कर्म धर्म कर्तव्य सुपथ है
सतत साधना रत य़ह जीवन।
सूझ-बूझ कर कदम बढ़ाओ
कर्म योग साधक होवे मन।।

ध्येय दृष्टि संकल्प तुम्हारा
साधक पूर्ण सदा फलित हो।
कृति सर्वोत्तम शुभ हितकारी
मनमोहक सुरम्य ललित हो।।

आज किया जो कर्म तुम्हारा
कालान्तर तक सदा मनोरम।
तुम मैं से ऊपर उठना सीखो
मैं के आगे मिलकर हैं हम।।

भारत माँ का बढ़ेगा गौरव
सौहार्द सुरक्षा बढ़ेगी जग में।
पौरुष और पराक्रम जागृत
गति बढ़ेगी जब तेरे पग में।।

-बृजेंद्र

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