दीप जलाएं हम खुशियों के,
कहीं अंधेरा ना रह जाए।
कर्तव्य साधना करें हम सभी,
रामराज्य ज़न मन में आये।।

संकल्प करें प्रेरणा बनें हम,
जागें जीवन की सभी दिशाएं।
जगमग जलें दीप बहु कृति के,
रहें प्रकाशित सभी निशाएं।।

जल जीवन का संरक्षण हो,
भूजल निर्मल हो भरा रहे।
वृक्ष लताएँ पुष्पित सुरभित,
धरती का आँचल हरा रहे।।

हो उर्वर खेती समृद्धि भरी,
खाद्यान्न सुपोषणकारी हों।
गो दुग्ध से हो पोषक समाज,
उद्यान भी सुमंगलकारी हों।।

अन्तर दृष्टि से देखें समग्र,
सुरक्षित रहे समाज ये सारा।
सीमाओं पर भी रहे दृष्टि,
बने वसुधा परिवार हमारा।।

– बृजेंद्र

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