Pragya Mishra
प्रज्ञा मिश्रा

रोजमर्रा की ज़िंदगी में, शब्दों का चयन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए, अन्यथा अर्थ का अनर्थ बनते देर नहीं लगती। एक बार यदि किसी सन्दर्भ में कोई गलत शब्द चलन में आ गया तो उसका प्रयोग शनैः शनैः परम्परा में समाहित हो जाता है। हमें पता भी नहीं चलता कि हम जिस शब्द का प्रयोग सम्मान प्रदर्शित करने के लिए कर रहे हैं वही शब्द वास्तविक अर्थ में कोई और ही भाव छुपाए हुए है।

हाल ही में भारतीय सेना द्वारा एक परिपत्र जारी किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सैन्याधिकारियों और जवानों को अब ‘शहीद’ नहीं लिखा जाएगा। सेना ने उन्हें बलिदानी, वीर, वीरगति को प्राप्त वीर, वीर योद्धा, दिवंगत नायक जैसे संज्ञाओं से संबोधित करने की सलाह दी है। इस परिपत्र के अनुसार, बलिदान होने वाले जवानों के लिए सेना, पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की शब्दावली में कहीं भी ‘शहीद’ शब्द नहीं रहा है।

सेना की तरफ से जारी इस परिपत्र के निहितार्थ को भलीभाँति समझने के लिए ‘शहीद’। शब्द के अर्थ और इतिहास, भूगोल को समझना आवश्यक है। ‘शहीद’ शब्द को अंग्रेजी में ‘Martyr’ कहते हैं। English Dictionary Webster में ‘Martyr’ शब्द को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि वह व्यक्ति जो किसी विशेष उद्देश्य खासकर धार्मिक विश्वास से जुड़े उद्देश्य के लिए अपनी जान दे देता है उसे ‘Martyr’ कहते हैं। इस शब्द का संबंध शुरू से ही ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म से रहा है। ईसा मसीह की हत्या के उपरांत उनके समर्थकों को अनेक यातनाएं दी गईं। अत्याचार और यातना सहने वाले ईसा के इन्हीं अनुयायियों को ‘Martyrs’ का दर्जा दिया गया।

शहीद शब्द मूलतः अरबी भाषा से उपजा है। कुरान और हदीस में कई संदर्भों में इस शब्द का उल्लेख मिलता है। मुख्य रूप से इसके दो अर्थ निकल कर सामने आते हैं। पहला अर्थ है- ‘गवाही देने वाला।’ दूसरे अर्थ के अनुसार, ‘अल्लाह की राह में जान देने वाले इंसान को शहीद का दर्जा दिया गया। यही कारण है कि इस्लाम धर्म की पहली जंग जिसे इतिहास में ‘जंग बद्र’ के नाम से जाना जाता है, उसमें मारे जाने वाले मुस्लिमों को ‘शुहदा ए बद्र’ कहा गया। शुहदा शब्द शहीद का बहुवचन है।

तो कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है, जिन्होंने अपने धर्म के लिए अपनी जान गंवाई। अरबी भाषा का यह शब्द भारत में इस्लाम के साथ पहुँचा। 20वीं और 21वीं शताब्दी में हिन्दी और उर्दू में इस शब्द का प्रयोग स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी जान गंवाने वाले वीरों के लिए होने लगा। यह शब्द हमारी भाषा में इस तरह घुल चुका है कि आज भी हम स्वतंत्रता संग्राम में प्राण गंवाने वाले भारत माता के वीर सपूतों के नाम के साथ इस शब्द का प्रयोग बे झिझक करते हैं। वीर सपूत भगत सिंह के नाम के आगे अनिवार्यतः यही शब्द जुड़ा मिलता है हर जगह। दूसरी ओर, आज भी इस्लाम के नाम पर दुनिया भर में आतंक फैलाने वाले तत्व और आतंकियों को मरने पर ‘शहीद’ का दर्जा ही दिया जाता है। कितना हास्यास्पद और साथ ही साथ पीड़ा दायक है यह कि हम बिना सोचे समझे अपने वीर सपूतों को उन्हीं शब्दों से अलंकृत कर रहे हैं जिनका सीधा सरोकार उन तत्वों से है, जिन्होंने हमारी भारत भूमि को न जाने कितनी बार हमारे ही भाइयों के खून से रंगा है।

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वर्तमान सन्दर्भ में, सेना की नियमावली में कहीं भी ‘Martyrs’ या ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। जो सैनिक लड़ाई के दौरान मारा जाता है उसे ‘Battle Casualty’ कहा जाता है।
इस शब्द को लेकर संसद में भी सवाल उठाया गया था और दिसंबर 2015 में गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय मंत्री द्वारा यह स्पष्ट भी किया गया था कि ‘शहीद’ या ‘Martyr’ शब्द का प्रयोग न तो सेना और न ही सेंट्रल आर्म्ड फोर्सेज द्वारा किया जाता है।

इस शब्द को अगर व्यापक अर्थ में लें तो चूंकि यह उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है जिसने किसी धर्म से जुड़ी लड़ाई में अपनी जान गंवाई है। इस तरह इस शब्द का प्रयोग हमारे संविधान की मूल भावना से भी मेल नहीं खाता। भारतीय संविधान की उद्देशिका के अनुसार, भारत एक पंथ निरपेक्ष देश है। अर्थात् देश का अपना कोई पंथ या धर्म नहीं है। इस दृष्टिकोण से भी देश हित में प्राणों की आहुति देने वाले वीर जवानों के लिए ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग सर्वथा अनुचित ही है। सेना द्वारा उल्लिखित शब्द यथा: बलिदानी, वीर योद्धा, वीर गति को प्राप्त वीर, वीर योद्धा आदि स्वयं में एक पावन भाव समेटे हुए हैं। इन शब्दों का सार ही यही है कि कि किसी उच्च उद्देश्य हेतु प्राणों का अर्पण कर देना। अपनी भारत भूमि की रक्षा से उच्च और पावन उद्देश्य भला क्या होगा।

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मातृभूमि की रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग कर देने वाले वीरों का सम्मान हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम पिछली भूलों को सुधार कर सही दिशा में आगे बढ़ें। अगली बार जब हम किसी वीर जवान के बलिदान पर उसे अपने शब्दों के श्रद्धा सुमन अर्पित करें तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि हमारे शब्द उनके बलिदान के पीछे के उदात्त भाव को नमन करते हों। ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचें, जिनके अर्थ से इस सर्वथा पावन आहुति की मूल भावना ही दब जाए।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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