Kahani: किसी के पास धन बहुत है तो यह कोई विशेष भगवत्कृपा की बात नहीं है। ये धन आदि वस्तुएँ तो पापी को भी मिल जाती हैं- ‘सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी होय।’ इनके मिलने में कोई विलक्षण बात नहीं है। एक राजा थे। उस राजा की साधु-वेश में बड़ी निष्ठा थी। यह निष्ठा किसी-किसी में ही होती है। वह राजा साधु-सन्तों को देखकर बहुत राजी होता। साधु-वेश में कोई आ जाय, कैसा भी आ जाय, उसका बड़ा आदर करता, बहुत सेवा करता। कहीं सुन लेता कि अमुक तरफ से सन्त आ रहे हैं तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलों में रखता और खूब सेवा करता। साधु जो माँगे, वही दे देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी।

पड़ोस-देश में एक दूसरा राजा था, उसने यह बात सुन रखी थी। उसके मन में ऐसा विचार आया कि यह राजा बड़ा मूर्ख है, इसको साधु बनकर कोई भी ठग ले। उसने एक बहुरुपिये को बुलाकर कहा कि तुम उस राजा के यहाँ साधु बनकर जाओ। वह तुम्हारे साथ जो-जो बर्ताव करे, वह आकर मेरे से कहना। बहुरुपिया भी बहुत चतुर था। वह साधु बनकर वहाँ गया। वहाँ के राजा ने जब यह सुना कि अमुक रास्ते से एक साधु आ रहा है, तो वह उसके सामने गया और उसको बड़े आदर-सत्कार से अपने महल में ले आया, अपने हाथों से उसकी खूब सेवा की।

एक दिन राजा ने उस साधु से कहा कि ‘महाराज, कुछ सुनाओ।’ साधु ने कहा कि ‘राजन्! आप तो बड़े भाग्यशाली हो कि आपको इतना बड़ा राज्य मिला है, धन मिला है। आपके पास इतनी बड़ी फौज है। आपकी स्त्री, पुत्र, नौकर आदि सभी आपके अनुकूल हैं। इसलिये भगवान की आप पर बड़ी कृपा है!’ इस प्रकार उस साधु ने कई बातें कहीं। राजा ने चुप करके सुन लीं। दो-तीन दिन रहने के बाद वह साधु (बहुरुपिया) बोला कि ‘राजन्! अब तो हम जायँगे।’ राजा बोला- ‘अच्छा महाराज, जैसी आपकी मर्जी।’ राजा ने उसके आगे खजाना खोल दिया और कहा कि इसमें से आपको जो सोना-चाँदी, माणिक-मोती, रुपये-पैसे चाहिये, खूब ले लीजिये।

उस साधु ने वहाँ से अच्छा-अच्छा माल ले लिया और ऊँट पर लाद दिया। जब वह रवाना होने लगा तब राजा ने कहा कि ‘महाराज, यह तो आपने अपनी तरफ से लिया है। एक चाँदी का बक्सा है, वह मैं अपनी तरफ से देता हूँ।’ राजा ने एक चाँदी के बक्से को एक रेशमी जरीदार कपड़े में लपेटकर उसको दे दिया और कहा कि ‘यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।’ उस साधु ने वह बक्सा ले लिया और वहाँ से चल दिया। वह साधु (बहुरुपिया) अपने राजा के पास पहुँचा। राजा ने पूछा कि ‘क्या-क्या लाये?’ उसने सब बता दिया कि ‘लाखों-करोड़ों का धन ले आया हूँ।’ राजा ने समझा कि यह पड़ोस का राजा महान मूर्ख ही है, क्योंकि इसको साधु की पहचान ही नहीं है कि कैसा साधु है।

यह तो बड़ा बेसमझ है। वह बहुरुपिया बोला कि ‘एक बक्सा मुझे उस राजा ने अपनी तरफ से दिया है कि यह मेरी तरफ से भेंट है।’ राजा ने कहा कि ‘ठीक है, बक्सा लाओ, उसको मैं देखूँगा।’ उसने वह बक्सा राजा के पास रख दिया और उसकी चाबी दे दी। राजा ने खोलकर देखा कि चाँदी का एक बक्सा है, उसके भीतर एक और चाँदी का बक्सा है, फिर उसके भीतर एक और चाँदी का छोटा बक्सा है। तीनों बक्सों को खोलकर देखा तो भीतर के छोटे बक्से में एक फूटी कौड़ी पड़ी मिली। राजा ने सोचा कि क्या मतलब है इसका। तो वह समझ गया कि यह राजा मूर्ख नहीं है, बड़ा बुद्धिमान है। साधु-वेश में इसकी निष्ठा आदरणीय है। राजा ने बहुरुपिये से पूछा कि ‘तुमसे क्या बात हुई, सारी बात बताओ।’ उसने कहा कि ‘एक दिन उस राजा ने मेरे से कहा कि महाराज, कुछ सुनाओ। मैंने कहा कि तुम तो बड़े भाग्यशाली हो। तुम्हारे पास राज्य है, धन-सम्पत्ति है, अनुकूल स्त्री-पुत्र आदि हैं, तुम्हारे पर भगवान की बड़ी कृपा है।

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यह सुनकर राजा सारी बात समझ गया। तीन बक्से होने का मतलब था- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। इनके भीतर क्या है। भीतर तो फूटी कौड़ी है, कुछ नहीं है। बाहर से वेश-भूषा बड़ी अच्छी है, बाहर से बड़े अच्छे लगते हैं पर भीतर कुछ नहीं है। आप पर भगवान की बड़ी कृपा है- यह जो बात कही, यह फूटी कौड़ी है। यह कोई कृपा हुआ करती है? कृपा तो यह होती है कि भगवान का भजन करे, भगवान में लग जाय।

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