Kahani: एक बार एक शिकारी शिकार करने के लिए जंगल में पहुंचा। उसने अपने तीर पर बहुत ही खतरनाक जहर लगाया और शिकार को निशाना बना करके उसने तीर को छोड़ा, लेकिन उसका तीर चूक गया और तीर एक पेड़ पर जा लगा। वह पेड़ बहुत ही हरा-भरा और बहुत सारे तोते उस पेड़ पर रहते थे। जैसे ही वह जहरीला तीर उस पेड़ पर जाकर लगा वह पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगा और उस पेड़ पर जो भी तोते रहते थे वह एक-एक करके उस पेड़ को छोड़कर जाने लगे।

उस बड़े से पेड़ के कोटर में एक बहुत ही बूढ़ा तोता रहता था, जो बहुत ही धर्मात्मा और अच्छे मन का था। सभी तोते उस पेड़ को छोड़कर जाने लगे थे, लेकिन वह बूढ़ा तोता जाता था, दाना लेकर के आता और उसी कोटर में आ करके बैठ जाता था, परन्तु उस पेड़ को छोड़ने को तैयार नहीं था। बूढ़े तोते के साथियों ने कई बार आकर के उसे समझाया की यह पेड़ सूख रहा है और किसी दिन गिर भी जायेगा, चलो किसी और पेड़ पर चल कर रहा जाये, परन्तु वह बूढ़ा तोता वहां से जाने को तैयार नहीं हो रहा था।

अब यह बात देवराज इंद्र तक पहुंची, उन्हें बताया गया कि एक तोता है वह जिस पेड़ पर रहता है, वह पेड़ एक जहरीला तीर लगने के कारण सूखने, गिरने और ख़त्म होने के कगार पर आ पंहुचा है और एक बूढ़ा तोता अभी भी वहीं पर रह रहा है। वह दाना लेकर आता है और वहीं पर रहता है। जबकि उस जंगल में बहुत सारे पेड़ हैं, लेकिन वह उसी पेड़ पर रह रहा है। देव राज इंद्र प्रगट हुए और उस बूढ़े तोते से कहने लगे की आप बहुत धर्मात्मा है, बहुत ही अच्छे मन के हैं, लेकिन आप इस पेड़ को छोड़कर किसी और पेड़ पर चले जाइये, क्योकि यह पेड़ कुछ ही दिनों में गिर जायेगा।

तालाब के पास में बहुत से बड़े-बड़े, हरे-भरे पेड़ है, बड़े-बड़े कोटर है उन पेड़ों पर फल भी लगे हुए हैं, उन्हें वही पर तोड़कर खा सकते हैं, परन्तु यहाँ से आप चले जाये। तोता बोला माफ़ कीजियेगा, इस पेड़ ने मुझे जीवन दिया है, शिकारियों से मेरी रक्षा की है, हर मौसम में मेरे साथ रहा है। ये कोटर मेरा घर है, यहाँ मैं पला-बढ़ा हूँ, इस पेड़ को मैं छोड़कर कैसे जा सकता हूँ। इस पर संकट आया है, तो क्या मैं इसे छोड़कर चला जाऊ, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता। देवराज इंद्र तोते के इस बात से बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने तोते से कहा कि मैं आपके इस बात से बहुत ही खुश हूँ, मांगो जो आपको मांगना हो। उस बूढ़े तोते ने कहा कि मुझे बस इतना मांगना है कि जिस पेड़ ने मुझे जन्म दिया, जहां मैं रहा, पला बढ़ा, जिसे आप मेरा जन्म भूमि कह सकते हो, आप इसे फिर से वैसा ही हरा-भरा कर दो जैसा यह था।

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देवराज इंद्र ने अमृत से उस पेड़ को सींच दिया और पहले की तरह हरा-भरा कर दिया। अब वापस से उस पेड़ पर आकर के बाकि तोते रहने लगे, वह बूढ़ा तोता कुछ समय तक और जिन्दा रहा फिर उसकी मृत्यु हो गयी और वह स्वर्ग में चला गया।

शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती ये है कि जब भी किसी इंसान का बुरा दौर आता है, तो Emotionally वह टूटा हुआ होता है, उसे किसी के सहारे की जरूरत होती है। किसी की आवश्यकता होती है। अगर आप ऐसे समय में उसे छोड़कर चले जायेंगे, उससे बात नहीं करेंगे, मुँह मोड़ लेंगे, तो आपसे बुरा कोई नहीं है। क्योकि आप किसी के सुख का साथी बने या न बने, लेकिन आपको हमेशा किसी के दुःख का साथी जरूर बनना चाहिए।

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