Satya Prakash Tripathi
सत्य प्रकाश त्रिपाठी “गंभीर”

ना यादव ना विप्र की भूमि,
फिर भी खून बहाते हैं!

ईश्वर का वरदान मनुज तन,
पर खुलकर ना जी पाते हैं।
राजनीति की जातिवाद में,
“सत्य” से “प्रेम” लड़ाते हैं!

अधिकारी के मकड़जाल (भ्रष्टतंत्र) में,
दोनों ही मर जाते हैं।
लोकतंत्र में लोग हैं शंकित,
ये मोटी रकम कमाते हैं!

चप्पल घिसते, छाले पड़ते,
और अंत में गला कटाते हैं।
जातिवाद के गरल को छोड़ो, मानवता का भान करो!

तुम हो मानव के राजहंस,
मानवता का अमृतपान करो।
सुखमय होगी मानव जाती,
गर हवस को मार दिया तुमने!

संतोष, धर्म, आचरण शुद्ध,
जिस दिन धारण कर लिया हमने।
ये प्रकृति बहुत सुघर है जी,
अपनी प्रकृति को नर्म करो!

सुखमय जीवन क्यूं छोड़ रहे,
अब तो खुद पर कुछ शर्म करो।
जीवन जीने के लिए मिला,
ना व्यर्थ लड़ो, ना व्यर्थ मरो!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

इसे भी पढ़ें: प्रातः नमन करें हम उनको

इसे भी पढ़ें: गति को प्रगति

Spread the news