Kahani: एक सेठ बस से उतरे, उनके पास कुछ सामान था। आस-पास नजर दौड़ाई, तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया। सेठ ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा, अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे? आपकी मर्जी, जो देना हो, दे देना, लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ, तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना।
सेठ ने डाँट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे, लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसे राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी। मजबूरी में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया। मजदूर दौड़कर आया और बोला, मेरी शर्त आपको मंजूर है? सेठ ने स्वार्थ के कारण हाँ कर दी। सेठ का मकान लगभग 500 मीटर की दूरी पर था। मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला, सेठजी आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ। सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना।
मजदूर ने खुश होकर कहा, जो कुछ मैं बोलू, उसे ध्यान से सुनना, यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया और दोनों मकान तक पहुँच गये। मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया, सेठ ने जो पैसे दिये, ले लिये और सेठ से बोला, सेठजी मेरी बात आपने ध्यान से सुनी या नहीं। सेठ ने कहा, मैंने तेरी बात नहीं सुनी, मुझे तो अपना काम निकालना था। मजदूर बोला, सेठजी! आपने जीवन की बहुत बड़ी गलती कर दी, कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है।
सेठ को गुस्सा आया और बोले, तेरी बकवास बहुत सुन ली, जा रहा है या तेरी पिटाई करूँ। मजदूर बोला, मारो या छोड़ दो, कल शाम को आपकी मौत होनी है, अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो। अब सेठ थोड़ा गम्भीर हुआ और बोला, सभी को मरना है। अगर मेरी मौत कल शाम होनी है तो होगी, इसमें मैं क्या कर सकता हूं? मजदूर बोला, तभी तो कह रहा हूं कि अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो। सेठ बोला, सुना, ध्यान देकर सुनूंगा।
मरने के बाद आप ऊपर जाओगे तो आपसे यह पूछा जायेगा कि हे मनुष्य, पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का। क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में पाप-पुण्य दोनों ही करता है, तो आप कह देना कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं, लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं। इतना कहकर मजदूर चला गया। दूसरे दिन ठीक सात बजे सेठ की मौत हो गयी। सेठ ऊपर पहुँचा तो यमराज ने मजदूर द्वारा बताया गया प्रश्न कर दिया कि पहले पाप का फल भोगना चाहता है कि पुण्य का। सेठ ने कहा, पाप का फल भुगतने को तैयार हूं, लेकिन जो भी जीवन में मैंने पुण्य किया हो, उसका फल आंखों से देखना चाहता हूं।
यमराज बोले, हमारे यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, यहाँ तो दोनों के फल भुगतवाए जाते हैं। सेठ ने कहा कि फिर मुझसे पूछा क्यों, और पूछा है तो उसे पूरा करो, धरती पर तो अन्याय होते देखा है, पर यहाँ पर भी अन्याय है। यमराज ने सोचा, बात तो यह सही कह रहा है, इससे पूछकर बड़े बुरे फंसे। मेरे पास कोई ऐसी पावर ही नहीं है, जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाय, विवश होकर यमराज उस सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गये और पूरी बात बता दी। ब्रह्मा जी ने अपनी पोथी निकालकर सारे पन्ने पलट डाले, लेकिन उनको कानून की कोई ऐसी धारा या उपधारा नहीं मिली, जिससे जीव की इच्छा पूरी हो सके।
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ब्रह्मा भी विवश होकर यमराज और सेठ को साथ लेकर भगवान के पास पहुचे और समस्या बतायी। भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा, जाइये, अपना-अपना काम देखिये, दोनों चले गये। भगवान ने सेठ से कहा, अब बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो? सेठ बोला, अजी साहब, मैं तो शुरू से एक ही बात कह रहा हूं कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं, लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं। भगवान बोले, धन्य है वो सदगुरू (मजदूर) जो तेरे अंतिम समय में भी तेरा कल्याण कर गया। अरे मूर्ख, उसके बताये उपाय के कारण तू मेरे सामने खड़ा है, अपनी आँखों से इससे और बड़ा पुण्य का फल क्या देखना चाहता है। मेरे दर्शन से तेरे सभी पाप भस्मीभूत हो गये। इसीलिए बचपन से हमको सिखाया जाता है कि गुरुजनों की बात ध्यान से सुननी चाहिए, पता नहीं कौन सी बात जीवन में कब काम आ जाए?
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