Pauranik Katha: हमारे देश में कई बड़े-बड़े ऋषि ने जन्म लिए हैं, जिसमें से वेदव्यास एक बड़े महात्मा ऋषि हैं। इनकी न जाने कितनी सारी बातें आज भी हमारे देश को प्रकाशित कर रही है। वेदव्यास महाभारत लिखने वाले महान रचयिता थे। इनका पूरा नाम कृष्ण वेदव्यास था। वेदव्यास सांवले रंग के थे, इसलिए इनका नाम कृष्ण पड़ा था। वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, उनकी माता कौन थी, यह सारी जानकारी आप उनके जन्म की कहानी के साथ जान सकते हैं। तो आइए जाने वेदव्यास के जन्म की कहानी।

एक बार की बात है उपरिचर नाम का एक राजा थे। वह बहुत बड़ा धर्मात्मा और सत्यवादी थे। उन्होंने अपने तप से देवराज इंद्र को प्रसन्न कर एक विमान और न सूखने वाली सुंदर माला ली थी। वह माला अपने हृदय में धारण कर विमान में बैठकर आकाश में परिभ्रमण किया करते थे। उन्हें आखेट का बड़ा शौक था। वह प्रायः वनों में आखेट के लिए जाया करते थे। उनकी रानी का नाम गिरिका था। वह बहुत सुंदर और पवित्र हृदय वाली थी। वह अपने पति को बहुत ही प्रेम करती थी। ईश्वर के प्रति उसकी बहुत बड़ी आस्था थी। इसलिए वह हमेशा भजन, कीर्तन में लगी रहती थी।

एक दिन गिरिका ऋतुमती हुई। 3 दिन के पश्चात जब रानी शुद्ध हुई, तो उपरिचर उसके साथ रमण करने से पूर्व ही वन में आखेट के लिए चले गए। राजा आखेट के लिए तो चले गए, किंतु उसका ध्यान रानी के साथ रमण करने की ओ लगा रहा। दोपहर का समय था। राजा वन में एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठे थे। उस समय शीतल और सुगंधित हवा चल रही थी। मृदुल स्वर में पक्षी गाना गा रहे थे। तब राजा का ध्यान रानी की ओर चला गया। वह रानी के साथ रमण के संबंध में मन ही मन सोचने लगे। राजा कामातुर हो उठे और उनका वीर्य स्खलित हो गया।

राजा ने सोचा उसका वीर्य व्यर्थ नहीं जा सकता। अतः उन्होंने अपने वीर्य को एक दोने में रखकर विमान में बैठे हुए बाज पक्षी को बुलाकर उसे कहा तुम इस दोने को ले जाकर मेरी रानी को दे दो। वह इसे अपने मार्ग में धारण कर लेगी। तब दोने को मुंह में दबाकर बाज राजा के भवन की ओर उड़ चला। जैसे ही बाज यमुना नदी के ऊपर से जा रहा था, दूसरे बाज की नजर उस पर पड़ गई। यह देख कर दूसरा बाज सोचने लगा कि बाज अपने मुख में कुछ खाने का सामान ले जा रहा है, क्यों ना मैं उसके मुंह से यह सामान छीन लूं। यह सोचकर बाज पहल बाज के उपर झपट्टा मारा। जिससे बाज के मुंह से दोना गिरकर यमुना नदी में बह गया।

दोने में रखा वीर्य यमुना नदी में बह गया। तभी एक मछली की दृष्टि उस वीर्य पर पड़ी। उसने सोचा यह खाने की कोई वस्तु है और उसने उसे पानी के साथ निगल लिया। फलकता मछली गर्भवती हो गई। दासराज नामक मल्लाह को वह मछली शिकार में मिली। जब उसने मछली के पेट को बीचो-बीच से काटा तो उसके पेट से एक बालक और एक बालिका निकली। उसने दोनों बच्चे को उपरिचर को भेंट कर दिया। उपरिचर ने बालक को लेकर बालिका को दास को वापस लौटा दिया। दासराज उस बालिका को अपने घर ले जाकर उसका पालन पोषण करने लगा। दासराज ने बालिका का नाम सत्यवती रखा।

सत्यवती मछली के पेट में से उत्पन्न हुई थी, इसलिए उसके शरीर से मछली की गंध निकला करती थी। अतः लोग उसे मत्स्यगंधा भी कहते थे। मत्स्यगंधा धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह बहुत ही खूबसूरत थी। रात्रि को वह अपनी नाव पर बैठकर लोगों को इस पार से उस पार पहुंचाया करती थी। एक दिन दोपहर के समय महर्षि पराशर वहां जा पहुंचे। मत्स्यगंधा को देखकर महर्षि मुग्ध हो गए। उन्होंने कहा सुंदरी तुम्हें अपूर्व सुख मिलेगा, तुम मेरे साथ रमन करों। तब मत्स्यगंधा ने उत्तर दिया महर्षि आप यह कैसी बातें कर रहे हैं। दोपहर का समय है, आसपास लोग बैठे हैं। मैं आपके साथ रमन कैसे कर सकती हूं। पराशर जी ने योग शक्ति से चारों ओर कुहरा कर दिया।

तब पराशर बोले अब हमें कोई नहीं देख सकता तुम निश्चिंत होकर मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लो। मत्स्यगंधा पुनः बोल उठी महर्षि मैं कुंवारी हूं। पिता की आज्ञा के अधीन हूं। आपके साथ रमण करने से मेरा कौमार्य नष्ट हो जाएगा। मैं समाज में लांछित बन जाऊंगी। पराशर जी ने उत्तर दिया, तुम चिंता मत करों मुझसे रमण करने के पश्चात तुम्हारा कौमार्य बना रहेगा। गर्भवती होने पर भी गर्व का चिन्ह प्रकट नहीं होगा। मत्स्यगंधा फिर बोली, मेरे शरीर से मछली की गंध हमेशा निकलती रहती है आप मुझे वरदान दे कि वह गंध सुगंध के रूप में बदल जाए और चार कोष तक यह गंध फैलती रहे। पराशर जी ने तथास्तु कहा। तब मत्स्यगंधा के शरीर से कस्तूरी की गंध निकलने लगी।

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यह सुगंध चारों कोष को सुगंधित कर रही थी। अतः अब वह योजनगंधा भी कहे जाने लगी। पराशर जी ने मत्स्यगंधा के साथ रमण किया था जिसके फलस्वरूप मत्स्यगंधा गर्भवती हुई। यमुना के द्वीप में एक बालक ने उनके गर्भ से जन्म लिया। वह बालक जन्म लेते ही बड़ा हो गया। वह तप करने के लिए वन में चला गया। वहीं बालक जगत में वेदव्यास जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेदव्यास जी का पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन था। उनका जन्म दे द्वीपों के बीच हुए था, इसलिए वह द्वैपायन कहे जाते थे। वेदों के पंडित होने से उन्हें वेदव्यास कहा जाता था। वेदव्यास जी हमेशा अमर हैं। वह आज भी धरती पर मौजूद है और किसी-किसी को दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं। तो यह थी, वेदव्यास जी के जन्म की कहानी।

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