Ashish Vashisht
आशीष वशिष्ठ

संसद के हंगामेदार मानसून सत्र और विपक्ष की अविश्वास प्रस्ताव की राजनीति के अलावा पंजाब में मादक पदार्थों की तस्करी की बढ़ती घटनाओं पर इस हफ्ते पंजाबी अखबारों ने अपनी राय प्रमुखता से रखी है। संसद के मानसून सत्र पर टिप्पणी करते हुए जालंधर से प्रकाशित पंजाब टाइम्स लिखता है, संसद का यह मानसून सत्र भी लगभग सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की भेंट चढ़ गया। इस सत्र के दौरान लोकसभा की 17 बैठकें हुईं। इस दौरान सिर्फ 44 घंटे 15 मिनट ही काम हुआ। बाकी सारा समय व्यर्थ चला गया। विपक्ष के हंगामे के कारण कार्यवाही कई बार स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा चुनाव करीब होने के कारण सरकार और विपक्ष दोनों इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करते रहे। मणिपुर मुद्दे पर दोनों पक्षों के अड़े रहने के कारण लोकसभा ठीक से नहीं चल सकी। राज्यसभा का भी यही हाल रहा। यह अलग बात है कि सरकार ने सत्र के दौरान लोकसभा में भारी बहुमत से 22 विधेयक पारित कराये। अखबार के मुताबिक, वर्तमान परिस्थितियों में संसद में किसी भी तरह की रचनात्मक बहस और मिलजुल कर काम करने की संभावना लगभग शून्य है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नई संसद का चेहरा अलग होगा। अखबार लिखता है कि, मणिपुर मुद्दे पर सर्वमान्य समाधान के लिए स्वस्थ चर्चा बहुत जरूरी थी लेकिन अफसोस की बात है कि इस मुद्दे पर ठीक से चर्चा नहीं हो सकी।

जालंधर से प्रकाशित अज दी आवाज लिखता है, 2014 से लेकर आज तक कांग्रेस को देश और राज्यों के स्तर पर राजनीतिक तौर पर बड़े झटके लग रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस, जो आज इंडिया अलायंस के झंडे तले सभी विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करती है, अपने दुर्भाग्य से सबक लेने को तैयार नहीं है। राज्यसभा में दिल्ली सेवा अध्यादेश विधेयक पारित होने के दौरान शर्मनाक हार के बाद, कांग्रेस के विपक्षी गठबंधन द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में बुरी तरह विफल हो गया। अखबार आगे लिखता है, अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के जवाब के दौरान कांग्रेस को सदन से वॉकआउट नहीं करना चाहिए था। उसे प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान की गई टिप्पणियों का जवाब देना चाहिए था। और उसके साथी दल प्रधानमंत्री द्वारा बोले जा रहे सच का सामना नहीं कर सके और सदन से बहिर्गमन कर गये। अखबार के मुताबिक, मोदी सरकार को नुकसान पहुंचाने के लिए कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस के लिए विनाशकारी साबित हुआ है। कांग्रेस नेतृत्व के लिए अभी भी समय है कि वह अपने सलाहकारों को बदले और आम लोगों से जुड़े मुद्दों का राजनीतिकरण करना सीखे। यदि कांग्रेस ने सबक नहीं सीखा तो निकट भविष्य में ऐसा माहौल बनेगा कि देश से सचमुच उसका सफाया हो जाएगा।

जांलधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विस्तृत संबोधन के साथ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा खत्म हो गई और नतीजा उम्मीद के मुताबिक रहा। इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष ने अपना आक्रामक रुख दिखाते हुए मोदी सरकार को हर संभव तरीके से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रही। उनकी असफलता का कारण यह था कि वे तथ्यों एवं तर्क से लैस नहीं थे। इस कारण वह सरकार को आईना नहीं दिखा पाए। चर्चा के दौरान जिस तरह से विपक्ष बिखरा हुआ नजर आया और अपनी बात ठीक से नहीं रख सका। उससे पता चलता है कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार के लिए वरदान साबित हुआ क्योंकि इससे उसे जनता तक अपनी बात पहुंचाने का मौका मिल गया। ऐसा नहीं है कि देश में समस्याएं नहीं हैं, लेकिन विपक्षी दल इन मुद्दों को ठीक से पेश नहीं कर सके।

अखबार लिखता है, प्रधानमंत्री के संबोधन के दौरान कई विपक्षी नेता सदन से वॉकआउट कर गए। अजीब बात है कि पहले तो विपक्षी नेता पीएम के बयान की मांग पर संसद को चलने नहीं दे रहे थे, लेकिन जब वो बोले तो पूरा जवाब सुनने की क्षमता नहीं दिखा सके। कम से कम विपक्ष को यह एहसास हो जाना चाहिए था कि उसे मणिपुर मुद्दे पर पहले ही संसद में चर्चा के लिए सहमत होना चाहिए था। यह समझना मुश्किल है कि जब सरकार पहले दिन से मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार थी तो विपक्ष तरह-तरह के बहाने बनाकर संसद में हंगामा क्यों करता रहा? विपक्ष चाहे जो भी दावा करे लेकिन अविश्वास प्रस्ताव से उसे कुछ खास हासिल नहीं हो सका। लेकिन सत्ता पक्ष विपक्षी गठबंधन इंडिया के आंतरिक कलह और विरोधाभासों को उजागर करने में सफल साबित हुआ।

चंडीगढ़ से प्रकाशित रोजाना स्पोक्समैन लिखता है, शक्ति सिर्फ संख्याबल की नहीं, बल्कि विचार की भी होती है यह विपक्ष की जीत का भी प्रतीक है। इस विश्वास प्रस्ताव में जो बातें कही जा रही हैं वो आने वाले 2024 के चुनाव में मंचों से दिए जाने वाले भाषणों की एक झलक मात्र है। यहीं पर ‘इंडिया’ गठबंधन की पहली सफलता भी दिख रही है, जो भले ही दिल्ली सेवा विधेयक को नहीं रोक सकी, न ही विश्वास मत पारित करा सकी, लेकिन उसने सत्ताधारी दल को ‘इंडिया’ गठबंधन को गंभीरता से सुनने के लिए मजबूर किया है। इन सबके बीच आज के हीरो राहुल गांधी साबित हुए। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से आज वापस आकर उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें जितना निशाना बनाया जाएगा, राहुल गांधी का कद उतना ही ऊंचा होगा। राहुल गांधी की ‘दिल की बात’ ने ‘मन की बात’ के मुकाबले कही और दिल की बात कहकर भाषण को दिलों तक पहुंचा दिया। राहुल गांधी आज सड़कों पर उतरकर आम भारतीय की पीड़ा को अपने भाषण में पेश कर रहे हैं और यही वजह है कि आज सोशल मीडिया पर उनका भाषण सुनने वालों की भीड़ ठीक उसी तरह उमड़ी जैसे भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ती थी। तर्क और अपील राहुल गांधी में है।

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पंजाब में मादक पदार्थों की तस्करी की बढ़ती घटनाओं पर सिरसा से प्रकाशित सच कहूं लिखता है, पंजाब के सीमावर्ती जिले फिरोजपुर में 77 किलो से ज्यादा हेरोइन बरामद हुई है, जो बेहद चिंताजनक है। हालांकि यह पुलिस की बड़ी उपलब्धि है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर इसकी चर्चा न होना एक बड़ी चिंता का विषय है। हेरोइन की इतनी बड़ी खेप की बरामदगी से इस बात का एहसास होता है कि नशा तस्करों का नेटवर्क कितना बड़ा है। हालांकि ऐसी और भी घटनाएं हुई हैं जहां पुलिस ने ड्रोन के जरिए हेरोइन भेजने की कोशिशों को नाकाम कर दिया है, लेकिन 77 किलो हेरोइन कैसे सीमा पार कर गई, यह आश्चर्यजनक है। अखबार आगे लिखता है, नशीले पदार्थों की तस्करी सिर्फ पुलिस पर छोड़ देने से बात नहीं बनेगी, बल्कि इस अभियान में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक प्रतिनिधियों की भागीदारी जरूरी है। केंद्र व राज्य सरकार को फिरोजपुर की घटना को बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

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जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है, पंजाब में हेरोइन तस्करी के बढ़ते मामलों को देखते हुए तस्करों पर नकेल कसना जरूरी हो गया है। सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले तस्करों पर नकेल कसने के लिए पुलिस को अपना सूचना तंत्र मजबूत करना होगा। अखबार आगे लिखता है, शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब नशे की लत के कारण किसी युवा की मौत न होती हो। अब नशे में धुत्त पड़ी युवतियों की तस्वीरें भी सामने आ रही हैं। इसे गंभीरता से लेना होगा। प्रदेश में नशे की समस्या को पूरी तरह खत्म करने के लिए तस्करों के खिलाफ बहुत कड़ा अभियान चलाना होगा और उन्हें उनकी सही जगह यानी सलाखों के पीछे भेजना होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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