बाहों में बल, पैरों में गति,
संकल्प अटूट हृदय में हो।
धैर्य विवेक लगन के स्वामी,
अपनत्व भाव अन्तर में हो।।

दुष्ट दलन सामर्थ्य तुम्हारी,
दृष्टि से पराभूत भयकारी।
हित रक्षक शुभ कर्मों के,
करनी है तुम को तैयारी।।

चाह राष्ट्र की आज है पुत्रों,
राम कृष्ण के बनो पुजारी।
अस्त्र, शस्त्र, शास्त्र संयम हो,
प्रकृति सम्पदा नाचे सारी।।

मैं से दूर हो जागृत प्रतिभा,
दसों दिशाओं में हो विकास।
भारत की जय गूंजे जग में,
ले सत्य सनातन का प्रकाश।।

समय आ गया द्वार तुम्हारे,
परम प्रभु की है य़ह इच्छा।
संगठन शक्ति संयोज़न पूरा,
वर्षों की होवे दूर प्रतीक्षा।।

समृद्धि और वैभव अनंत हो,
ले शांति सुहृद जीवन उत्कर्ष।
फिर वसुधा हो परिवार हमारा,
जगे विश्व गुरु य़ह भारत वर्ष।।

– बृजेंद्र

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