गौरव तिवारी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर है। चुनाव से पहले अपनी पार्टी की जीत और सरकार का दावा करने वाले अधिकतर राजनीतिक दल गठबंधन कर सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को हराने की लिए जद्दोहद कर रही हैं। वहीं जो गठबंधन में शामिल नहीं हो सके हैं, वे चुनाव बाद साथ आने का इशारा भी कर रहे हैं। उधर हर बार की तरह कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले अपनी हार स्वीकार कर ली है। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का दंभ भर रहे है। जबकि उत्तर प्रदेश प्रभारी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने चुनाव से पहले अपनी हार स्वीकार कर चुकी हैं। उन्होंने एक चैनल से बात करते हुए कहा है कि चुनाव बाद जरूरत पड़ी तो वह सपा को समर्थन दे सकती हैं। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के दावे की हवा निकल गई है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा में सीधी लड़ाई देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश में वजूद की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही है। पार्टी के सामने चुनाव में जहां मजबूत प्रत्याशी की चुनौती है, वहीं प्रत्याशी घोषित हो चुके नेता पार्टी बदलने में लगे हैं। इसका उदाहरण बरेली में देखने को मिला। यहां पिछले दिनों कांग्रेस प्रत्यासी ने पार्टी का दामन छोड़कर सपा का दामन थाम लिया। फिलहाल सपा ने उसे अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है।

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सीएम चेहरा होंगी प्रियंका

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में ऊहापोह की स्थिति से गजर रही है। पार्टी के दिग्गज नेता जहां चुनाव जीतकर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का दंभ भर रहे हैं। वहीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी चुनाव बाद जरूरत पड़ने पर सपा को समर्थन करने की बात कर रही हैं। इससे पहले प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे पर पूछे गए एक सवाल में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि और कोई चेहरा दिख रहा हो तो बताएं। यानी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री के तौर पर प्रियंका का चेहरा सामने है। लेकिन चुनाव से पहले ही सपा को समर्थन करने का बयान देकर कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से अपनी हार स्वीकार कर ली है। यह देखना दिलचस्पा होगा के 10 मार्च को कांग्रेस की कितनी सीटें आती हैं और किस पार्टी को कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। चुनाव से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा का इस तरह का बयान कहीं न कहीं से समर्थकों के मनोबल को तोड़ने वाला है। टूटे हुए मनोबल से जीत की उम्मीद करना बेमानी होगी।

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