फूल नहीं जानता वह कौन सा फूल है
हवा भी कहाँ जानती है
किस में कितनी क्षमता है
जमीन भी कहाँ तय कर पाती है
कौन सा फूल कब गिरेगा
पत्तियों को भी कहाँ पता होगा
खुद का रंग
बारिश भी कितना जानती होगी
अपनी बूंदों को

क्या तुम बता सकते हो
सिल बटटे की हरी चटनी का तीखापन
मात्र उसको देखकर ही,
नहीं ना?

फिर क्यों करते हो खुद का आकलन
परीक्षण किये बिना ही,
क्यों स्वीकार्य करते हो पूर्वानुमानों को
जब करना चाहते हो प्रयास,
क्यों भिगोते हो खुद को
अनगिनत आभाओं से
जब रचना है तुम्हें
स्वर्णिम इतिहास

सुबह की शुरुआत हमेशा सूरज से नहीं होती
कई बार वो खुद के जागने से भी होती है

क्या तुमने देखा है ऐसा कोई वसंत जो
बिना पतझड़ के आया हो
नहीं ना?

फिर क्यों होते हो व्यथित
संघर्ष पथ पर
जब जानते हो सफलता का मार्ग
संघर्ष से ही संभव है

तुम साहस से भरे हुए हो
तुम में सारे रस है
ओ सारे रसों से परिपूर्ण मनुष्य
तुम नहीं जानते तुम कौन हो।

– सौंदर्या

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