Shailendra Kumar Yadav
शैलेन्द्र कुमार यादव

Motivational Story Hindi: जनवरी महीने के प्रथम सप्ताह की बात है, (Motivational Story Hindi) इस सप्ताह में सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है। मैं और मेरा दोस्त रात करीब 8:30 बजे किसी काम को निपटा कर वापस लौट रहे थे। उस दिन ठंड बहुत ज्यादा थी। (Motivational Story Hindi) कोहरा बहुत ज्यादा था, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। पास में ही पड़े बाजरे के भूसे पर सफेद बर्फ की चादर जम गई थी। (Motivational Story Hindi) हम दोनों मित्र गर्म कपड़े जैकेट, टोपा और दस्ताने पहने हुए थे।

(Motivational Story Hindi) ऐसा महसूस हो रहा था की हम लोग पूरा सुरक्षा कवच धारण किए हुए हैं। फिर भी ठंड इतनी ज्यादा थी कि हम दोनों लोग कांप रहे थे। तभी हम दोनों की नजर पास के एक खाली मकान पर पड़ी। जो अंदर से बंद था। बाहर बरामदे में फर्स पर कोई लेटा हुआ था, पास जाकर देखा तो एक बूढ़ी औरत लेटी हुई थी। फटी सी चादर ओढ़े और नीचे कुछ बिछा नहीं था। उसी चादर को आधा जमीन पर और आधा ओढ़ रखी थी। ठंड से वह कांप रही थी। हम लोग सोच रहे थे कि जब इतने कपड़े पहनने के बावजूद इतनी ठंड लग रही है, तो वो सिर्फ एक चादर और एक पुरानी साड़ी में कैसे खुद को संभाल रही है।

हम लोगों को देख कर वह हमारी तरफ आशा की निगाह से टक टकी लगाकर देख रही थी। मैं झट से अपने घर गया, सब अपने-अपने बिस्तर पर जा चुके थे। रसोई में जाकर देखा तो सिर्फ 6 रोटियां ही बची थी, वो भी शायद मेरे लिए। हमने उसमें से 2 रोटी और कुछ सब्जी उस बुजुर्ग महिला को दी तथा पानी को गर्म करके दिया। उस महिला को देखकर लग रहा था की पता नहीं कब से भरपेट भोजन नहीं मिला होगा। दो-दो रोटी हम दोनों दोस्तो ने भी खा ली।

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ठंड बहुत ज्यादा थी। हम लोगों ने एक पुराना कंबल लाकर दिया और उस बुजुर्ग महिला से कहा कि कल सुबह आपके लिए लेटने का इंतजाम करेंगे। ठंड ज्यादा होने के कारण हम लोग ज्यादा देर तक नहीं रुक सके और घर जाकर अपने मित्र के साथ बिस्तर पर लेट गए। मेरे दिमाग में बस उस बूढ़ी औरत की छाया चित्र आ रहा था। आखिर देर रात में मुझे भी नींद आ गई। सुबह उठ कर देखा तो पड़ोस में शोर शराबा हो रहा था।

पास जाकर देखा, तो उस बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो चुकी थी। उसने चादर जो ऊपर ओढ़ रखी थी, उसके ऊपर प्रकृति ने अपनी बर्फ की चादर डाल दी थी। अब उस बेचारी बुजुर्ग महिला को किसी की दया और सहानुभूति की आवश्यकता नहीं थी। अब उसे कोई ठंड या गलन परेशान नहीं कर सकती थी। प्रकृति ने इस बूढ़ी मां को अपनी गोद में ले लिया था। मैं और मेरा मित्र दोनों की आंखों में आंसू आ गए। हम लोग पछता रहे थे कि हम दोनों ने अगर सुबह का इंतजार न किया होता, तो शायद वो जिंदा होती। खैर होनी को कौन टाल सकता है।

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हम लोग अपने घरों में पड़े पुराने कपड़े और पुराने कंबल जो हमारे बिल्कुल काम के नहीं हैं, अगर वो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दे दें। तो उस के लिए नए कपड़ों से कम नहीं होंगे। ठंड का आगमन हो रहा है। सभी लोग ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद लोगों को मदद करें, ताकि कोई ठंड से न मरे। मुझे कुछ पुरानी लाइनें याद आ रही हैं-

मखमली धूप के साए मुझे रास नहीं आ रहे हैं,
मेरी आंखों को पिछले वर्ष हुई ठंड की दरकार है।।

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