आचार्य डॉ. विजय शंकर मिश्र

Karva Chauth: पूर्वांचल को छोड़कर भारत के अवशिष्ट अनेक क्षेत्र में पारम्परिक रीति-रिवाज के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को विवाहित महिलाएं अपने पति के मंगल, दीर्घायु तथा अखंड सुहाग के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस सुहागन-व्रत को ही “करवा चौथ व्रत” (Karva Chauth) के नाम से जाना जाता है।

पति-पत्नी के अखंड प्रेम और त्याग की चेतना का प्रतीक है करवा चौथ व्रत। इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रखकर भगवान से अपने पति के मंगल के लिए प्रार्थना करती हैं और पंचांगों के अनुसार शुभ मुहूर्त में चंद्रमा के साथ-साथ शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा करती हैं। पूजा के अवसर पर “करवा चौथ व्रत कथा” पढ़ने- सुनने का विधि भी प्रचलित है।

व्रत कथा

प्राचीन समय में करवा नामक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करते समय मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़कर अंदर ले जाने लगा, तो पति ने अपनी सुरक्षा के निमित्त अपनी पत्नी करवा को पुकारा। उसकी पत्नी ने तुरन्त वहां आकर, पति की रक्षा के लिए एक धागे से मगरमच्छ को बांध दिया और धागे का एक सिरा पकड़कर उसे लेकर पति के साथ यमराज के पास पहुंची। करवा ने बड़े ही साहस के साथ यमराज के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया, तो प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति को वापस कर दिया। साथ ही करवा को सुख-समृद्धि का वर दिया और कहा कि ”जो स्त्रियां इस दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत रखकर करवा को याद करेंगे, उनके सौभाग्य की रक्षा मैं करूंगा।” कहा जाता है कि इस घटना के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। इसीलिए तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

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वट-सावित्री व्रत

पूर्वांचल भारत में “करवा चौथ व्रत” का प्रचलन नहीं है। किंतु वंहा के लगभग सभी विवाहिता महिलाएं अपनी-अपनी पतिदेव का दीर्घायु तथा दोनों का उत्तम दाम्पत्य जीवन के लिए ज्येष्ठ मास के सावित्री-अमावस्या को ही निर्जला अथवा फलाहार के साथ ” वट-सावित्री व्रत” मनाते हैं।

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