Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

दलितों का आरक्षण लूटना क्यों चाहते हैं मुस्लिम और ईसाई? इस प्रश्न पर अब दलित राजनीति धीरे-धीरे गर्म हो रही है। दलित संगठनों में इसको लेकर न केवल चिंता है, बल्कि आक्रोश भी कम नहीं है। अब छोटे-छोटे विचार संगोष्ठियों में दलितों के आरक्षण पर डाका डालने को लेकर विचार-विमर्श शुरू भी हो चुका है। अगर इस पर आधारित विचार-विमर्श आगे बढ़ता है तो फिर यह प्रसंग विस्फोटक हो सकता है। यह प्रसंग विस्फोटक होगा तो फिर इसके चपेट में मुस्लिम-ईसाई की मजहबी राजनीति के साथ ही साथ उनकी कथित मित्रता भी आयेगी। इसके अलावा दलितों के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाने वाले वामपंथियों, एनजीओ छाप के लोग भी आयेंगे।

दलितों के नाम पर राजनीति करने वाली मायावती, रामदास आठवाले, प्रकाश अंबेडकर सहित अन्य सभी को इस विस्फोटक प्रश्न पर चुप्पी तोड़नी ही पड़ेगी। अगर दलित कालनेमी पार्टियां अपनी चुप्पी नहीं तोड़ती है और मूकदर्शक बनी रहती हैं, तो फिर दलित जातियां इन्हें अपना हमदर्द और हितैषी मानेगी तो क्यों और कैसे? मुस्लिम-ईसाई प्रकरण पर दलित जातियों की सोच और दलित पार्टियों की सोच कहीं से भी एक नहीं है।

दलित पार्टियां जहां दलित-मुस्लिम और ईसाई राजनीतिक गठजोड़ की समर्थक हैं तो फिर दलित जातियां स्थानीय स्तर पर और धर्म के स्तर पर मुसलमानों और इसाइयों से न तो मधुर संबंध रखती हैं और न ही उन्हें मुसलमानों व ईसाईयों के साथ राजनीतिक एकता प्रभावित करती हैं। खासकर दलितों के बीच मुस्लिम समुदाय के प्रति सोच कोई हितैषी जैसी भी नहीं है।

Dalit politics

मुसलमानों और ईसाइयों को दलित कोटे से आरक्षण देने की साजिश कांग्रेसी सरकार में शुरू हुई थी। जब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की सरकार थी तब खासकर ईसाई संगठनों ने इसकी शुरुआत की थी। सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम और इसाई संगठनों ने दर्जनों याचिकाएं डाली थी। इसके पीछे सोनिया गांधी का दिमाग बताया जाता है। सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा गठित रंगनाथ मिश्र आयोग ने दलित कोटे में मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण देने की सिफारिश की थी। सोनिया गांधी के दबाब में अनुसूचित जाति और जन जाति आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष बूटा सिंह ने भी समर्थन दिया था। मनमोहन सिंह सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है यानी कि दलितों के आरक्षण पर डाका डाला जा सकता है।

एक बड़ा प्रश्न यह है कि जो दलित कभी मुस्लिम और ईसाई बने हैं, उन्हें इस काल खंड में भी दलित माना जाये या नहीं? अगर हम इस प्रश्न पर विचार करें, तो सीधे तौर पर पायेंगे कि विश्वासघात, अपमान, बइमानी और अमानवीय खेल का है। दलित वर्ग से आने वाले लोगों को किस भरोसे मुस्लिम या ईसाई बनाया गया था? दलित लोग जो ईसाई बनें हैं या फिर मुस्लिम बने हैं, वे सभी का न तो मन परिवर्तन हुआ था और न ही उन्हें इस्लाम और क्रिश्चियनीटी से प्रेम था, प्रभावित भी नहीं थे। फिर किस आधार पर ये मुस्लिम और ईसाई बनें थे?

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वास्तव में उन्हें धोखा दिया गया था, विश्वासघात का शिकार बनाया गया था, लालच दिया गया था। जिस तरह एक शिकारी पक्षी या किसी जानवर को फंसाने के लिए जाल डालता है और जाल में चारा-दाना डाल कर पक्षी व जानवर को फंसाता है, उसी प्रकार से इस्लाम और ईसाइयत ने दलितों का धर्म परिवर्तन कराने के लिए जाल बिछाया था। भोले-भाले दलित उस साजिश और विश्वासघात के जाल में फंस गये। दलितों को लालच यह दिया गया था कि इस्लाम में जाति नहीं है, इस्लाम में रंगभेद नहीं है, इस्लाम में वंश भेद नहीं है, इस्लाम में छूआछूत नहीं है, इस्लाम में सद्भावना है, इस्लाम में भाईचारा है, इस्लाम में बराबरी का अधिकार है। इसी तरह के विश्वासघात और साजिश ईसाइयों ने रची थी।

इस्लाम और ईसाइयों की साजिश में दलित फंस कर मुसलमान भी बने और ईसाई भी बनें। जब ये मुस्लिम और ईसाई बने थे, तब इन्हें खुशी बहुत थी, क्योंकि इन्हें तत्काल धन और सुविधाओं से लैश किया गया था। लेकिन न तो इन्हें छूआछूत से निजात मिली और न उन्हें बराबरी का अधिकार दिया गया।

हिन्दू, बौद्ध और सिख दलितों का आरक्षण लूटने के लिए गजब का तर्क दिया जा रहा है। इनके तर्क सुनेंगे तो आप दंग रह जायेंगे और निष्पक्ष विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि इस्लाम और ईसाइत ने सनातन के खिलाफ कितनी बड़ी साजिश की थी, सनातन के खिलाफ कितना बड़ा झूठ खड़ा किया था। इस्लाम और ईसाइत के मौलवियों और पादरियों का कहना है कि उनके मजहब में छूआछूत नहीं है और न ही जाति-भेद है और न ही काम की कसौटी पर कोई अपमान जनक बात है, पर मुसलमानों और ईसाइयों के बीच में जाति भी है, छूआछूत भी है और काम के आधार पर अपमान भी है, इसलिए इन्हें भी दलित की श्रेणी में आरक्षण मिलना चाहिए।

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उनके इस तक और इस कसौटी पर देखेंगे तो फिर सनातन में भी कहीं से भी कोई छूआछूत नहीं रहा है। इस संबंध में सनातन धर्म के प्रचंड ज्ञाता और दलित विचारक तथा पूर्व सांसद विजय सोनकर शास्त्री कहते हैं कि भीमराव अंबेडकर अपनी पुस्तक में कहते हैं कि वेद में कोई जाति या फिर छूआछूत नहीं है। यह किसी तरह से सनातन का विषय नहीं है, छूआछूत चौथी शताब्दी की देन है, जबकि सनातन तो लाखों साल पुराना धर्म है।

विजय सोनकर शास्त्री कहते हैं कि मुसलमानों के भारत पर कब्जा करने के साथ ही साथ भारत में छूआछूत विकराल रूप से धारण किया। विजय सोनकर शास्त्री आगे कहते हैं कि ईसाई और इस्लाम उन्हें अच्छा लगता और इस्लाम व ईसाई दलितों के लिए अनिवार्य मजहब होते तो फिर अंबेडकर बौद्ध क्यों बनते?

अगर मुसलमानों और ईसाइयों को भी दलित मानकर आरक्षण दे दिया गया, तो फिर क्या होगा? एक तरह से भारत की सनातन संस्कृति समाप्त हो जायेगी। राजनीति भी मुस्लिम और ईसाइयों की गुलाम हो जायेगी। खासकर भारत को इस्लामिक राज में तब्दील करने की मजहबी और जिहादी काम आसान हो जायेगा। अभी विधानसभा और लोकसभा सीटें जो दलितों के लिए आरक्षित हैं उन पर कब्जा मुसलमानों का भी होगा। चूंकि जनसंख्या में ईसाई कम है और मुसलमान ज्यादा हैं, इसलिए इस प्रसंग का सबसे ज्यादा लाभ मुसलमानों को ही होगा।

विधानसभाओं और लोकसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ेगी, तो फिर मुसलमान जिहादी-मजहबी प्रसंग पर ब्लैकमैलिंग और सौदेबाजी करेंगे। ब्लैकमैलिंग और सौदेबाजी में मुसलमानों की जिहादी-मजहबी मानसिकताएं भी तुष्ट होगी। दलित फिर से हाशिये पर खडे रहेंगे, उनकी स्थिति वर्तमान से भी बदत्तर होगी।

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सर्विस जिहाद और लैंड जिहाद का शिकार भी दलितों और आदिवासियों को मुसलमान बना रहे हैं। सरकारी नौकरी करने वाली दलित और आदिवासी लड़कियों को लव जिहाद में फंसा कर अपनी तीसरी और चौथी बेगम बनाकर मुसलमान शोषण कर रहे हैं, इसके अलावा दलित और आदिवासी जमीन भी कब्जा कर रहे हैं। जिन मुस्लिम और ईसाई जातियों को दलित की श्रेणी में आरक्षण चाहिए उन्हें पहले से ही आरक्षण मिल रहा है।

मुस्लिम की दर्जनों जातियों को पिछड़े वर्ग में आरक्षण मिल रहा है। जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुई थीं, तब मुस्लिम जातियों को भी पिछड़े वर्ग के आरक्षण से जोड़ा गया था। इसके अलावा विभिन्न राज्य सरकारों ने समय-समय पर अपनी वोट राजनीति की जरूरत के अनुसार मुसलमानों की जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने का काम किया है। जब ईसाइयों और मुसलमानों को पहले से ही पिछडे वर्ग में आरक्षण मिल रहा है तो फिर ये दलितों के आरक्षण को क्यों लूटना चाहते हैं।

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ब्रिटिश शासनकाल में भी मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण देने की मांग हुई थी जिसे ठुकरा दिया गया था। अंबेडकर ने खुद ही मुसलमानों और ईसाइयत को आरक्षण देने से मना कर दिया था। दलितों को आरक्षण कोई जाति के आधार पर नहीं है बल्कि भेदभाव के शिकार लोगों की कसौटी पर मिला है। निसंदेह तौर पर कोई दलित जब मुसलमान बनता है और ईसाई बनता है तो फिर उसकी जाति समाप्त हो जाती है और उसकी पहचान भी दलित की समाप्त हो जाती है। फिर जाति के भेदभाव का प्रश्न ही नहीं उठता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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