Prerak Prasang: एक बार एक शिव भक्त धनिक शिवालय जाता है। पैरों में महँगे और नये जूते होने पर सोचता है कि क्या करूँ? यदि बाहर उतार कर जाता हूँ, तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा। सारा ध्यान जूतों पर ही रहेगा। उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई देता है। वह धनिक भिखारी से कहता है, भाई मेरे जूतों का ध्यान रखोगे? जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ। भिखारी, हाँ कर देता है। अंदर पूजा करते समय धनिक सोचता है कि “हे प्रभु! आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है? किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है, तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है।

कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें। वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 का एक नोट देगा। बाहर आकर वह धनिक देखता है कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते ही। धनिक ठगा सा रह जाता है। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार करता है कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो। पर वह नहीं आया। धनिक दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल देता है। रास्ते में फुटपाथ पर देखता है कि एक आदमी जूते-चप्पल बेच रहा है।

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धनिक चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचता है, पर क्या देखता है कि उसके जूते भी वहाँ रखे हैं। जब धनिक दबाव डालकर उससे जूतों के बारे में पूछता हो वह आदमी बताता है कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रुपये में बेच गया है। धनिक वहीं खड़े होकर कुछ सोचता है और मुस्कराते हुए नंगे पैर ही घर के लिए चल देता है। उस दिन धनिक को उसके सवालों के जवाब मिल गए थे। समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती, क्योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते। और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन समाज-संसार की सारी विषमताएं समाप्त हो जाएंगी।

ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और क्या और कहाँ मिलेगा। पर यह नहीं लिखा होता है कि वह कैसे मिलेगा। यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिए उस दिन तय था कि उसे 100 रुपये मिलेंगे, पर कैसे मिलेंगे यह उस भिखारी ने तय किया। हमारे कर्म ही हमारा भाग्य, यश, अपयश, लाभ, हानि, जय, पराजय, दुःख, शोक, लोक, परलोक तय करते हैं। हम इसके लिये ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं।

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