Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

हिन्दुत्व की आग में भस्म होगी भाजपा? कर्नाटक में भाजपा की महान उपलब्धि क्या है? यह जानकार आप हैरान और परेशान हो जायेंगे। जिस डाल पर बैठे हैं, उसी डाल को काटते रहे। भाजपा अपने प्राणवायु हिन्दुत्व को कुचलती रही, हिन्दुत्व पर अंतिम कील ठोकती रही, जिहादी राजनीति को संरक्षण देती रही, जिहादियों के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को येन-केन-प्रकारेन दबाती रही। हिन्दू एक्टिविस्टों की एक पर एक कई हत्याएं होती रही और भाजपा की सरकार तमाशबाज बन कर हंसती रही।

मेरे इस तथ्य को नजरअंदाज करने वाले या फिर स्वीकार नहीं करने वाले मेरे सबूत भी देख लो। भाजपा के राज में बेंगलूर में मुसलमानों ने कांग्रेसी विधायक के भतीजे के एक सोशल मीडिया पोस्ट पर दंगा किया, करोड़ों की संपत्तियों को राख में मिला दिया, मंदिरों को अपवित्र किया गया, नुकसान किया गया, 50 से अधिक पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया गया फिर भाजपा की सरकार हंसती रही और मनोरंजन करती रही। हिजाब प्रकरण पर जिहादी राजनीति जोर पकड़ी और पीएफआई की खतरनाक उपस्थितियां सामने आयी, सरकारी कालेज हिजाब हिंसा पर मूकदर्शक बने रहे, कर्नाटक भाजपा सरकार भी तमाशबाज बनी रही। कोरोना काल में मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दू मरीजों के साथ हुए व्यवहार पर भाजपा का सांसद तेजस्वी सूर्या ने ही प्रश्न उठाया था। उसने एक क्षेत्र में 17 ऐसे मुस्लिम कर्मचारियों की पहचान की थी जिनकी नियुक्ति अर्वध ढंग से की गयी थी और वे सभी हिन्दू मरीजों से पैसे वसूलने और उन्हें मृत्यु तक पहुंचाने में लगे हुए थे।

ऐसे मुस्लिम कोरोना कर्मचारियों की मानसिकताएं संदिग्ध थीं और इनकी हिन्दू विरोधी मानसिकताएं स्पष्ट थीं। तेजस्वी सूर्या के हंगामें के बाद भी इन तथाकथित जिहादियों को क्लीन चिट दे दिया गया। अब प्रसंग हिन्दू एक्टिविस्टों की हत्याओं का देख लीजिये। कर्नाटक के शिवमोगा में हर्ष नामक हिन्दू एक्टिविस्ट की हत्या इसलिए कर दिया गया कि उसने हिजाब हिंसा और मानसिकता का विरोध किया था। दक्षिण कन्नड जिले के राजेश पुजारी की हत्या हुई। कटिपल्ला के दीपक राव की हत्या हुई, परेश मेस्टा की हत्या हुई, प्रवीण नेटारू की हत्या हुई। इसके अलावा भी अन्य कई एक्टिविस्टों की हत्याएं हुई हैं। मारे गये हिन्दू एक्टिविस्टों के परिजनों को सबककारी न्याय नहीं मिला और न ही उचित मुआवजा मिला, नौकरियां भी नहीं मिली। इस्लाम के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले जेल भेजे जाते रहे और हिन्दू प्रतीकों पर अपमान करने वाले उदारवाद का लाभ उठाते रहे। सिर्फ टीपू सुलतान पर हिन्दू एक्टिविस्टों का बलिदान पर आहत होने वाले हिन्दू खुश होने वाले नहीं हैं।

कर्नाटक विधान सभा चुनाव इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है? भाजपा और कांग्रेस दोनो के लिए कर्नाटक का विधान सभा चुनाव जीवन-मरन जैसा क्यों हो गया है? कांग्रेस जहां कर्नाटक जीत कर अपनी केन्द्रीय सरकार बनाने का दावा मजबूत करना चाहती है वहीं अपने नेता राहुल गांधी की छवि को मजबूत भी करना चाहती है, ताकि 2024 में कांग्रेस के पक्ष में लहर बन सके और नरेन्द्र मोदी की सत्ता से छूटकारा पा सके। इसके विपरीत भाजपा कर्नाटक में फिर से सत्ता बना कर अपनी धाक बनाये रखना चाहती है और यह संदेश देना चाहती है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की जीत की संभावना उनकी ही होने वाली है। भाजपा कर्नाटक की सत्ता पर बैठी हुई है, इसलिए भाजपा के लिए यहां पर चुनौतियां कुछ ज्यादा ही है, लोगों की आंकाक्षाओं की कसौटी पर भाजपा ही होगी, भाजपा ने मजबूती के साथ काम किया यह नहीं किया, उसने जो वायदे किये थे, वे निभाये या नही निभाये, स्वच्छ शासन दिया या नहीं? ये सभी कसौटियां जनता की होगी और इन्ही कसौटियों पर जनता भाजपा को फिर से सत्ता देना चाहेगी या नहीं देना चाहेगी, पर विचार करेगी।

किसी भी चुनाव में सत्ता विरोधी हवा बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सत्ता विरोधी हवा को वैसी ही पार्टी रोक पाती हैं या फिर सामना करना पड़ पाती है जिनमें जनता की पारिस्थितियों के अनुसार समीकरण बैठाने की क्षमता होती है या फिर उन्हें विकल्पहीनता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, कमजोर विपक्ष का लाभ सामने होता है। लेकिन जनता जब अपना त्रिनेत्र खोलती है तब मजबूत और कभी हार नहीं मानने वाली पार्टी को भी धूल चटा देती है और कमजोर तथा विकल्प के लिए स्वीकार नहीं समझी जाने वाली राजनीतिक पार्टी को भी सत्ता दे देती है। कर्नाटक में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अतिरिक्त सक्रियता के पीछे कारण भी यही है।

कर्नाटक की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां क्या कहती हैं? राजनीतिक परिस्थितियां भाजपा की गुनगान करती है क्या? वास्तव में जब आप राजनीतिक परिस्थितियों का अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि भाजपा ने वैसी उपलब्धियां जनता को देने में सफल नहीं हुई हैं जैसी की जनता की कसौटी थी और भाजपा के वायदे थे। जनता ने भाजपा को सत्ता भी नहीं सौंपी दी थी, बड़ी पार्टी जरूर बनायी थी। लेकिन भाजपा ने केन्द्रीय सत्ता का झांसा देकर अपनी चौधराहट चलायी। कांग्रेस के अंदर में फूट पड़ी, राजनीतिक गतिरोध हुआ, फिर लोभ-लालच का दौर चला। इस प्रकार भाजपा की सरकार बन गयी।

कांग्रेस ने जद एस पर दांव लगाया था जो उसका प्रयोग सफल नहीं हो सका। इस चुनाव में कांग्रेस और जद एस अलग-अलग लड़ रहे हैं। दोपक्षीय राजनीतिक समीकरण कर्नाटक में नहीं है। कर्नाटक में तीसरा पक्ष अनिवार्य रूप से उपस्थिति और साथर्कता बनाये रखते हैं। जद एस यहां पर तीसरा पक्ष है और अभी तीसरे पक्ष के पास देवगोड़ा एक बड़ी शख्सियत के तौर पर उपस्थित हैं। देवगौडा कभी भारत के प्रधानमंत्री थे। देवगौडा की पहुंच जनता के बीच बनी हुई है और जनता के बीच उनकी साख भी बनी हुई हैं।

भाजपा कर्नाटक को आदर्श प्रदेश क्यों नहीं बना पायी? एक आईकॉन के तौर पर प्रस्तुत क्यों नहीं कर पायी? कर्नाटक को भाजपा एक आईकॉन प्रदेश के रूप में बनाने के लिए प्रयास तक नहीं कर पायी। क्या आपने किसी भाजपा के नेता को आप कर्नाटक मॉडल कहते हुए सुना है? कर्नाटक मॉडल तब कहते जब विकास और प्रशासन के क्षेत्र में कोई बड़े सुधार किये होते और उपलब्धियां हासिल की होती। भाजपा हमेशा गुजरात मॉडल की बात करती है। गुजरात में भाजपा ने विकास और प्रशासनिक क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किये थे। गुजरात आज देश का सबसे अच्छा विकास और उन्नति वाला प्रदेश है। गुजरात मॉडल के आधार पर ही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे थे। जनता ने उम्मीद पाली थी कि गुजरात मॉडल का लाभ देश को मिलेगा।

केन्द्रीय प्रशासन में गुजरात मॉडल पर काम कितने हुए यह कहना मुश्किल है पर इतना कहा जा सकता है कि भाजपा कर्नाटक सहित उन प्रदेशों में भी गुजरात मॉडल लागू करने में असफल रही जहां पर भाजपा की राज्य सरकारें स्थापित हैं। खासकर कर्नाटक में गुजरात मॉडल लागू करने में भाजपा सीधे तौर पर असफल रही है। उन्नत कर्नाटक की जगह कांग्रेसी मानसिकता वाला कर्नाटक ही बना रहा। यानी कि भाजपा कर्नाटक में कांग्रेस से अलग दिखती ही नहीं है। काग्रेस का अर्थ भ्रष्टाचार, कदाचार, जिहादीवाद, वशवाद और क्षेत्रवाद की बदबूदार कहानी होती है।

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कर्नाटक को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने में सफल होती तो फिर भाजपा को लाभ क्या होता? भाजपा दो कारणों से दक्षिण में पिटती रही थी। भाजपा को हिन्दू और हिन्दी अस्मित की पार्टी मानी जाती थी। खास कर भाजपा का हिन्दी प्रेम एक तरह से आत्मघाती था और उसके विस्तार के लिए हानिकारक भी था। उत्तर भारत में जहां पर हिन्दी का वर्चस्व है वहां पर भाजपा के हिन्दी प्रेम की मानसिकता तो चली और इसका लाभ भी उसे हुआ पर दक्षिण में हिन्दी प्रेम का लाभ की जगह पर घाटा ही हुआ। हिन्दी को राष्टभाषा बनाने की नीति को दक्षिण में भारी विरोध हुआ था और हिंसा भी हुई थी। हिन्दी की जगह अंग्रेजी को प्राथमिकता मिली। दक्षिण में हिन्दी के विरोध के कारण ही देश में अंग्रेजी का वर्चस्व कायम हुआ। आज दक्षिण में स्थानीय भाषाओं के साथ ही साथ अंग्रेजी भाषा की वर्चस्व देखी जा सकती है।

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हिन्दी प्रेम के बावजूद कर्नाटक में भाजपा की पैठ बढ़ी और कर्नाटक की जनता ने भाजपा को अपनाया भी। यही कारण है कि भाजपा को कर्नाटक में सरकार बनाने और राज करने का एक से ज्यादा अवसर मिला। भाजपा अगर कर्नाटक को उत्तम और आदर्श प्रदेश बना देती तो उसका लाभ दक्षिण के प्रभुत्व वाले राज्यों जैसे तमिलनाडु, आंध प्रदेश, केरल आदि में भी मिलता। तमिलनाडु, केरल और आंध प्रदेश में भाजपा आज भी अपनी दमदार उपस्थिति के लिए तरस रही है। खास कर तमिलनाडु में भाजपा की उपस्थिति लगभग शून्य की बनी हुई है। तमिलनाडु एक बड़ा प्रदेश हैं जहां पर लोकसभा की संख्या भी प्रभावशाली है। अगर कांग्रेस ने हिन्दूत्व के खिलाफ अतिवाद का प्रदर्शन नहीं किया और अराजक व हिंसक तौर पर मुस्लिम जिहाद का समर्थन नहीं किया तो फिर भाजपा की हार निश्चित है। हिन्दूवाद की आग में भाजपा का दफन होना भी निश्चित है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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