New law bill: पुलिस की भूमिका के साथ लचीले कानून व्यवस्था के चलते अक्सर इंसाफ प्रभावति होता रहता है। कानून में सुधार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते कानून में बदलाव संभव नहीं हो सका। वर्ष 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार ने निष्प्रभावी हो चुके कई कानूनों को समाप्त किया है, वहीं शुक्रवार को नाए कानून बिलों को मंजूरी देकर न सिर्फ कानून को और मजबूत किया है, बल्कि लोगों के लिए जल्द इंसाफ पाने का रास्ता प्रसस्त किया है। अभी तक दिल्ली से मुंबई के सफर पर निकले किसी व्यक्ति के साथ रास्ते में अगर कोई अपराध हो जाता था, तो उसे या तो यहां सफर छोड़ना पड़ता है या मुंबई से लौटकर रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ती थी। लेकिन, शुक्रवार को संसद में पेश किए गए नए कानून बिलों को मंजूरी मिलने के बाद अब ऐसा नहीं करना पड़ेगा। अब किसी व्यक्ति के साथ चाहे किसी भी थाना क्षेत्र में अपराध हो, वह देश के किसी भी कोने में मामला दर्ज करा सकेगा। इतना ही नहीं न्याय प्रक्रिया तेजी के साथ पारदर्शिता भी आएगी। पुलिस को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेते वक्त उसके परिवार को लिखित में बताना होगा कि यह कार्रवाई क्यों और किस आरोप में की जा रही है।

बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोकसभा में एक साथ भारत न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बिल पेश किए। ये बिल आईपीसी 1860, क्रिमिनल प्रॉसिजर कोड 1898 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 की जगह लेंगे। जानकारी के मुताबिक, नए अधिनियमों में कुछ धाराएं कम की गई हैं, वहीं कुछ कानूनों को और सख्त किया गया है।

एफआईआर दर्ज कराने के लिए थाने आने की जरूरत नहीं

अभी तक ऐसा होता था कि पीड़ित किसी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए पहुंचता था, तो थाना पुलिस की तरफ से कह दिया जाता था कि जहां अपराध हुआ वो क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता। संसद में शुक्रवार को पेश किए गए नए विधेयक के लागू होने के बाद अब ऐसा नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्वनी दुबे का कहना है कि कोई भी व्यक्ति, अब कहीं भी FIR करा सकेगा। इसके साथ ही इसमें ई एफआईआर को भी जोड़ा जा रहा है, जिससे पीड़ित को थाने आने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, वह कहीं से भी मामला दर्ज करा सकेगा। इसकी खासियत यह है कि जीरो एफआईआर को 15 दिनों के भीतर ही संबंधित थाने में भेजना होगा।

हिरासत में लेने से पहले परिवार को देनी होगी जानकारी

कई बार ऐसा होता है कि पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में ले लेती है, लेकिन उसके परिवार वालों को इसकी सूचना ही नहीं होती। नया बिल लागू होने के पुलिस की इस मनमानी पर रोक लग जाएगी। पुलिस को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने या गिरफ्तार करने पर उसके परिवार को इसके बारे में लिखित में सूचना देनी होगी।

न्याय प्रक्रिया में आएगी पारदर्शिता

पुलिस किसी भी अपराध में एफआईआर लिखने के बाद चार्जशीट दाखिल करने में सबसे ज्यादा आनाकानी करती है। नए बिल में चार्जशीट दाखिल करने की सीमा 90 दिन तय की गई है, हालांकि पुरानी व्यवस्था में भी इतने ही दिन की समय सीमा थी, लेकिन इसे बाद में इसे बढ़वा लिया जाता था। नए बिल में कोर्ट के आदेश के बाद चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा 90 दिन के लिए और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इस तय समय सीमा में चार्जशीट दाखिल करनी ही होगी। वहीं यदि किसी आरोपी पर अपराध साबित हो जाता है तो कोर्ट को अधिकतम 30 दिनों के अंदर सजा सुनानी होगी।

अपराधियों को सख्त सजा का प्रावधान

नए बिल में सजा को और सख्त बनाया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी दुबे के अनुसार, नए बिल में घोषित अपराधियों की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान है, यदि कोई संगठित अपराधी है तो उसे सख्त से सख्त सजा दी जाएगी। इसके अलावा पहचान छिपाकर किसी का यौन शोषण करना अपराध की श्रेणी में आएगा और सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को 20 साल या आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाएगी।

नाबालिग के यौन शोषण पर मौत की सजा

नए बिल में 18 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों का यौन शोषण करने वालों के खिलाफ भी सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। अधिवक्ता अश्वनी दुबे के मुताबिक, ऐसे आरोपी पर अपराध सिद्ध होने पर उसे मौत की सजा सुनाई जाएगी।

मॉब लिंचिंग में भी मौत की सजा का प्रावधान

शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए नए बिलों में मॉब लिंचिंग को हत्या से जोड़ा गया है। इसमें 5 या उससे अधिक लोगों का एक समूह यदि किसी व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर किसी की हत्या को अंजाम देता है, तो उसे कम से कम 7 साल और अधिकतम मौत की सजा सुनाई जा सकती है।

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आरोपी की अनुपस्थिति में ट्रायल जारी रहेगा

नए बिल की सबसे अहम बात यह है कि अब आरोपी की अनुपस्थिति में भी ट्रायल प्रभावित नहीं होगा। यदि कोई आरोपी ट्रायल में उपस्थित नहीं रहता है, तो न्यायाधीश नियमों के अनुसार उसे भगौड़ा घोषित कर ट्रायल को जारी रख सकते हैं और सजा भी सुना सकेंगे।

कोर्ट के आदेश के बिना पुलिस कुर्क नहीं कर सकेगी संपत्ति

अभी तक सीपीसी की धारा 60 में प्रावधान था, अपराधी की कोई भी अचल या चल संपत्ति, करेंसी या अन्य कोई चीज जिसे बेचा जा सकता है, उसे पुलिस जब्त कर सकती है। लेकिन नए बिल को मंजूरी मिलने के बाद किसी भी मामले में पुलिस दोषी की संपत्ति अब बिना कोर्ट के आदेश के कुर्क नहीं कर सकेगी। वहीं यदि किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मामला दर्ज होगा तो कोर्ट को 120 दिन के अंदर उस पर मुकदमा चलाने की अनुमति देनी होगी।

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