Acharya Vishnu Hari Saraswati
आचार्य विष्णु हरि

मालदीव के उछलने के पीछे कोई एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि वह चीन की गोद में बैठा हुआ है, दूसरा कारण यह है कि मालदीव में आईएसआई की सक्रियता अत्यधिक है, तीसरा कारण यह है कि उसे अरब के सुन्नी मुस्लिम देशों से मदद की उम्मीद है, चौथा कारण यह है कि मालदीव में आईएस और अलकायदा की खास उपस्थिति है और पांचवां कारण भारत को डर दिखा कर अधिक सहायताएं हासिल करना है। लेकिन उसकी वर्तमान हरकतों से भारत पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है, बल्कि मालदीव खुद अपनी कब्र खोदने में लगा हुआ है।

चीन उसे आर्थिक सहायता नहीं देगा, उसे कर्ज के जाल में फंसा कर कंगाल कर देगा। पाकिस्तान और श्रीलंका की जैसी स्थिति चीन ने की है, वैसी स्थिति मालदीव की भी करेगा। बांग्लादेश ने इस खतरे को जान समझ कर चीन की भाषा बोलने और चीनी कर्ज के जाल में फंसने से इनकार कर दिया था। लेकिन मालदीव के शासकों ने बांग्लादेश की नीति और श्रीलंका-पाकिस्तान के सबक को देखने-समझने की जरूरत ही नहीं समझ रहे हैं?

भारत ने आवश्यकता से अधिक उदारता दिखायी है। भारत कौन सा उसके हितों को रौंद रहा है? भारत ने सैनिक कार्रवाई कर मालदीव को माफियाओं के कब्जे से मुक्त कराया था? आर्थिक सहायता देने में भारत ने कोई कोताही नहीं बरती है। भारत के पर्यटकों से उसकी अर्थव्यवस्था गुलजार होती है। अगर भारत अपने पर्यटकों को मालदीव जाने से रोक लगा दे, तो फिर मालदीव के पर्यटन बाजार का बाजा बज जायेगा। हर देश को अपने हितों की रक्षा करने की आजादी है। हर देश को अपने पर्यटन क्षेत्र को विकसित और प्रसारित करने की आजादी है?

क्या नरेन्द्र मोदी ने लक्षद्वीप के समुद्र पर्यटन को प्रमोट कर अपराध किया है? इस पर इतनी हिंसक और अमर्यादित तथा अश्लील टिप्पणियों की जरूरत क्या थी? मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू का बार-बार भारत विरेाध में बोलना यह प्रमाणित करता है कि वह अच्छा पड़ोसी बन कर रहने वाला नहीं है। मालद्वीप का टेररिस्ट लिंक देखेंगे तो आप आश्चर्य में पड़ जायेंगे। अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने मालदीव के टेररिस्ट लिंक को खंगाली है और पकड़ी है।

अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट कहती है कि मालदीव के अंदर आईएस, अलकायदा सहित पाकिस्तान की कई आतंकवादियों की खतरनाक उपस्थिति है। 2014 से लेकर 2018 तक मालदीव के 250 से ज्यादा लोग आईएसआईएस में भर्ती होने के लिए सीरिया चले गये थे। मालदीव की जनसंख्या बहुत ही सीमित है, इसलिए यह आकंड़ा ज्यादा मानी जा रही है। मालदीव का अडडू द्वीप समूह इस्लामिक आतंकवादियों के लिए स्वर्ग हैं जहां पर दुनिया भर के इस्लामिक आतंकवादी संगठनों के कैम्प हैं। इन आतंकवादी कैम्पों में युवाओं को जिहाद का प्रशिक्षण दिया जाता है।

पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जमात उद दावा की भी खतरनाक उपस्थिति यहां पर है। खिदमत ए खल्क नाम से जमात उद दावा का आतंकवादी प्रकल्प यहां चल रहा है। खिदमत ए खल्क अपने आप को मानवीय सेवा प्रदान करने वाला संगठन बताता है पर उसका असली चेहरा आतंकवादी है और भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में लगा हुआ रहता है। यह आतंकवादी संगठन मालदीव में 284000 डॉलर खर्च करने की बात मानी है।

भारत के लोग या फिर शेष दुनिया के लोग यह सिर्फ सोचते हैं कि मालदीव सिर्फ खूबसूरती के लिए ही विख्यात हैं, यहां पर सुंदर-सुंदर द्वीप हैं, लहराती हुए समुद्र की धाराएं हैं, रंग-बिरगे पौधों और पेड़-पत्तियों से भरा है। लेकिन यह पूर्ण सच्चाई नहीं है। इसका एक दूसरा पहलू भी है। दूसरा पहलू क्या है? दूसरा पहलू ढका-तोपा हुआ है, कुख्यात नहीं है, बदसूरती मजहबी सरकार, टेररिस्ट लिंक और अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति आदि दिखयी ही नहीं देती है। आखिर क्यों? इसलिए कि मालदीव एक छोटा सा देश है, उसकी कोई उल्लेखनीय अर्थव्यवस्था और आर्थिक शक्ति नहीं है। वह सिर्फ पर्यटन पर निर्भर है, सिर्फ पर्यटन से उसकी जरूरतें पूरी होती नहीं है?

फिर प्रश्न यह उठना चाहिए कि उसकी जरूरतें किस प्रकार से पूरी होती हैं? उसकी अति आवश्यक जरूरतें भारत और अमेरिका तथा यूरोपीय यूनियन की आर्थिक सहायता से पूरी होती हैं। इसके अलावा वह अपनी सुरक्षा के लिए भी सक्षम नहीं है। मालदीव पर एक बार माफियाओं ने कब्जा कर लिया है, फिर भारतीय सेना पहुंच कर माफियाओं के चंगुल से मालदीव को बचाया था। सबसे बड़ी बात यह है कि मालदीव द्वीप समूह पर अस्तित्व का खतरा है। कई बार मालदीव के राष्ट्रपतियों ने दुनिया से गुहार लगायी है कि उसके देश को दुनिया के अंदर अपना देश बसाने के लिए जमीन दी जानी है, क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण मालदीव के द्वीप समूहों को समु्रद्र में समाने का खतरा नाचते रहता है। अभी तक किसी देश ने मालदीव को अपनी भूमि पर देश बसाने के लिए जमीन देने की रूचि नहीं दिखायी है। इन्हीं सब कारणों से दुनिया की रुचि भी मालदीव के मामले में नहीं रही है। फिर भी मालदीव का मजहबी दृष्टिकोण और मजहबी दृष्टिकोण से ग्रसित मालदीव का वर्तमान राष्ट्रपति भारत के साथ बिना अर्थ का विवाद और झमेला खड़ा करने पर उतारू है। इसे कहते हैं कि घर में अन्न नहीं है और अम्मा चली भूनाने।

मालदीव की खतरनाक मजहबी कहानी जान लीजिये, मालद्वीप किस प्रकार से संयुक्त राष्ट्रसंघ के सिद्धांत का उल्लंधन करता है, कब्रगाह बना रखा है, यह भी जान लीजिये। मालदीव एक मुस्लिम सुन्नी देश है, इस देश में अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं है। मालदीव में 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जबकि मात्र दो प्रतिशत ही गैर मुस्लिम आबादी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर कहता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित होने चाहिए, अल्पसंख्यकों को भी अपनी धार्मिक आजादी से रोका नहीं जाना चाहिए। पर मालदीव में अल्पंसंख्यकों का कोई अधिकार नहीं है। अल्पंसख्यक अपनी धार्मिक सक्रियता को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं, सार्वजनिक तौर पर अपने पर्व-त्योहार नहीं मना सकते हैं।

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अगर कोई व्यक्ति मालदीव का नागरिक बनना चाहता है, तो फिर उसे मुस्लिम बनने की अनिवार्यता है, यानी की इस्लाम को स्वीकार करना पड़ेगा। बिना इस्लाम को स्वीकार किये कोई मालदीव का नागरिक नहीं बन सकता है। इस प्रसंग में मालद्वीप एक कट्टरपंथी देश है, घोर अमानवीय देश है। क्योंकि उसने बौद्ध और हिन्दू अतीत को पूरी से तरह मिटाने की कोशिश की है। मालदीव में बौद्ध और हिन्दू प्रतीकों की बहुत समृद्धि थी, उन सभी बौद्ध और हिन्दू प्रतीकों को नष्ट कर दिया गया है, नामोनिशान मिटा दिया गया है। जबकि विरासत को संभाल कर रखने की परपमरा है।

मालदीव का इस्लामीकरण मौमून गयूम ने किया था। मौमून गयूम एक तानाशाह था। उसने 1978 से लेकर 2008 तक तानाशाही चलायी थी। उसकी तानाशाही में ही अल्पसंख्यकों के अधिकार कुचले गये। 1994 में मजहबी एकता अधिनियम लाया गया था। इसी अधिनियम के तहत सुन्नी मुस्लिम आबादी को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था। 1997 में मौमून गयूम ने मालदीव को इस्लामिक मजहबी देश घोषित कर दिया था। अन्य धार्मिक समूहों को गैरकानूनी घोषित कर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया। मौमूल गयूम के बाद उसका सौतेला भाई अब्दुला यामीन शासक बना और उसने सऊदी अरब के वहावी समूहों को आमंत्रित कर वहावीकरण करने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

मलदीव का वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू भी मौमून गयूम और अब्दुला यामीन जैसा कट्टरपंथी है। वह भारत को एक काफिर देश के रूप में देखता है। इसके पूर्व मोहम्मद नशीद राष्ट्रपति थे। नशीद भारत के प्रति उदार भावना रखते थे और भारत प्रेमी के रूप में जाने पहचाने जाते हैं। इस कारण भी मोहम्मद मुइज्जू भारत से दुश्मनी रखते हैं। मोहम्मद मोइज्जू को हमास और रोहिंग्या मुसलमानों के हस्र को ध्यान में रखना चाहिए।

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हमास की करतूत पर जब इस्राइल ने हमला बोला और संहार किया तब उसके पक्ष में कोई मुस्लिम देश इस्राइल से लड़ने के लिए नहीं खड़ा हुआ। चीन भी इस्राइल हमलों से हमास को बचाने के लिए आगे नहीं आया। रोहिंग्या मुसलमानों को जब म्यांमार से खदेड़ा गया तब पाकिस्तान या फिर किसी अरब देश ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण नहीं दिया। कल अगर जलवायु परिवर्तन के कारण मालदीव के द्वीप समूह समुद्र में डूबने लगेंगे तो फिर उनकी मदद कौन करेगा?

आचार्य विष्णु हरि

मो. 9315206123

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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