संजय तिवारी
संजय तिवारी

वह संन्यासी हैं। संवेदनशील हैं। संघर्षशील हैं। सनातन क्रांतिवीर हैं। ऊर्जावान हैं। राष्ट्रवन्दना के अप्रतिम गायक हैं। भगवान आद्यशंकराचार्य की ज्योतिर्पीठ पर विराजमान शंकराचार्य भगवान स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के शिष्य हैं। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री हैं। महामना की श्रीगंगामहासभा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं। ओजस्वी एवं प्रखर राष्ट्रवादी वक्ता है। विद्वान हैं। सनातन संस्कृति के अध्येता हैं। भगवान भास्कर की स्वर्णिम रश्मियों सी तेजस्वी ज्योतिपुंज के साथ सनातन संत परपम्परा के प्रज्जवलित नक्षत्र हैं। वह वह आधुनिक भारत की संत परंपरा के नायक भी हैं और कुशल समन्वयक भी। ये ही स्वामी जीतेन्द्रानन्द जी सरस्वती हैं। सनातन संत परंपरा में तीन अनियों, 13 अखाड़ों और 127 संप्रदायों को एक साथ लाने और सनातन के उत्कर्ष के लिए समन्वित प्रयास स्वामी की बहुत बड़ी उपलब्धि है।

इससे पूर्व कि स्वामी की उपलब्धियों की चर्चा करें, पहले उनके प्रारंभिक जीवन पर थोड़ा प्रकाश डालना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े जिले कुशीनगर के अंतिम छोर पर स्थित खड्डा तहसील क्षेत्र के ग्राम रामपुर गोनहा में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे जितेंद्र पाठक एक ऐसे तत्व मर्मज्ञ है जो अपनी योग्यता एवं समाजसेवी स्वभाव के बल पर आज जीतेंद्रानंद सरस्वती के नाम से विख्यात है। जीतेन्द्रानंद सरस्वती की प्रारंभिक शिक्षा खड्डा के भारतीय शिशु मंदिर में हुई। स्नातक की शिक्षा उन्होंने उदित नारायण डिग्री कॉलेज पडरौना से ली। इसी के बाद वह आरएसएस के संपर्क में आये और प्रचारक बन गए।

प्रचारक रूप में उन्होंने बनारस और सोनभद्र जिले का कार्य संभाला। गांव-गांव गली-गली घर घर लोगों के अंदर हिंदुत्व की भावना जागृत की। इसी बीच महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र व सुप्रीम कोर्ट के जज गिरधर मालवीय के संपर्क में आने के बाद जितेंद्रानंद सरस्वती गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री हो गए। अविरल मोक्षदायिनी गंगा को स्वच्छ सुंदर बनाने के लिए उन्होंने गंगा स्वच्छता आंदोलन का बिगुल बजा दिया। निरंतर एक के बाद एक कार्यक्रमों के माध्यम से सोए हुए तंत्र को जागृत कर गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे। संगम तट पर इलाहाबाद में एक कॉलोनी के निर्माण के दौरान गंगा को प्रदूषित करने की संभावना पर उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर निर्माण कार्य रोके जाने की याचिका दायर की। जिसका अधिवक्ता संघ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहृदय स्वागत किया। न्यायालय ने आदेश जारी कर कॉलोनी के निर्माण पर रोक लगा दिया।

इसी बीच दंडी स्वामी ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती के संपर्क में आकर ज्ञान अर्जित कर उनके शिष्य बन गए और दंडी स्वामी हो गए। अभी उनका सफर यहीं नहीं थमा। कुछ कर दिखाने की प्रतिभा मन में सजाएं जितेंद्रानंद सरस्वती ने अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री बनकर दुनिया का मार्गदर्शन किया और संतों को सहेजने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को जीवंत करने के लिए अपने यात्रा को अनवरत जारी रखते हुए विलुप्त हो चली सभ्यता परंपरा को जीवंत करने के लिए दिन रात एक कर दिया। इनकी प्रतिभा और समर्पण के देखते हुए विश्व हिंदू परिषद के उच्च अधिकार समिति का सदस्य बनाया गया।

स्वामी जीतेंद्रनंद सरस्वती श्री राम मंदिर आंदोलन के अग्रिम कतार के समाजसेवियों में अपना नाम दर्ज कराते हुए दिसंबर 2018 में धर्म आदेश रैली के संयोजक बने जिसमें देश के सभी प्रमुख संतों को साथ लेकर इस कार्यक्रम का संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाया। 1990 में शिला पूजन के दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन के समय इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। एक दिन देवरिया जेल में रहने के उपरांत इन्हें उनके साथियों के साथ 1 माह 14 दिन के लिए बस्ती जेल भेज दिया गया। एक क्रम में यदि स्वामी की अब तक की जीवन यात्रा को देखा जाय तो वह कुछ इस प्रकार दिखता है-

वह बाल्यकाल से ब्रह्मचारी हैं। 14 वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं। इस दौरान संघ परिवार के विभिन्न संगठनों में कार्य किया। संस्कार भारती के संगठन मंत्री के रूप में काशी के गंगातट पर हिन्दू नववर्ष महोत्सव की नींव डाली। स्वामी जन्मजात आन्दोलनकारी हैं। आन्दोलनों में सफलता का स्वामी का रिकोर्ड शत-प्रतिशत है। 1999 में सनातन संस्कृति पर प्रहार के लिए दीपा मेहता वॉटर फ़िल्म बनाना चाह रही थी। आडवाणी का आशीर्वाद उसे प्राप्त था। फ़िल्म की शूटिंग के लिए टीम काशी आयी। स्वामी के नेतृत्व में ज़बर्दस्त आन्दोलन हुआ और फिर दीपा मेहता काशी ही क्या, भारत में कहीं भी इस फ़िल्म की शूटिंग नहीं कर सकीं।

2003 में स्वामी जी ने बिहार के मुज्जफ़्फ़रपुर में प्रेम के द्वापरकालीन उत्सव ‘कौमुदी महोत्सव’ को पुनर्जीवित किया। 2004 में गंगाजी के कार्य को हाथों में लेकर गंगा महासभा के महामन्त्री के रूप में देशव्यापी जनजागरण अभियान चलाया। जिसके फलस्वरूप गंगाजी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया और अब संसद के शीतकालीन सत्र में गंगाजी पर विशेष क़ानून बनाने के लिए विधेयक लाया जा रहा है। 2014 में ज्योतिष पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने दण्डी संन्यासी के रूप में दीक्षित किया। तब से लगातार स्वामी श्रीराम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ की मुक्ति, मठ-मन्दिरों पर से सरकारी नियंत्रण समाप्त हो, फ़र्ज़ी बाबाओं का सामाजिक बहिष्कार हो, जैसे धार्मिक विषयों पर मुखर रहे हैं और अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

2016 के उज्जैन कुम्भ में स्वामी को सनातन धर्म के सभी सम्प्रदायों के शीर्ष संगठन अखिल भारतीय सन्त समिति का महामन्त्री बनाया गया। 2016 में ही स्वामी ने हिन्द-बलोच फ़ोरम की नींव डाली। तब से स्वामी जी पाकिस्तान के निशाने पर हैं। हिन्द-बलोच फ़ोरम बलोचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे बलोच भाई-बहनों का समर्थन करता है। 2018 के नवम्बर में दिल्ली में स्वामी के संयोजन में धर्मादेश कार्यक्रम में देश भर से हज़ारों सन्त का आगमन हुआ। श्रीराम मन्दिर के लिए क़ानून या अध्यादेश की माँग की गयी। श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा देश में फिर से उभर गया और सुप्रीम कोर्ट को जल्द सुनवाई के लिए बाध्य होना पड़ा।

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2019 के प्रयागराज कुम्भ में स्वामी ने हज़ारों सफ़ाई कर्मियों के साथ ऐतिहासिक गंगास्नान कर उन्हें सनातन के अंग होने का एहसास कराया। स्वामी के प्रयासों से सन्तों ने किन्नरों को सनातन धर्म में अंगीकार कर कुम्भ में शाही स्नान की अनुमति प्रदान की। सम्प्रति स्वामी गंगा महासभा और अखिल भारतीय सन्त समिति दोनों संगठनों के महामंत्री हैं। साथ ही विश्व हिन्दू परिषद की उच्चाधिकार समिति के सदस्य हैं।

स्वामी इस समय बहुत उत्साहित हैं। उनकी सनातन की स्थापना की यात्रा को अब गति मिली है। वह कहते हैं, श्रीराम मंदिर का निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा अभी आंदोलन का प्रारंभ है। काशी में भगवान विश्वनाथ जी और मथुरा में योगेश्वर श्रीकृष्ण की भूमि को मुक्त करना प्राथमिकता में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सनातन का महायोद्धा बताते हुए वह कहते हैं कि पीएम मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प के कारण ही भारत विश्वगुरु बन रहा है। आज दुनिया केवल अयोध्या पर नजर लगाए है। अयोध्या से ही अब नए विश्व का निर्माण शुरू हो रहा है। उनका प्रिय मंत्र है-

लोकाभिरामं रणरंगधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।

जय श्रीसीताराम।।

(लेखक संस्कृति पर्व पत्रिका के संपादक और भारत संस्कृति न्यास के अध्यक्ष हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

मो. 9450887186

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