Pauranik Katha: भगवान शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार मात्र से ही बादल फट जाते थे, पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था, मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी धनुष के एक तीर से भगवान शिव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। भगवान श्री राम ने सीता स्वयंवर में, गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा से, शिवजी का धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था। लेकिन भगवान शिव का यह धनुष किसने बनाया था, यह शिव धनुष महाराज जनक के पास कैसे पहुंचा, इस रहस्य को बहुत कम लोग जानते हैं।

तारकासुर पुत्र तारकाक्ष विद्युतमाली और कमलाक्ष ने कठोर तपस्या कर भगवान् शिव को प्रसन्न किया था फिर भगवान् शिव से त्रिपुर मांग लिया। भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान, दे दिया। त्रिपुर एक ऐसा लोक था जहां उन तीनों को कोई नहीं मार सकता था। न मनुष्य, न देवता, न कोई किन्नर उन्हें परास्त कर सकता था। वह तीनों अपराजित हो गये थे, उन्हें मारना असंभव हो गया था। इसी कारण तारकाक्ष विद्युतमाली और कमलाक्ष ने तीनों लोकों पर अत्याचार करना आरम्भ किया। उनके इस अत्याचार को समाप्त करने हेतु, महादेव भगवान् शिव शंकर ने अपने तिनेत्रों से पिनाक धनुष का निर्माण किया, फिर उस धनुष से सबसे पहले त्रिपुर को ध्वस्त कर, भगवान शिव ने तारकाक्ष विद्युतमाली और कमलाक्ष का वध किया। फिर उस धनुष को परशुराम को दिया था।

जब सहस्त्र अर्जुन ने ऋषि परसुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी, जिससे क्रोधित होकर परशुराम ने समस्त पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर देने की प्रतिज्ञा की। और इसी प्रतिशोध की अग्नि में जलकर परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। भगवान शिव ने परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और परशुराम को वरदान मांगने के लिए कहा। भगवान परशुराम धर्म की रक्षा के लिए अहंकारी राजाओं का विनाश करना चाहते थे, इसीलिए ऐसा हथियार माँगा, जिससे समस्त अधर्मी असुरों का विनाश कर सकें।

भगवान शिव ने परशुराम को धर्म की रक्षा हेतु सबसे भारी पिनाक धनुष दिया और उसे उठाने की शक्ति भी प्रदान की। तबसे पिनाक धनुष भगवान परशुराम के पास था। परशुराम उस धनुष की नित्य पूजा अर्चना करते थे। एक बार माता सीता सहित राजा जनक परशुराम के आश्रम में शिवरात्रि की पूजा हेतु आये हुए थे। वहां पर अकस्मात ही माता सीता ने पिनाक धनुष को छुआ फिर उसे क्षण भर में ही उठा लिया। जिस धनुष को उठाने के लिए हजरों की संख्या में सैनिक चाहिए थे। माता सीता द्वारा पिनाक धनुष को उठाते ही सृष्टि में हाहाकार मच गया। सारा ब्रह्माण्ड मानो हिलने लगा, जिससे भगवान् परशुराम की तपस्या भी भंग हो गयी और वे तुरंत पिनाक धनुष के पास पहुंचे।

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भगवान परशुराम भी धनुष को मात सीता द्वारा उठाते देख आश्चर्यचकित रह गए। परशुराम के वहां आ जाने से माता सीता क्षमा मांगती हैं और धनुष को रख देती हैं। बिना अनुमति के उठाने पर राजा जनक भी सीता की और से परशुराम से क्षमा मांगते हैं। तभी परशुराम कहते हैं कि जिस कार्य के लिए यह धनुष मैंने भगवान शिव से माँगा था, वह कार्य पूर्ण हो चुका है। इस धनुष को केवल मैं ही धारण कर सकता था, अन्य कोई नहीं। अब सीता द्वारा इस धनुष को उठाने पर इसकी उपयोगिता के संकेत हमें स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। ये निश्चित रूप से अकस्मात नहीं है। इसके पीछे भी भगवान शिव की ही इच्छा है।

सीता का भाग्य इस धनुष से ही जुड़ा है, इसीलिए इस धनुष को मैं पुत्री सीता को सौंपता हूं। आगे परशुराम राजा जनक से कहते हैं, जो भी इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही आपकी पुत्री का योग्य वर होगा। ऐसा कहकर परशुराम पिनाक धनुष को माता को सौंप देते हैं। फिर राजा जनक पिनाक धनुष लिए अपने राज्य की और चल पड़े। भगवान श्री राम ने सीता जी के स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा से शिवजी का यह धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था।

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