Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

अटल बिहारी वाजपेयी की दलबदलुओं और नैतिकहीनों के भाजपा में प्रवेश देने पर विचार जानकार आज की भाजपा के संबंध में आप अपनी धारणा विकसित कर सकते हैं। मैंने एक बार पूछ लिया था कि भाजपा में दलबदलुओं और नैतिकहीनों का प्रवेश इतना आसान और सुलभ क्यों हो गया है, आप लोग दलबदुलओं और नैतिकहीनों को स्वागत करने में इतना बिछ क्यों जाते हैं? क्या इससे आप लोगों की घोषित विचार धारा और नैतिकता आदि प्रभावित नहीं होती है? जाहिर तौर पर मेरे प्रश्न बहुत ही चुभने वाले थे, नैतिकता व शुचिता के पोल खोलने वाले थे और जनता के बीच बनायी हुई ईमानदार और औरों से अलग होने के दावे का पर्दाफाश करने वाले थे।

मेरे इन प्रश्नों पर वाजपेयी ने मुझे तो पहले घूरा, फिर कहा कि आपने बाढ़ देखी है? मैंने कहा हां देखी है, गांव का रहने वाला हूं फिर बाढ़ क्यों नहीं देखी है, नदियों की बाढ़ के पानी में ठिठोली भी जमकर की है? फिर आप तो जानते होंगे कि बाढ़ के पानी के साथ क्या-क्या आता है, बाढ़ के पानी के साथ गाद आता है, लकड़ियां आती हैं, पत्ते आते हैं और सांप-बिच्छू भी आते हैं। राजनीति में भाजपा की बाढ़ आयी है, इसलिए सभी प्रकार के लोग भाजपा में प्रवेश करना चाहते हैं।

चुनावों में हवा बनाने के लिए हर प्रकार के लोगों को पार्टी में प्रवेश दिलाया जाता है। ताकि जनता को विश्वास हो सके और समझ विकसित हो सके कि भाजपा सत्ता में आ रही है। आज भाजपा में सभी श्रेणियों के भ्रष्टचारी, अपराधी, रिश्वतखोर, जिहादी और मुस्लिम-ईसाई मानसिकता के लोग जो शामिल हो रहे हैं, उसके पीछे भी वाजपेयी की उस मानसिकता का ही प्रतिफल है। आज की राजनीति में भाजपा की तूती बोल रही है, उसके पास दस साल से सत्ता है और अगले लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की हार होने की उम्मीद कहां है, इसलिए सभी के लोगों की पहली पंसद भाजपा है। जिस तरह से पापियों के पाप धोते-धोते गंगा मैली हो गयी उसी तरह से अपराधियों, रिश्वतखोरों, अनैतिकहीनों और घुसपैठियों की पाप धोते-धोते भाजपा भी गंदी हो गयी, जनविरोधी हो गयी। भाजपा के 40 प्रतिशत सांसद दलबदलु है और घुसपैठिए है।

बाढ़ एक नकारात्मक शब्द है, बाढ का अर्थ खुशी नहीं होता है बल्कि बर्बादी होता है। बाढ़ विनाश और संहार का प्रतीक है। बाढ़ न जाने कितने पेड़-पौधों को उखाड़ कर अपने साथ बहा ले जाती है, घर और लहलहाती फसल भी बर्बाद कर देती है। इसीलिए न तो बाढ़ किसी के लिए प्रतीक हो सकती है और न ही आईकॉन हो सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी के लिए बाढ़ जरूर आईकॉन और प्रतीक हो सकती है पर एक अच्छे और विचारवान व्यक्ति के लिए बाढ़ को प्रतीक मानना अस्वीकार ही होगा। वाजपेयी एक सेक्युलर व्यक्ति थे और साहित्यकार होने के कारण कल्पना उनकी नियति थी। यह सब उनके शासन में भी दिखता था। पर हमें याद करना चाहिए कि आईकॉन और प्रतीक गढ़ने में नैतिकता और शुचिता की स्थापना करनी पड़ती है। यही कारण था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में एक तरह से भाजपा का दाह संस्कार कर दिया था।

आज की भाजपा पूरी तरह से वाजपेयी की बाढ़ वाली थ्योरी पर चल रही है। यानी की नैतिकहीनों, भ्रष्टचाररियों और रिश्वतखोरों तथा कामचारों को पार्टी में लाओ और चुनाव जीतो। उदहरण कोई एक नहीं बल्कि अनेक है। जो भाजपा को सांप्रदायिक कहते थे, देश तोड़क कहते थे, वे भाजपा के लिए प्रतीक बन गये, आईकॉन बन गये और चरणवंदनीय बन गये। एक थे रामबिलास पासवान, वे भाजपा को भारत जलाओ पार्टी कहते थे, वे भाजपा में आकर महान हो गये। आज पासवान का बेटा भाजपा के गठबंधन में है।

मोहन भागवत को सीवर टैंक में डालने का विचार रखने वाला जगदम्बिका पाल भाजपा के चरणवंदनीय हो गये। हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने और प्रज्ञा ठाकुर को प्रताड़ना दिलवाने में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाले आरके सिंह आज मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं और बिहार से सांसद हैं। जब तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने हिन्दू आतंकवाद का प्रत्यारोपण किया था, तब आरके सिंह गृह सचिव थे।

कांग्रेस सहित कई दलों में रहने वाले सत्यपाल मलिक को भाजपा ने आत्मसात कर लिया और उसे जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य का राज्यपाल बना दिया गया। बाबूलाल मरांडी जो भाजपा का दाह संस्कार कर पार्टी छोड़ दिया था और वह चर्च व मुस्लिम की राजनीति करने लगा था वह बाबूलाल मरांडी फिर से भाजपा का आईकॉन बन गया।

दुष्परिणाम क्या होता है? छवि और लक्ष्य को घुन कैसे लगता है? यह सब देख लीजिये। भाजपा ने घुसपैठियों को पूरा सम्मान दिया पर भाजपा को क्या मिला? सतपाल मलिक ने आरोप जड़ दिया कि पुलवामा हत्याकांड नरेन्द्र मोदी सरकार की नाकामी थी और साजिश थी। ऐसा आरोप उसने नरेन्द्र मोदी के विरोधियों के कहने पर लगा दिया। यशंवत सिन्हा जिसे भाजपा ने क्या-क्या न दिया, वित मंत्री जैसे पद से सुशोभित किया, वही यशवंत सिन्हा भाजपा को कितनी गालियां बकी हैं। नरेन्द्र मोदी को तानाशाह तक कह डाला, यह सब भी लोगों को मालूम है। कभी नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक कहने वाली और लात मार कर नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री के पद से हटवाने की घोषणा करने वाली स्मृति ईरानी आज भाजपा के लिए महारथी और आईकॉन हैं।

कुमार विश्वास का भाई जो कांग्रेसी संस्कृति का था आज भाजपा-संघ की कृपा से एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय का कुलपति है। एक अन्य संघ और भाजपा की कृपा से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलपित बनने के बाद होली खेलने पर प्रतिबंध लगा देता है। होली खेलने पर प्रतिबंध लगाने पर देश भर में प्रतिक्रिया हुई थी और प्रश्न खड़ा किया गया था कि एक जिहादी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति को इतने प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति की कुर्सी क्यों दे दी गयी? संघ और भाजपा के लोग इतने मूर्ख और अज्ञानी कैसे हो सकते है? इसी तरह का अनेकानेक उदाहरण हैं।

ऐसी स्थिति सिर्फ कोई नरेन्द्र मोदी के केन्द्रीय मंत्रिमंडल और केन्द्रीय भाजपा की ही नहीं है, बल्कि प्रदेश और जिलास्तरीय में भी ऐसी स्थिति है। भाजपा में अब तो पुराने कार्यकर्ता और नेता देखने को भी नहीं मिलते हैं। पुराने लोग या तो उम्र से लाचार होकर घर बैठ गये या फिर घुसपैठियों के अपमान से खुद ही घर बैठ गये। घुसपैठियों ने एक तरह से भाजपा को अपने कब्जे में ले लिया है। आज भाजपा के ऊपर नरेन्द्र मोदी का राज है।

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नरेन्द्र मोदी भी अटल बिहारी वाजपेयी के कदम पर चल रहे हैं। सबका साथ और सबका विकास उनका नारा है। सबका साथ और सबका विकास में तो जिहादी भी शामिल हो सकते हैं, घुसपैठिये भी शामिल हो सकते हैं, रिश्वतखोर भी शामिल हो सकते हैं, अनैतिक भी शामिल हो सकते हैं और अपराधी भी शामिल हो सकते है। सच तो यही है कि आज भाजपा में रिश्वतखोर, अपराधी, जिहादी, घुसपैठिये और अनैतिक लोगों का ही वर्चस्व है। नई दिल्ली स्थित भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय में आप चले जाइये तो फिर आपको भाजपा के डिजाइनदार नेता करोड़ों और अरबों की बात करते हुए मिल जायेंगे। विषकन्याओं से घिरे हुए मिल जायेंगे। उम्रदराज महिलाओं को देख कर मुंह फेरते मिल जायेंगे। अब भाजपा में कुशाभाव ठाकरे, सुंदर सिंह भंडारी, रामप्यारे लाल खंडेलवाल, अश्विनी कुमार, कैलाशपति मिश्र, कृष्णलाल शर्मा, गोविन्दाचार्य की छवि और सहचर संस्कृति मिलती ही नहीं हैं।

घुसपैठियों-दलबलुओं को सत्ता और चुनाव जीतने की गारंटी चाहिए। सत्ता मिलने और चुनाव जीतने की गारंटी नहीं हो, तो फिर कोई घुसपैठिये और दलबदलू भाजपा में आना ही नहीं चाहेगा। पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भाजपा की केन्द्रीय और राज्य सत्ताओं का जिस दिन से पतन होना प्रारंभ होगा, उसी दिन से भाजपा घुसपैठियों के लिए सांप्रदायिक हो जायेगी, जनविरोधी और रिश्वतखोर हो जायेगी, फिर भाजपा छोड़ कर सत्ता के नजदीक रहने वाली पार्टी में चले जायेंगे।

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कहने का निष्कर्ष यह है कि मोदी की सत्ता सबका साथ और सबका विकास के नारे से नहीं बनती है। बल्कि सनातन के वोट से बनती है, सबसे अलग दिखने और ज्ञान, शील व एकता के एकमेव सिद्धांत से नहीं है। इस सिद्धांत का उल्लंघन वाजपेयी ने भी किया था और इस सिद्धांत का उल्लंधन नरेन्द्र मोदी भी कर रहे हैं। दुष्परिणाम सिर्फ भाजपा के लिए निस्वार्थ लड़ने वाले सनातन संस्कृति के सहचर ही झेलेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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