Kahani: एक पुरानी कहानी है पंचतंत्र में। एक गांव में एक युवक था। उसका कुल काम इतना था, डट कर दूध पीना, दंड-बैठक मारना और हनुमानजी के मंदिर में पड़े रहना। गांव के लोग उसे प्रेम करते थे, क्योंकि उसके कारण गांव की दूर-दूर तक ख्याति थी। उस जैसा पहलवान कहीं नहीं था। और उसको कुछ काम ही नहीं था, बस दूध पीना, दंड-बैठक मारना और हनुमानजी का सत्संग के सिवा।

लेकिन वहां का राजा उससे बहुत नाराज था। क्योंकि राजा जब भी अपने हाथी पर बैठ कर निकलता मंदिर के सामने से, वह युवक कभी-कभी बाहर आ जाता और हाथी की पूंछ पकड़ लेता, और राजा अटक जाता। हाथी एक कदम भी न चल पाए। ऐसा उस युवक का बल था! अब तुम सोच सकते हो कि राजा बैठा हाथी पर, महावत हाथी को मार रहा है, धक्के दे रहा है कि चल! और वह युवक पीछे पूंछ पकड़े खड़ा है और हाथी आगे नहीं बढ़ पा रहा। ऐसे में भद्द हो जाती, भीड़ लग जाती। राजा की हालत बुरी हो जाती थी कि मेरी भी क्या स्थिति है। हाथी सही अपने पास, किन्तु किस काम का है।

आखिर राजा ने एक साधु से कहा कि कोई मार्ग निकलना पड़ेगा। क्योंकि बाहर निकलने में मैं डरता हूं कि कहीं वह युवक न मिल जाए। वह मेरे हाथी की दुर्गति कर देता है, मेरी दुर्गति कर देता है। वह तमाशा बना देता है, और वह मंदिर बीच बाजार में है। एक ही रास्ता है, वहां से गुजरे बिना बन भी नहीं सकता। कहीं भी जाओ, तो वहीं से गुजरना पड़ता है। उस युवक को कोई धंधा नहीं है। बस वह वहीं बैठा रहता है, हनुमानजी के मंदिर में। मैं इतना डरने लगा हूं कि मैं पहले खबर करवा लेता हूं कि वह युवक मंदिर में है कि कहीं गया हुआ है? वह कहीं जाता भी नहीं। बस या तो दंड-बैठक मारता रहता है या दूध पीता रहता है। बस हनुमानजी और सत्संग! क्या करूं?

उस साधु ने कहा, चिंता न करो। तुम एक काम करो, युवक को बुलवाओ। युवक बुलाया गया। साधु ने कहा कि देख, कब तक लोगों पर निर्भर रहेगा? किसी दिन अगर लोगों ने खिलाना-पिलाना बंद कर दिया, तब तेरा क्या होगा? युवक ने यह कभी सोचा ही न था कि फिर क्या होगा? फिर कभी सवाल ही नहीं उठा था। फुर्सत कहां थी फिर-इत्यादि की। उसने कहा, यह मैंने कभी सोचा नहीं।

तो उस साधु ने कहा, सोच, नहीं तो बाद में मुश्किल में पड़ेगा। जवानी हमेशा थोड़े ही रहेगी। आज है, कल खत्म हो जाएगी। आज लोग खिलाते-पिलाते हैं, क्योंकि गांव की प्रतिष्ठा है कि हमारे पास पहलवान है, इस जैसा पहलवान कहीं भी नहीं। मगर कल बूढ़ा हो जाएगा, फिर क्या होगा? सुन मेरी। राजा बहुत राजी है, तुझ पर बहुत प्रसन्न है। वह तुझे एक रुपया रोज देने को राजी हैं। उन दिनों एक रुपया चांदी का एक महीने के लिए काफी था। एक रुपया रोज देने को राजी हैं, मगर एक छोटा सा काम करना पड़ेगा।

उस युवक ने कहा, काम! काम तो मैं कुछ जानता नहीं। दंड-बैठक लगा सकता हूं, दूध पी सकता हूं और हनुमानजी का सत्संग कर सकता हूं। काम मैं कुछ और तो जानता नहीं। पढ़ा-लिखा भी ज्यादा नहीं, बस हनुमान-चालीसा। वह भी मुझे याद है, वह भी मैं पढ़ नहीं सकता। तो काम मैं क्या करूंगा? साधु ने कहा, काम ऐसा देंगे जो तू कर सकता है। बड़ा सरल काम है। रोज सुबह छह बजे मंदिर का दीया बुझा दिया कर और रोज शाम छह बजे जला दिया कर। इसका तुझे एक रुपया मिलेगा।

उसने कहा, यह काम सरल है। मैं मंदिर में पड़ा ही रहता हूं, शाम जला दूंगा छह बजे, सुबह छह बजे बुझा दूंगा और एक रुपया मिलेगा रोज। युवक राजी हो गया। राजा ने कहा, इससे क्या होगा? और आपने एक मुसीबत कर दी। वह और दूध पीएगा! और यह कोई काम है? साधु ने कहा, तुम थोड़ा रुको, जल्दी न करो। हमारे अपने रास्ते होते हैं। महीने भर बाद इसका उत्तर दूंगा। महीने भर तक तुम गांव से बाहर निकलना ही मत। महीने भर बाद साधु ने कहा कि अब तुम अपने हाथी पर बैठ कर जाओ।

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राजा निकला अपने हाथी पर। महीने भर से युवक राह भी देख रहा था कि राजा निकला नहीं। उसको भी मजा आता था–हाथी की पूंछ पकड़ कर रोक देना। उस दिन उसने हाथी की पूंछ पकड़ कर रोका कि घिसट गया, बुरी तरह घिसट गया, बड़ी भद्द हो गई। महावत को हाथी को मारना भी नहीं पड़ा। हाथी ही घसीट दिया युवक को। राजा ने साधु से पूछा, तुमने क्या किया? मैं तो सोचता था उलटी हालत हो जाएगी।

उसने कहा कि नहीं, इसको चिंता में डाल दिया। अब इसको एक चिंता बनी रहती है कि छह बजे कि नहीं? यह बार-बार लोगों से पूछता है, भाई, कितने बजे? छह तो नहीं बज गए? रात भी चैन से सो नहीं पाता, दो-चार बार उठ आता है कि छह तो नहीं बज गए, वह दीया बुझाना है। शाम छह बजे ठीक दीया जलाना है। इसकी पुरानी मस्ती चली गई। इसको मैंने चिंता दे दी। इसकी मस्ती चली गई, इसका बल चला गया।

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