नारी कोमल हृदय की तिल तिल कठोर वेदना।
घर गृहस्थी को हर अमावस पूर्णमासी तौलना।
कुछ जोड़ने कुछ पकड़ने चाह।
सफल गृहस्थी के सुखी उपाय।

अनूप ओझा

ये पंक्तियां कवियत्री सुप्रिया की कविताओं का एक पक्ष चित्रित करती हैं, तो दूसरी तरफ नारी अस्तित्व का बोध भी कराती है। लोक जीवन में नारी के आधार स्तम्भ की स्थिति को संयोजित करती है। कवियत्री सुप्रिया वृत्ति से अधिवक्ता एवं प्रवृति से प्रेम श्रेय साधिका है। उनकी प्रकाशित कृति ”सिंदूरी पात तुलसी के” सहज सरल भाषा शैली में कुल 62 रचनाओं का एक गुलदस्ता है। जिसमें 47 रचनाओं का परिवार समाज संसार में नारी के तन-मन, जीवन, भाव, स्वभाव, गति-प्रगति, दुर्गति एवं दैनिक कार्यकलापों पर कवियत्री ने सजग सोच समझ एवं शोध बोध का दृष्टिकोण परिलक्षित होता है। इस संग्रह में 15 रचनाएं प्रेम पर भी हैं। इस संग्रह की सभी रचनाओं का कथ्य अत्यंत सहज एवं स्पष्ट है।

सामाजिक ताने बाने के हर धागे में नारी को छूने और जीने के सफल प्रयास में स्त्री के भाव विचार को कविता के माध्यम से कवियत्री प्रकट करतीं है। नारी संसार में असीम संभावनाएं की खोज करती कवियत्री की मानोदशा जीवन के हर क्षण को डूब कर जीने की अभिलाषा रखती है। नारी जीवन में साहस और सम्मान की चाह रखने की दृष्टि सुप्रिया की कविताओं आधार हैं। सुप्रिया ”सिंदूरी पात तुलसी के” माध्यम से रिश्तों की बनावट में विश्वास और उनको सहेजने की ताकत का सृजन करने वाली भावनाओं को तलाश रहीं है। सुप्रिया की कविताओं में समाज की सच्चाई है। कवियत्री सुप्रिया अपनी कविताओं के माध्यम से मध्यम वर्ग का सटीक चित्रण और समाज की सच्चाई रेखांकित करतीं है। कविताओं के इस संग्रह की ‘हाउसवाइफ’ रचना में कवियत्री ने समय की चाल में नारी के अस्तित्व को तलाशने का प्रयास किया है।

मेरा वक्त तो अब मेरा ना रहा।
उस पर सभी का हिस्सा रहा।।

इसी तरह ‘ये औरतें’ नामक शीर्षक की कविता में नारी वेदना को आकार देने की कोशिश है।

खुद की पीड़ा को अदरक काली मिर्च वाली चाय।
संग घूट घूट पी जाती।।

‘सुनो मॉओं ‘ और नाम की कविता में कवयित्री ने मां की चिंता को चित्रित करते हुए इस प्रकार व्यक्त किया है

सुनो मॉओं
तुम यही गुन बाँचती जाना।
अपनी लाडो को लाचारी का पाठ सिखाना।।

अपनी एक कविता ‘महावर लगवाती लड़कियों’ में कवियत्री ने ससुराल की विषमताओं पर ससुराल के जीवन को साधने के लिए नारी के उस जीवन की व्यथा को उभारती हैं, जिसमें मौन रहना ही जीवनकला हो जाती है।

अपना व्यक्तित्व रेल सा बनाना।
ससुराल की पटरियों पे चुपचाप चलती जाना।।

जब होता है प्रेम में मन।
मूँदी पलकों के अंदर।
टहलता एक बीता हुआ पल।
हाथ मिला लेखनी से।
लिखवाता एक सुन्दर सी कविता।
पाने के लिये शाबाशी।

इसे भी पढ़ें: एटीएस की ताबड़तोड़ कार्रवाई ने तोड़ी अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की कमर

कवयित्री सुप्रिया की कविता की भाषा में प्रवाह है, एक लय है। कम से कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण सारगर्भित बात कही है। काव्य प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा कविता संग्रह है। सुप्रिया मिश्रा वर्तमान में युवा कवयित्री, कहानीकार, आलोचक और कलाकार के रूप में सक्रिय हैं। इनकी अनेक रचनाएं हिंदी की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

समीक्ष्य कृति : ”सिंदूरी पात तुलसी के”
कवि : सुप्रिया मिश्रा
प्रकाशक : आपस पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रब्यूटर्स अयोध्या,उत्तर प्रदेश- 224001
पेज : 111 मूल्य : 260 रुपए

इसे भी पढ़ें: गिरमिटिया मजदूर नहीं, उद्योगपति बनेंगे दक्षिणांचल के लोग 

Spread the news