूषण शरण सिंह अब चुनाव न लड़े। वहीं बृजभूषण सिंह चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं। बीजेपी की केंद्रीय नेतृत्व की नजरें एमपी-एमएलए कोर्ट दिल्ली के फैसले पर है। क्योंकि महिला पहलवानों से विवाद के मामले में अंतिम सुनवाई होने वाली है और माना जा रहा है कि जल्द ही इस मामले में फैसला भी आ जाएगा।

एक सच यह भी है कि, पूर्वांचल की राजनीति में बृजभूषण सिंह की अच्छी पकड़ है। उनकी छवि कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर है। वो कैसरगंज के अलावा गोंडा, बलरामपुर के भी सांसद रहे हैं। ठाकुर बिरादरी में उनकी पैठ है, तो वहीं ओबीसी वोटर्स पर भी उनकी पकड़ है। ऐसे में बीजेपी ने अगर बृजभूषण सिंह को नाराज किया, तो सिर्फ कैसरगंज में नहीं बल्कि गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, बलरामपुर और श्रावस्ती में भी पार्टी उम्मीदवार के लिए चुनाव में परेशानी बढ़ जाएगी।

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