Kahani: किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था। उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि वो जब भी जूते सिलता तो भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था, लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया। एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबीयत बहुत ख़राब हो गयी। लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं, सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया, लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका। अब सेठ की तबीयत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था।

एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेटा था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे, सेठ को। कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे। कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है, उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई। कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे-धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा, मेरी बीमारी का इलाज बड़े-बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये, लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया, ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया।

इसे भी पढ़ें: परहित का चिंतन

लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई, वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या-क्या खरीदना है? इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की। अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे-धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी। इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी।

एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी, आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया। मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया। मित्रों, ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह पैसों का लालच हमको अपनों से दूर ले जाता है, हम भूल जाते हैं कि कोई ऐसी शक्ति भी है जिसने हमें बनाया है।

इसे भी पढ़ें: निर्धन राजा

Spread the news