K Vikram Rao
के. विक्रम राव

गोरखपंथ के संत मच्छिंद्रनाथ (मत्स्येंद्र नाथ) की बारह सदी पुरानी समाधि शीघ्र हिंदुओं को वापस मिलेगी। मुंबई से चालीस किलोमीटर के फासले पर कल्याण में यह तीर्थस्थली है। महाराष्ट्र के शिवसैनिक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गत सप्ताह सार्वजनिक घोषणा की कि हाजी मलंगगढ़ को अब मुक्त कर उसके असली आराधकों को दे दिया जाएगा। उनके पुत्र डॉ. श्रीकांत शिंदे इसी क्षेत्र से शिव सेना के लोकसभा के निर्वाचित सदस्य भी हैं।

दो सदियों पूर्व इन पहाड़ियों पर नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक मनछेंद्र नाथ की तपोस्थली थी। इन्हीं के अनुयायी हैं कर्नाटक के मांड्या जिले की नागमंगला पहाड़ियों पर स्थित आदि चुनचुनगिरी मठ तथा उत्तर प्रदेश के बाबा गोरखनाथ धाम पीठ के आस्थावान जो इससे सम्बद्ध है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुरु रहे धर्मवीर आनंद दिघे ने सर्वप्रथम हाजी मलंग की मजार को वापस नाथ संप्रदाय वालों को लौटाने का संघर्ष शुरू किया था। अब इसी शिवसेना पुरोधा के अनुयायी एकनाथ शिंदे ने उसे पूरा करने की घोषणा की है। चूंकि यह प्रण मुख्यमंत्री ने किया है अतः इसका महत्व बढ़ भी गया है। ठीक ऐसा ही प्रसंग था यूपी में राम जन्मभूमि का भी जब भाजपायी मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह ने नारा दिया था: “मंदिर यहीं बनाएंगे।” वे तब फैजाबाद में गए भी थे।

हालांकि मलंगगढ़ का यह धार्मिक विवाद पुराना है। मगर मुख्यमंत्री के खुले ऐलान से अब यह ताजा बन गया है। खासकर गत सप्ताह (4 जनवरी, 2024) से जब एकनाथ शिंदे ने एक सभा में नारा दिया कि बारह सदियों पुराना अन्याय का खत्मा होगा। नाथ संप्रदाय के लोगों को मच्छिंद्रनाथ का समाधि स्थल मिलेगा। हालांकि यह मसला भी गत चार दशकों से न्यायालय के गलियारों में चलता रहा। नासिर खान जो हाजी पीर मलंग साहेब ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं का दावा है कि मराठा पेशवा शासकों ने इस मजार को मुसलमानों को देखभाल हेतु सौंपा था। यहां सालाना उर्स भी होता रहता है।

हिंदुओं का भी दावा है कि यह भूभाग वस्तुतः नाथ संप्रदाय के आस्थावानों की संपत्ति है। उन्हीं को मिलना चाहिए। गोरखनाथ पंथ के लोगों का कहना है कि हर दिन पूजा की जाती है। भोग लगाया जाता है। वहीं मगर मुस्लिम पक्ष मानता है कि यह 13वीं सदी में यमन से आए सूफी संत सूफी फकीर हाजी अब्दुल रहमान शाह मलंग उर्फ मलंग बाबा की यह मजार है। अस्सी के दशक में शिवसेना की ओर से इस मुद्दे को पहली बार उठाया गया। मामला कोर्ट तक भी पहुंच गया है। माघ पूर्णिमा के दिन मलंगगड यात्रा (फरवरी, 1996) पर शिवसेना नेता आनंद दीघे के नेतृत्व में शिवसैनिक वहां पहुंचे और पूजा की गई। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने भी उस वर्ष पूजा में भाग लिया था और घोषणा की थी कि मलंग हिल्स को शिरडी की तर्ज पर एक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। शिवसेना नेताओं के आग्रह पर इन लोगों को आरती की इजाजत मिली थी।

यहां एक किंवदंती हैं कि शिशु मत्स्येंद्र का जन्म एक अशुभ सितारे के तहत हुआ था। उसके माता-पिता को बच्चे को समुद्र में फेंक दिया था। बच्चे को एक मछली ने निगल लिया था। वह समुद्र के तल में चली गई जहाँ शिव अपनी पत्नी पार्वती को योग के रहस्य को बता रहे थे। उसे सुनकर मत्स्येंद्र मछली के पेट के अंदर योग साधना का अभ्यास करने लगे। बारह वर्षों के बाद वे अंततः एक प्रबुद्ध सिद्ध के रूप में उभरे।

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अब इस्लामी पक्ष देखें। बाबा अब्दुर रहमान मलंग नमक यह सूफी संत 12वीं शताब्दी में मध्य भारत की आए। उनके अनुयायियों के साथ ब्राम्हणवाड़ी गांव पहुंचे, जिस पर उस समय मौर्य वंश के राजा नलदेव का शासन था। वहां इस अरब को स्थान मिला। हर साल उनका उर्स शरीफ होता है, इसमें विभिन्न पारंपरिक सूफी प्रथाएं शामिल हैं, जैसे कि मंदिर को फूलों से सजाना और ‘चरागा’ (रोशनी) और जुलूस निकालना। भारत और विदेश से साल भर आने वाले भक्तों के अलावा, उर्स शरीफ के दौरान यह मजार हजारों लोगों को आकर्षित करती है।

दरगाह परिसर में एक छोटा सा जलाशय है। इसमें जलाशय भक्तों द्वारा पवित्र (तबर्रुक) माना जाता है। लोगों का मानना है कि पानी बाबा के घोड़े (‘घोड़े की ताप’) के खुर से निकला था, जिसके कारण जलाशय के पानी का नाम “घोड़े की ताप का पानी” पड़ा। भक्तों के बीच यह भी आम धारणा है कि इस पानी को पीने से विभिन्न बीमारियाँ और अन्य रुहानी बीमारियाँ दूर हो सकती हैं। फिलहाल हाजी मलंग दरगाह को लेकर महाराष्ट्र में राजनीति गरमाई हुई है मुख्यमंत्री शिंदे के इस बयान से कि हाजी मलंग दरगाह की मुक्ति के लिए शासन प्रतिबद्ध हैं।

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इस बीच कुछ हिंदुजनों ने मछिंद्रनाथ की जीवित प्राचीन समाधि स्थल को संवारा गया है। जहां पहले समाधि स्थल को झाड़ियों ने ढक दिया था और गंदगी फैली थी अब यहां रौनक है। लोगों की आवाजाही हो रही है। आठ सदी पूर्व ली गई समाधि का जीर्णोद्धार भेडू महादेव की पंचायत डरोह के कस्बा गांव में हो रहा है। प्राचीन शिव मंदिर से चालीस फीट दूरी पर स्थित मछिंद्रनाथ नाथ की की समाधि है। इस पर अंकित पटि्टका पर लिखा है मछिंद्रनाथ ने 25 दिसंबर, 1263 इसवी मंगलवार सायं चार बजे जीवित अवस्था में समाधि ली। वक्त बीते समाधि झाड़ियों से ढक गई। इसके चारों ओर गंदगी फैली हुई थी। अब कुछ समय पहले नाथ संप्रदाय के लोगों ने यहां आकर समाधि की चारों तरफ सफाई की। अब इस समाधि पर गांव के लोग आने जाने लगे हैं। ध्यान देने वाली बात यह है की मछिंद्रनाथ श्री गोरखनाथ के गुरु हैं। जिनका संबंध वैष्णों देवी व बाबा बालक नाथ के साथ रहा है। आशा है कि अब जनांदोलन के फलस्वरूप हिंदुओं को यह नाथपंथ का अर्चना स्थल पुनः प्राप्त होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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