प्रकाश सिंह

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से गो संरक्षण के नाम पर जो तमाशा किया जा रहा है, उसका खामियाजा गौशालाओं में दम तोड़ते गोवंश भुगत रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गो हत्या रोकने के प्रयास के तहत प्रदेश के सभी जिलों में गोसंरक्षण के लिए गौशालाओं का निर्माण कराया। उनके चारा-पानी और रखरखाव के लिए बजट निर्धारित किया गया। लेकिन व्यवस्था से जुड़े जिम्मेदार लोग बड़े वाले ‘कसाई’ निकले। जो गोसंरक्षण के लिए आ रहे बजट के पैसों को खा रहे हैं और गोवंश को भूख और प्यास से तड़पा-तड़पा कर मार भी रहे हैं। कई जगह तो ऐसे हैं जहां गौसरंक्षण के नाम पर बने गौशाला पर गांव के कुछ लोगों ने कब्जा जमाकर अपने काम में भी उपयोग करने लगे हैं।

गौशाला के नाम पर सिर्फ तमाशा

गौसंरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार के इस फैसले से जहां यह उम्मीद जगी थी कि देर से ही सही गोवंश के बारे में किसी ने सोचा तो। लेकिन यह उम्मीद से ठीक उलट हो गया। पहले गोवंश की चोरी छिपे हत्या होती थी, मगर अब गौशाला में उन्हें जानबूझकर मारा जा रहा है। हालांकि गौशाला से ज्यादा गोवंश आज भी आपको सड़कों और किसानों के खेतों में देखने को मिल जाएंगे। जिनको देखकर यह आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ के साढ़े चार साल के कार्यकाल में गोवंश संरक्षण के नाम पर केवल तमाशा ही किया गया, हकीकत में कुछ नहीं है।

gaushala

गोसंरक्षण के नाम पर दिया राजनीति करने का मौका

योगी सरकार ने गोसंरक्षण के नाम पर विपक्ष को राजनीति करने का मौका भी दे दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में बने गौशालाओं से गोवंश गायब है तो कुछ गोशालाएं गांव के दबंग लोगों के कब्जे में आ गए हैं। बस्ती जनपद के गौर विकासखंड के ग्राम सभा बेलघाट के गोशाला को देखकर यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि यह भी कभी गौशाला था। यहां आपका गोवंश को छोड़कर लोगों के निजी सामान देखने को मिलेंगे। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि अधिकतर गौशालाएं अगर बंद हैं तो गोवंश के नाम पर जारी बजट जा कहा रहा है। प्रदेश की योगी सरकार जो भ्रष्टाचार मुक्त की दावे कर रही है, वह केवल इसी की जांच करा ले तो समझ में आ जाएगा, कि उनके शासन काल में जानवरों के नाम पर कितना बड़ा घोटाला हुआ है।

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अहम के वहम में चूक गए सीएम योगी

प्रदेश सरकार के साढ़े चार वर्ष पूरे होने पर मंत्री, विधायक व कार्यकर्ता लोगों के बीच जाकर सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं। लेकिन सरकार की जिन नाकामियों के बीच जनता जूझ रही है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। छुट्टा जानवरों की भरमार ने किसानों की नींद हराम कर दी है, वहीं सरकार वहम के अहम में है कि उसने गौशलाओं का निर्माण कराकर गोवंशों को सुरक्षित कर लिया है। सीएम योगी इस अहम से थोड़ हटकर देखें तो उनके शासन काल में सबसे ज्यादा गोवंशों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा है। क्या यह एक तरह की हत्या नहीं है? रोजाना गोशालाओं से गोवंश की मौत की सूचना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कानों तक आखिर क्यों नहीं पहुंच रही है। अभी हाल ही में हुई भारी बारिश में बाराबंकी के एक गौशाला में कई गोवंशों की मौत हो गई है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी निरंकुश शासक की तरह अपने अधिकारियों पर भरोसा करके चूक गए हैं। उन्हें जनता का वह दर्द नहीं दिखाई दे रहा है, जिससे वह जूझ रही है। उन्हें उतना ही दिख रहा है, जितना अधिकारी उन्हें दिखाना चाह रहे हैं। जबकि सच यह है कि सत्ता बदलती है, अधिकारी वही रहते हैं। क्योंकि गोवंशों को अगर गौशाला में जगह मिली होती तो वह सड़कों व किसानों के खेता में न दिखते।

सीएम योगी ने की रीति बदलने की कोशिश

छुटा जानवर आज की समस्या नहीं हैं। यहा एक तरह की परंपरा रही है, जब पशुपालकों की जानवरों से अपेक्षाएं खत्म हो जाती हैं, तो वह उन्हें छोड़ देता है। लेकिन सीएम योगी ने लोगों की इस परंपरा को बदलने की कोशिश। नतीजा यह हुआ कि बदला कुछ नहीं वह खुद ही सवालों के घेरे में आ गए। गोवंश के नाम पर आने वाले पैसे को इंसान रूपी जानवर डकार रहे हैं।

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