प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी
प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी

2014 के बाद एक आत्मविश्वास हर भारतवासी में आया है, जो कुछ समय पहले तक अवसाद और निराशा से घिरा था। भरोसा जगाने वाला यह समय हमें जगा कर कुछ कह गया और लोग राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका को रेखांकित और पुनःपरिभाषित करने लगे। ‘इस देश का कुछ नहीं हो सकता’ से ‘यह देश सब कुछ कर सकता है’ तक हम पहुंचे हैं। यह आकांक्षावान भारत है, उम्मीदों से भरा भारत है, अपने सपनों की ओर दौड़ लगाता भारत है। लक्ष्यनिष्ठ भारत है, कर्तव्यनिष्ठ भारत है। यह सिर्फ अधिकारों के लिए लड़ने वाला नहीं, बल्कि कर्तव्यबोध से भरा भारत है।

सही मायनों में यह भारत का समय है। भारत में बैठकर शायद कम महसूस हो, किंतु दुनिया के ताकतवर देशों में जाकर भारत की शक्ति और उसके बारे में की जा रही बातें महसूस की जा सकती हैं। सांप-संपेरों के देश की कहानियां अब पुरानी बातें हैं। भारत पांचवीं बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में विश्व मंच पर अपनी गाथा स्वयं कह रहा है। अर्थव्यवस्था, भू-राजनीति, कूटनीति, डिजिटलीकरण से लेकर मनोरंजन के मंच पर सफलता की कहानियां कह रहा है। सबसे ज्यादा आबादी के साथ हम सर्वाधिक संभावनाओं वाले देश भी बन गए हैं, जिसकी क्षमताओं का दोहन होना अभी शेष है।

भारत के एक अरब लोग नौजवान यानी 35 साल से कम आयु के हैं। स्टार्टअप इकोसिस्टम, जलवायु परिवर्तन के लिए किए जा रहे प्रयासों, कोविड के विरुद्ध जुटाई गई व्यवस्थाएं, जी 20 के अध्यक्ष के नाते मिले अवसर, जीवंत लोकतंत्र, स्वतंत्र मीडिया हमें खास बनाते हैं। चुनौतियों से जूझने की क्षमता भारत दिखा चुका है। संकटों से पार पाने की संकल्प शक्ति वह व्यक्त कर चुका है। अब बात है उसके सर्वश्रेष्ठ होने की। अव्वल होने की। दुनिया को कुछ देने की।

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नया भारत अपने सपनों में रंग भरने के लिए चल पड़ा है। भारत सरकार की विकास योजनाओं और उसके संकल्पों का चतुर्दिक असर दिखने लगा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, अटक से कटक तक उत्साह से भरे हिंदुस्तानी दिखने लगे हैं। जाति, पंथ, भाषावाद, क्षेत्रीयता की बाधाओं को तोड़ता नया भारत बुलंदियों की ओर है। नीति आयोग के पूर्व सीईओ श्री अमिताभ कांत की सुनें तो- “2070 तक हम बाकी दुनिया को 20-30 प्रतिशत वर्कफोर्स उपलब्ध करवा सकते हैं और यह बड़ा मौका है।” ऐसे अनेक विचार भारत की संभावनाओं को बता रहे हैं। अपनी अनेक जटिल समस्याओं से जूझता, उनके समाधान खोजता भारत अपना पुन: आविष्कार कर रहा है। जड़ों से जुड़े रहकर भी वह वैश्विक बनना चाहता है। उसकी सोच और यात्रा वैश्विक नागरिक गढ़ने की है। यह वैश्चिक चेतना ही उसे समावेशी, सरोकारी, आत्मीय और लोकतांत्रिक बना रही है। लोगों का स्वीकार और उनके सुख का विस्तार भारत की संस्कृति रही है। वह अतिथि देवो भवः को मानता है और आंक्राताओं का प्रतिकार भी करना जानता है। अपनी परंपरा से जुड़कर वैश्विक सुख, शांति और साफ्ट पावर का केंद्र भी बनना चाहता है।

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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