जाग रहा भारत फ़िर से हम जागें,
कर पायें सद कर्म प्रभु से यह मांगें।
पावन अतीत की थाती का गौरव ले,
स्वर्णिम भवितव्य रचायें भ्रम भागें।।

गति में मन मस्तिष्क सदा खुला रहे,
उर में मानवता का चिन्तन स्वतः वहेl
कर्तव्य पूर्ण हों स्वप्न संकल्प बद्ध हों,
कर्म कृति स्वर्णिम युग इतिहास कहेll

हो जहाँ वहाँ रचनाधर्मिता स्वर फ़ूटे,
भाग्यवाद की जमी हमारी रज छूटे।
बनें भगीरथ हम सब अपने युग के,
आलस हटे समय की जकड़न टूटे।।

विभ्रम से हो मुक्त स्वत्व को जानें,
सत्य सनातन स्वअस्मिता पहिचानें।
हम से सम्पूर्ण विश्व का मंगल होगा,
शिव संकल्प पूर्ण होगा मन में ठानें।।

– बृजेंद्र

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