Pauranik Katha: इस विषय में हमें धार्मिक ग्रंथों में अलग अलग जानकारी मिलती है। कई जगह ये कहा गया है कि सुदर्शन चक्र में कुल 1000 आरे थे। ऐसा इसीलिए है कि भगवान विष्णु ने इसे प्राप्त करने के लिए 1000 वर्षों तक, 1000 नील कमल के पुष्पों द्वारा भगवान शिव के 1000 नामों से स्तुति की थी। तब प्रसन्न होकर महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से उस महान अस्त्र को उत्पन्न किया था।

शिव पुराण में वीरभद्र और श्रीहरि के युद्ध के संदर्भ में कहा गया है कि 1000 आरों वाला वो महान अस्त्र (सुदर्शन चक्र) भयंकर प्रलयाग्नि निकालता है वीरभद्र की ओर बढ़ा किन्तु उस रुद्रावतार ने, जो बल में स्वयं रुद्र के समान ही था, उस महान अस्त्र को इस प्रकार मुख में रख लिया जैसे कोई जल को पी जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार सुदर्शन चक्र में 108 आरे थे और इसे भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को प्रदान किया था। 108 आरों का विवरण तब भी मिलता है, जब महावीर हनुमान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र को पकड़ कर अपने मुख में रख लेते हैं।

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हालांकि इस चक्र का सबसे प्रासंगिक विवरण विष्णु पुराण में मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार सुदर्शन चक्र में कुल 12 आरे थे। भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न हो महादेव उन्हें सुदर्शन चक्र देते हुए कहते है- “हे नारायण! सुदर्शन नाम का ये महान आयुध 12 आरों, 6 नाभियों एवं 2 युगों ये युक्त है। इनके 12 आरों में 12 आदित्यों का तथा 6 नाभियों में 6 ऋतुओं का वास है। अतः आप इसे लेकर निर्भय रूप से दुष्टों का संहार करें।”

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