आओ चलें गांव में अपने,
मिल कर घर द्वार सजाएं।
मिलें परस्पर सब नर नारी,
ग्रामोत्सव सुखद मनाएं।।

यहाँ विरासत पुरखों की है,
पितृ कर्म भूमि य़ह मेरी।
स्मृतियों की फैली सुगंध है,
प्राकृत देव तत्व ने घेरी।।

रहें कहीं भी इसे न भूलें,
श्रम साधन यहाँ लगाएं।
लाएं तकनीक आधुनिक,
सब विपदायें दूर भगाएं।।

घाटी घाटी रचे सम्पदा,
वन उपवन वाग लगाएं।
करें प्राकृतिक खेती पूरी,
श्री अन्न यहाँ उपजाएं।।

करने को कम बहुत हैं,
है ये समृद्धी का सागर।
कोई भगीरथ ढूंढ रहे हैं,
ले जाए जल गंगा सागर।।

बृजेंद्र पाल सिंह
राष्ट्रीय संगठन मंत्री लोकभारती

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