Nishita Sharma
प्राचीन काल से आधुनिक काल तक महिलाओं की स्थिति में अमूलचूल परिवर्तन हुआ है। महिलाओं को मिलने वाले अधिकारों में भी इसी अनुसार बदलाव होता रहा है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी सुदृढ़ थी, उनके विचारों को समाज में सम्मान मिलता था। उन्हें अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता थी। यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो हमें ऐसी बहुत सी विदुषी महिलाओं के नाम मिल जायेंगे जिन्होंने अपनी विद्यता का लोहा मनवाया था और इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन मध्य काल के बाद से हुआ। मध्यकाल में सतीप्रथा, बाल विवाह, देवदासी, पर्दाप्रथा जैसी कुप्रथाओं के चलते समाज में महिलाओं की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती चली गई।
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पुरूष प्रधान समाज का दृष्टिकोण
वर्तमान भारतीय समाज में स्त्रियों को स्वंत्रता, सुरक्षा एवं पुरूषों के बराबर अधिकार प्राप्त है। स्त्री और पुरूषों के अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं किया जाता लेकिन अगर वास्तविकता की बात करें तो आज समाज में स्त्रियों की दशा उनको मिलने वाले अधिकारों से बिल्कुल अलग है। पुरूष प्रधान समाज में स्त्रियों का दर्जा दोयम दर्जे का हो गया है। महिलाओं की स्थिति घर में एक वस्तु के बराबर ही रह गई है। उसे घर के किसी भी मामले में बोलने व फैसले लेने का अधिकार भी नहीं प्राप्त है।
महिलाओं का शोषण करने का कोई भी मौका पुरूष नहीं छोड़ते। वह घर की दासी बनकर रह गई है। ऐसा नहीं है कि स्त्रियों का शोषण किसी एक वर्ग ने किया है अपितु स्त्रियों का शोषण तो समाज के सभी वर्गो द्वारा किया गया। स्त्री स्वयं खुद की रक्षा करने में असहज है इसलिए वह चुप रहकर पुरूष प्रधान समाज की यातनाओं को सहती रहती है। पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं का सामाजिक स्तर नीचा होने से भेद-भाव को बढ़ावा मिलता है अर्थात उनके साथ खराब व्यवहार किया जाता है या उन्हें किसी चीज से वंचित रखा जाता है क्योंकि वे महिलायें हैं।
पुरूष प्रधान समाज में आज भी लड़की के पैदा होने पर निराशा का वातावरण बन जाता है। जब वह बड़ी होती है तो उसको मिलने वाले अधिकार भी लड़कों से अलग होने लगते है। उदाहरण के तौर पर अगर लड़का स्कूल से घर देर से लौटता है तो उससे कोई जवाब तलब नहीं किया जाता लेकिन लड़की के देर से घर आने पर उस पर कई प्रश्न दागे जाते है। हद तो तब हो जाती है जब लड़की के जवाब की सत्यता की भी जांच की जाती है। यह बात बचपन से ही स्त्रियों के मन में बिठा दी जाती है कि वह पराया धन है और उसे दूसरे के घर जाना है। उसी प्रकार उसकी परवरिश भी की जाती है। इसी कारण वह सम्पूर्ण जीवन खुद को उपेक्षित महसूस करती है।मैथिलीशरण गुप्त ने स्त्रियों की दशा पर कुछ मर्मस्पर्शी पंक्तियां लिखी है-
‘‘अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।’’
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वर्तमान भारतीय समाज में दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाओं ने स्त्रियों की दशा और भी दयनीय कर दी। हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1961 में सरकार द्वारा दहेज विरोधी कानून द्वारा दहेज लेने व देने को अपराध घोषित कर दिया गया। कानून में इसके लिए धारा 498 ए के तहत सजा का भी प्रावधान किया गया। इसके बावजूद भी समाज पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। आज भी विवाह के समय लड़के पक्ष द्वारा लड़की पक्ष से बड़ी धनराशि व अन्य वस्तुए दहेज के रूप में मांगी जाती है। लैंगिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, शोषण, दमन, बलात्कार, तिरष्कार, मानसिक यंत्रणा जैसी समस्याओं से भी महिलाओं को दो-चार होना पड़ता है।
स्वतंत्रता के पश्चात महिला सशक्तिकरण के चलते महिलाओं की दशा में सुधार हुआ। स्त्रियों को ना सिर्फ पुरूषों के बराबर अधिकार मिले बल्कि स्त्रियों के लिए स्त्री निःशुल्क शिक्षा और छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी की गई जिसके चलते उसने हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़े। आज महिलाओं ने विज्ञान, खेलकूद तक में पुरूषों के बराबर स्थान बना लिया है। इसके बावजूद भी पुरूषों की सोच में कोई बदलाव नहीं आया। लैंगिक भेदभाव के चलते पुरूष को आज भी सर्वोपरि माना जाता है। पुरूष द्वारा लिए गए निर्णयों को ही प्राथमिकता दी जाती है। एक विवाहित स्त्री अगर नौकरीपेशा है तो उसे दोगुना तनाव सहन करना पड़ता है। उसे अपने ऑफिस के दायित्वों के साथ ही घर के कार्यों की भी दोगुनी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। यदि वह मां है तो उसे अपने बच्चों के पालन पोषण का भी ख्याल रखना पड़ता है। दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भी समाज में यह धारणा बनी हुई है कि यह कार्य तो उसका ही है। स्त्री और पुरूष की भूमिकाएं बदलते समाज के साथ बदल रही है लेकिन समाज की सोच में कोई बदलाव नहीं आ रहा है। सच्चाई यह है कि आज भी ज्यादातर महिलाएं उनको मिलने वाले मौलिक अधिकारों तक से वंचित है। अब समय आ गया है जब हमें भेदभाव पूर्ण प्रथाओं को खत्म करते हुए महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाना चाहिए।
                                                                                                               (लेखिका एक ब्लागर है)
                                                                                                        (यह लेखिका के निजी विचार है)
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