श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद से सरकार के विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं को फिर से बसाने की बड़ी चुनौती बनी हुई है। यहां का एक वर्ग ऐसा है जो अमन शांति के दुश्मन अभी भी बने हुए हैं। ऐसे में अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा (Jammu and Kashmir Legislative Assembly) में कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) समुदाय के सदस्यों को नामित विधायकों के तौर पर एंट्री देने की बात सामने आ रही है।

जानकारी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा (Jammu and Kashmir Legislative Assembly) एवं लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन चल रहा है और माना जा रहा है कि अपनी फाइनल रिपोर्ट में आयोग की तरफ से यह सिफारिश सरकार से की जा सकती है। बता दें कि घाटी में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की आबादी नाम मात्र की रह गई है और वर्ष 1990 में हिंसा के बाद पलायन करने वाले परिवारों की वापसी भी काफी कम है। ऐसी स्थिति में उन्हें प्रतीकात्मक तौर पर प्रतिनिधित्व देते हुए नामित सदस्य विधानसभा भेजे जा सकते हैं। इस प्रावधान पर परिसीमन आयोग विचार कर रहा है। गौरतलब है कि आयोग का कार्यकाल 6 मई को समाप्त हो रहा है।

खास बात यह है कि परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) की सिफारिश में इन नामित सदस्यों को विधानसभा में किसी भी मुद्दे पर होने वाले मतदान में वोटिंग का अधिकार भी दिया जा सकता है। पैनल का सुझाव है कि कश्मीरी पंडितों को राज्य की व्यवस्था में भागीदारी का अवसर मिलना चाहिए। इसके साथ यह भी चर्चा है कि क्या पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जहां भी हैं, वहीं से जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकते हैं। सूत्रों की मानें तो कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधिमंडलों से परिसीन आयोग के सदस्यों ने इस संदर्भ में बात की है। इसके बाद इस बात पर सहमति बनी है कि विधानसभा में कश्मीरी पंडितों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

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सिक्किम में है इस तरह की व्यवस्था

गौरतलब है कि परिसीमन आयोग में रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जस्टिस रंजना देसाई और मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा शामिल हैं। वहीं विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का यह प्रतिनिधित्व धर्म या जाति के आधार पर नहीं होगा। इसकी जगह उनका आधार यह होगा कि वे पीढ़ियों से राज्य की राजनीतिक व्यवस्था के हिस्सेदार रहे हैं। जानकारों की मानें तो इस व्यवस्था का उदाहरण सिक्किम से लिया गया है, जहां बौद्ध भिक्षुओं को नामित सदस्य के तौर पर विधानसभा भेजने का नियम है। इसी आधार पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चुनाव के माध्यम से कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधित्व की बजाय नामित सदस्यों की व्यवस्था को ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है। बता दें कि अब तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दो महिला सदस्यों को भेजने की व्यवस्था रही है।

काबिले गौर है कि ऐसी ही व्यवस्था पुदुचेरी विधानसभा में भी है, जहां 30 सदस्य चुनाव के जरिए चुने जाते हैं। इसके साथ ही 3 सदस्यों को केंद्र सरकार की ओर से नामित किया जाता है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि परिसीमन आयोग केंद्र सरकार से कश्मीरी पंडितों को लेकर यह सिफारिश करता है तो समुदाय की लंबे समय से चल रही मांग पूरी हो सकती है। कश्मीरी पंडित समुदाय की तरफ से मांग की जाती रही है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी समुदाय ने इसकी मांग की थी।

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