संजय तिवारी
संजय तिवारी

यह आस्था की विजय है। यह जातीयता के विरोध की विजय है। यह नेतृत्व में विश्वास की विजय है। यह नायकत्व को महानायकत्व की ओर ले जाने के प्रयास की विजय है। भारत की स्वाधीनता के बाद की ऐसी पहली विजय है जो नए भारत की आधारभूत संकल्पना को दिखाने वाली है। यह विशुद्ध भारतीय मन की विजय है। गंगा यमुना के मैदान से सुदूर पूर्वोत्तर और फिर गोमांतक तक के भारत में भारतीय सोच की विजय है। एक वैचारिक और रजानीतिक मंच से जारी युद्ध में सनातन की विजय है। वास्तव में यह नए भारत के लिए नया जनादेश है। अपने महानायक नरेंद्र मोदी के प्रति विश्वास और योगी आदित्यनाथ जैसे अनुगामी योद्धा के प्रति जनता के भरोसे की विजय है।

आज के परिणाम कुछ लोगों के लिए अप्रत्याशित हो सकते हैं, लेकिन जिन लोगों ने जमीनी सच्चाई को परखा है, उनके लिए अप्रत्याशित कतई नहीं है। यह चुनाव किस रूप में किसने और कैसे-कैसे लड़कर यह परिणाम दिया इस पर बाद में मंथन होगा, लेकिन भारतीय लोक में अवस्थित संत तत्व और नारी तत्व को प्रणाम करने का यह समय अवश्य है। जातीय संकीर्णता में लिपटती जा रही राजनीति के लिए यह परिणाम आइना है। इस बार जाति के कोई समीकरण काम नहीं आये हैं। जातियों को बरगला कर उनके नेता बनकर खुद मलाई खाने वालों को समाज ने बहुत ठीक से लतिया दिया है। इस परिणाम में कई संदेश हैं। उत्तर प्रदेश को जिले में माफिया संगठन से संचालित करने वाले सभी चेहरे समाप्तप्राय हो गए हैं। जाति के नेता बनकर राजनीति को बारगेन करने वाले कहां गिरे हैं, कुछ पता ही नहीं।

देवभूमि उत्तराखंड को अय्याशी और पर्यटन का कारोबार बनाने वालों को वहां की आस्थावान जनता ने किनारे लगा दिया है। सुदूर पूरब मणिपुर और गोमांतक यानी गोवा में फैले ईसाइयत के धर्मनरतरण के संजाल के विरुद्ध जनता ने अपना निर्णय सुना दिया है। पंजाब के परिणाम तो वही हैं, जो तीन महीने पहले से ही दिखने लगे थे। कांग्रेस ने वहां जनता का भरोसा तो खोया ही, उसको एक ऐसे गर्त में धकेल दिया जो उसी के लिए काल हो गया। जिसने कांग्रेस को दिल्ली से साफ किया, वही झाड़ू पंजाब में लग गया। राष्ट्रीय रक्षा जागरण मंच की महासचिव रेशमा सिंह का यहां उल्लेख जरूरी लगता है।

अब से ठीक दो महीने पूर्व ही एक मुलाकात में उन्होंने संकेत किया था कि पंजाब से कांग्रेस बिल्कुल साफ हो रही है। आम आदमी पार्टी वहां स्वीप कर रही है, क्योंकि दिल्ली की पूरी हवा पंजाब में पसर गयी है। उन्होंने उसी समय आंधी शब्द का प्रयोग किया था। सही भी है। अकालियों और कांग्रेस ने पंजाब की जनता की भावनाओं का सम्मान ही नहीं किया। इन दोनों पारंपरिक पार्टियों ने पंजाब के मन पर आघात कर अपनी अपनी चालें चलीं। वहां यह होना ही था, क्योंकि वहां भाजपा पहले से ही अनुपस्थित थी। यह अलग बात है कि पंजाब जैसे अतिसंवेदनशील प्रान्त में इस तरह की आंधी आगे क्या रूप लेगी, यह देखने लायक होगा।

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उत्तर प्रदेश से निकले संदेश और जनादेश को बहुत ठीक से समझने की आवश्यकता है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती के साथ विगत दिनों काशी में था। उनका एक वाक्य आज बहुत ही समीचीन लग रहा है। एक आयोजन में काशी के लगभग सभी विद्वान भी उपस्थित थे। भारत के शिक्षामंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी थे। स्वामी जी ने उसी दिन संकेत कर दिया था कि इस बार जो भी परिणाम होंगे उन्हें नए भारत के लिए नए जनादेश के रूप में लेकर आगे चलने की नीति पर काम करना होगा। आज उनकी बात बिल्कुल सटीक लग रही है।

आज जब लगभग सभी परिणाम आ चुके हैं तो यह घोषित करने में कोई संकोच नहीं है कि यह सब दो कारणों से संभव हो सका है- एक कि हमारी मातृ शक्ति ने बड़े मनोयोग से अपना अधिकतम समर्थन दिया है और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रखर आस्था को जनता ने बड़े मन से चुना है। इसके संवाहक स्वरूप योगी आदित्यनाथ के शासन में सुरक्षा और सुशासन पर जनता ने अपना पूरा भरोसा जताया है। यह लिखने में मुझे कोई संकोच नही है कि मुस्लिम महिलाओं और उस समाज का भी काफी समर्थन भाजपा को मिला है।

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उत्तर प्रदेश में यह जनादेश समाजवादी पार्टी और खासकर अखिलेश यादव के लिए भी एक बड़ा संदेश दे रहा है कि उन्हें अब उत्तर प्रदेश के सदन में राह कर एक सक्षम और सकारात्मक प्रतिपक्ष के रूप में जनभावना के अनुरूप कार्य करना चाहये। यदि इतने के बाद भी वह लोकसभा को चुनते हैं तो यह एक बड़ी गलती होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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