Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

रात के दस बजे थे। मैं रात्रि भ्रमण पर था। निश्चित था। कोई डर नहीं था, क्योंकि क्षेत्र तो अपना ही था। ऐसे भी दिल्ली के मुख्य क्षेत्रों में सुरक्षा तो सक्रिय ही रहती है। मुझे यह उम्मीद तक नहीं थी कि मैं एक फ्रेंडली लूट का शिकार हो जाउंगा। पर घटनाएं तो अचानक ही घटती है। घटनाएं घटने की उम्मीद होती तो सर्तक और सावधान के साथ ही साथ प्रतिकार के कवच भी साथ होते?

अचानक एक शराबी मेरे पास आया। वह बोल पड़ा। अरे मेरे भाई तू कहां था। इतने दिनों के बाद मिला। तू मेरा भाई है, तू मेरा दोस्त है। मैं तुम्हारा कितने सालों से राह देख रहा था, इंतजार कर रहा था। आगे बोला, बोलो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं? तुम जो बोलोगे, मैं वही करूंगा। तुम्हारे पास कोई चीज की कमी है तो बोलो, अभी दुकान से खरीद देता हूं। इसके अलावा भी उसने कई वाक्य बोले।

मैं दिमाग पर जोर डाला। याद आया। मेरा पुराना परिचित निकल गया। मैं दिल्ली स्थायी रूप से रहने के लिए आया था, उस समय यानी 1992 का परिचित था। शराबी पहले भी था। वह सोशल वर्कर भी था। पर उसकी रात में पीने के बाद सड़कों पर घूमना और परिचितों को परेशान करना, प्रिय करतूत थी। फिर अचानक मेरे गले में पड़े मफलर की प्रशंसा करने लगा। कहा तुम्हारा यह मफलर बहुत अच्छा है, तुम्हारे गले में नहीं मेरे गले में यह मफलर अच्छा लगेगा। मेरे गले से मफलर लेकर अपने गले में लगा लिया। मैं सोचा कि यह सिर्फ मजाक कर रहा है। वह बोला कि तुम्हे मैं दूसरा मफलर दिला देता हूं। फिर वह मफलर लेकर चला गया। मैं मफलर ले जाते हुए सिर्फ देखता रह गया।

उस शराबी को क्या मालूम? मेरा यह मफलर कितनी कीमती और पसंदीदा था। उसे यह भी मालूम नहीं कि मैंने उस मफलर को कहां से मंगवाया था और मंगवाने में मुझे कितनी परेशानी हुई थी। इस मफलर का मूल्य पांच हजार रुपये था। मैंने इसे कश्मीर से मंगवाया था। कश्मीर से मंगवाने में मुझे बहुत परेशानी हुई थी और प्रयास भी खूब करने पड़े थे। अगर इतना बड़ा मूल्य नहीं चूकाता और प्रयास नहीं करता तो फिर वह मफलर मेरे गले में नहीं पहुंचता।

लूटेरा शराबी कंगाल कतई नहीं है। अच्छी संपत्ति वाला है। वह एक चार मंजिला बिल्डिंग का मालिक है। उसके बच्चे अच्छी जगह पर गतिशील हैं। मफलर के संबंध में आज की पीढ़ी क्या जानें? मफलर व्यक्ति के लिए कितना महत्वपूर्ण होता था। यह धारणा थी कि मफलर है तो आधी ठंढ छूमंतर हो जाती है। बचपन से यह मन में बैठ गया था। हमारी पीढ़ी के लोगों के गले में मफलर जरूर होती थी।

1980 के दशक तक लाल ईमली के मफलर की अपनी धाक होती थी। लाल ईमली के मफलर गले में लगाना और लाल ईमली का चादर, शॉल ओढ़ना शान का विषय होता था और उसकी गिनती विशेष मनुष्य के तौर पर होती थी। मफलर के साथ ही साथ सिक्को फाइव घड़ी और बजाज स्कूटर स्टेटस सिंबल हुआ करती थी। लाल ईमली का मफलर तो शुलभ हो जाता था। पर सिक्को फाइव घड़ी और बजाज स्कूटर पैसा होने के बाद भी सपना ही होती थी।

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सिक्को फाइव घड़ी सोवियत संघ मेड थी और ऑटोमेटिक भी थी, चाभी भरनी नहीं होती थी। शेष घड़ियों में चाभी भरनी होती थी। लाखों लोगों के अनुपात में एक मनुष्य के पास यह घड़ी होती थी। यानी कि लाखों में एक मनुष्य सिक्को घड़ी पहनने वाला होता था। बजाज स्कूटर के लिए वर्षों लाइन में लगनी पड़ती थी। बजाज स्कूटर की ब्लैक मार्केंटिंग खूब होती थी। मैं अपने आप को विशेष मनुष्य तो नहीं कह सकता हूं पर मैं सौभाग्यशाली जरूर था कि मेरे पास लाल ईमली का मफलर भी होता था, सिक्को फाइव घड़ी भी होती थी और बजाज स्कूटर भी था। सिक्को फाइव घड़ी भी मैंने नयी खरीदी थी और बजाज स्कूटर भी नयी खरीदी थी। उस काल में बजाज स्कूटर का होना आडी कार होने का अहसास होता था, स्वाभिमान भी होता था। वह बजाज स्कूटर गांव स्थित मेरे घर में आज भी निशानी के तौर पर रखा हुआ है।

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आज मेरा गला मफलर रहित है। उस मफलर की ताजगी और गुरूर को भूल नहीं पा रहा हूं। उस शराबी से मैं वह मफलर मांग भी नहीं सकता। वैसा नया मफलर इस सर्दी तक मुझे शायद ही मिल पायेगा? वैसा मफलर खरीदने में मुझे पांच हजार से ज्यादा पैसे चुकाने होंगे और कश्मीर से मंगवाना पड़ सकता है। परिस्थितियों और घटनाओं पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है। उस मफलर की नियति उस शराबी के गले में पड़ कर शराब की बदबू सूंघेत रहने की होगी। जैसे चंदन की नियति विशैले सर्प के बीच रहने की होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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