Kahani: एक समय की बात है किसी गांव में एक साधु रहते थे, वे भगवान की भक्ति में लीन रहते और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करते थे। उनका भगवान पर अटूट विश्वास था और गांव वाले भी उनका बहुत सम्मान करते थे। एक बार गांव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई। चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊंचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे।
लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं, तो उन्हें बाढ़ के बारे में जानकारी और ऊंची जगह पर चले जाने की सलाह दी। साधु ने कहा, तुम लोग अपनी जान बचाओ, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा। इस पर लोग वहां से चले गए। धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया पानी साधु महाराज की कमर तक पहुंच गया। इसी बीच वहां से राहत पहुंचाने वाली टीम की एक नांव गुजरी, टीम के सदस्य ने कहा कि महाराज नाव पर सवार हो जाइए, हम आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा देंगे। साधु महाराज बोले, नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा। साधु का उत्तर सुनकर टीम आगे बढ़ गई।
अगले दिन बाढ़ और भी प्रचंड हो गयी, पानी से बचने के लिए साधु महाराज ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगे। इसी बीच उन्हें गड़गडाहट की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकाप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया पर साधु फिर बोले मैं मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा।
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उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया। कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गई। मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुंचे और भगवान से बोले, हे प्रभु मैंने आपकी पूरी लगन के साथ आराधना की, तपस्या की, लेकिन जब मैं पानी में डूबकर मर रहा था तब आप मुझे बचाने नहीं आए, ऐसा क्यों प्रभु?
भगवान बोले, हे साधु महात्मा, मैं तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया। पहली बार ग्रामीणों के रूप में, दूसरी बार नाव वाले के रूप में और तीसरी बार हेलीकाप्टर द्वारा बचाव दल के रूप में, लेकिन आपने मुझे पहचाना ही नहीं। यह सुनकर साधु महाराज को अपनी गलती का अंदाजा हो गया और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी।
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