Mayawati: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में चुनाव से पहले जाति की राजनीति करने का चलन काफी पुराना है। सच तो यह भी है कि पार्टी का पूरा वजूद ही जाति और परिवार पर टिका है। सपा नेताओं की मानसिकता कैसी है, यह जग जाहिर है। सपा (Samajwadi Party) नाम आते ही लोग के जेहन में बदमाशों के खौफनाक चेहरे आ जाते हैं। यूपी का कोई भी ऐसा माफिया नहीं है, जिसके ताल्लुक सपा से न रहे हों। वहीं बीते चुनावों से सपा ‘नीच’ राजनीति की जो आधारशिला रखी, वह लगातार हिंदू आस्था को आहत कर रहा है। निकाय चुनाव से पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद को नीची जाति का बताकर प्रचार कर रहे थे, तो वहीं उनके नेता स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) श्रीरामचरित मानस पर सवाल उठाकर उसे चलवाने में लगे रहे। नतीजा रहा चुनाव परिणाम में समाजवादी पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। अब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सपा मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ दलितों को साधने के लिए एकबार फिर घिनौनी राजनीति की शुरुआत की है। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ज्ञानव्यापी मस्जिद के सर्वे पर सवाल उठाते हुए मंदिरों के अस्तित्व को चुनौती दे डाली है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने इसे सपा की घिनौनी राजनीति बताते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य पर पलटवार किया है।

मायावती ने ट्वीट कर लिखा है कि समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का ताजा बयान कि बद्रीनाथ सहित अनेकों मन्दिर बौद्ध मठों को तोड़कर बनाये गये हैं तथा आधुनिक सर्वे अकेले ज्ञानवापी मस्जिद का क्यों, बल्कि अन्य प्रमुख मन्दिरों का भी होना चाहिए, नए विवादों को जन्म देने वाला यह विशुद्ध राजनीतिक बयान है। जबकि मौर्य लम्बे समय तक बीजेपी सरकार में मंत्री रहे, किन्तु तब उन्होंने इस बारे में पार्टी व सरकार पर ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया? और अब चुनाव के समय ऐसा धार्मिक विवाद पैदा करना उनकी व सपा की घिनौनी राजनीति नहीं तो क्या है? बौद्ध व मुस्लिम समाज इनके बहकावे में आने वाले नहीं।

बता दें कि सपा के बदजुबान नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) को लेकर दिए गए विवादित बयान पर बहस छिड़ गई है। बीजेपी (BJP) इसको लेकर जहां सपा (SP) पर हमलावर है, तो वहीं अब बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) की भी तीखी प्रतिक्रिया आई है। बता दें कि इससे पहले यूपी निकाय चुनाव के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य ने श्रीरामचरित मानस की चौपाई पर सवा उठाते हुए इसे पिछड़ों और महिलाओं को अपमानित करने वाला बताया था। उस समय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वामी के सुर में सुर मिलाते हुए खुद को नीच बताने का पूरा प्रयास किया। सपा समर्थकों ने श्रीरामचरित मानस की प्रतियां भी जलाई थी, जिससे हिंदूओं में सपा के प्रति आक्रोश भड़क गया। हिंदुओं ने सपा को निकाय चुनाव में इसका माकूल जवाब भी दिया। अब लोकसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक (पीडीए) का राग अलाप कर सपा का बेड़ा पार लगाना चाहते हैं। जबकि बीजेपी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के साथ अटल है।

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जाहिर है सपा की तरफ से पीडीए को साधने की कोशिश शुरू हो चुकी है। वहीं बीजेपी सबका साथ के नारों के साथ सपा के पिछड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कराने में हुई है। बीते दिनों सपा के सहयोगी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अध्यक्ष राजभर को जहां एनडीए में शामिल कराया गया, वहीं बनारस से पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली सपा नेत्री ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया है। सूत्रों की मानें तो सपा के कुछ और दिग्गज नेता बीजेपी के संपर्क हैं, जो किसी भी वक्त पाला बदल सकते हैं। गौरतलब है कि सपा की शुरू से ही हिंदू विरोधी छवि रही है। पार्टी का कारसेवकों पर गोली चलवाने का इतिहास रहा है। ऐसे में हिंदू आस्था के साथ खिलवाड़ करना सपा के लिए कोई नई बात नहीं है।

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