नई दिल्ली: जुड़वा बच्चों के पैदा होना आज भी एक रहस्य की तरह है, वैज्ञानिक जिसे सुलझाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। अधिकत्तर जुड़वा बच्चे एक जैसे शक्ल वाले होते है। वह एक दूसरे से इतने मिलते जुलते हैं कि उन्हें देखकर उनमें अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है। वहीं एक रिसर्च में यह दावा किया जा रहा है कि अब इस गुत्थी को सुलझा लिया गया है।यानी अब इस रहस्य से पर्दा उठ गया है कि जुड़वा बच्चे क्यों पैदा होते हैं।

अब तक जुड़वा बच्चों के पैदा होना एक इत्तेफाक माना जाता रहा है। इसके लिए कोई तैयारी नहीं होती। मगर इस पर हुई एक स्टडी में पता चला है कि सच में ऐसा नहीं होता। एम्स्टर्डम में व्रीजे यूनिवर्सिटिट (Vrije Universiteit in Amsterdam) के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि इसका ताल्लुक इंसान के डीएनए से जुड़ा है। जो गर्भधारण के समय से लेकर एडल्टहुड तक बना रहता है। इस रिसर्च में पता चला है कि करीब 12 प्रतिशत गर्भधारण ‘मल्टीपल’ होते हैं। मतलब 12 प्रतिशत में जुड़वा बच्चों के होने का चांस होते हैं। जबकि मात्र 2 प्रतिशत मामलों की जुड़वा बच्चों की डिलीवरी हो पाती है। वैज्ञानिक भाषा में इसे ऐसी स्थिति को ‘वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम’ कहा जाता है।

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वहीं एक जैसे दिखने वाले जुड़वा बच्चों को भी इत्तेफाक माना जाता रहा है। लेकिन स्टडी में खुलासा हुआ है कि यह भी डीएनए पर निर्भर करता है। स्टडी के शोधकर्ताओं का मानना है कि डीएनए से यह पता लगाया जा सकता है कि क्या पैदा होने वाले जुड़वा बच्चे एक जैसे होंगे। लेकिन शोधकर्ता इस बात का पता लगा पाने में असफल हुए कि सामान्य तौर पर इस तरह के डीएनए की पहचान कैसे की जाए। इस लिए यह रिसर्च अभी अधूरा ही रह गया है। इस पर अभी और रिसर्च किए जाने की आवश्यकता है। यह भी नहीं पता चल पाया है कि क्या इस तरह का डीएनए माता-पिता से विरासत में मिलता है।

हालांकि इस रिसर्च में अभी कई रहस्य से पर्दा उठना बाकी है। फिलहाल इतना तय हो गया है कि जुड़वा बच्चे होना महज इत्तेफाक नहीं है। यह माता-पिता के डीएनए पर निर्भर करता है।

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