कोलकाता: बंगीय हिंदी परिषद (Bangiya Hindi Parishad), कोलकाता द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद (National Symposium) को संबोधित करते हुए भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी (Prof. Sanjay Dwivedi) ने कहा कि आलोचना रचना का प्रतिपक्ष नहीं होती है। किसी भी आलोचक का निष्पक्ष होना सबसे जरूरी है। ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी आलोचना : विविध परिदृश्य’ विषय पर आयोजित इस परिसंवाद में डॉ. मृत्युंजय पांडेय, प्रो. कृपाशंकर चौबे, डॉ. रणजीत कुमार एवं डॉ. राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने भी हिस्सा लिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हिंदी आलोचना में इस समय कैसी स्थिति है, यह विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन हम अपनी अगली पीढ़ी से यह आशा रख सकते हैं, कि बहुत कुछ अच्छा निकल कर सामने आएगा। उन्होंने कहा कि आलोचना का अर्थ तलवार लेकर लेखक के पीछे पड़ना नहीं होता, बल्कि कलम के माध्यम से उसकी कमियों को सामने लाना होता है।

Bangiya Hindi Parishad

इस अवसर पर डॉ. मृत्युंजय पांडेय ने कहा कि हमें वर्तमान में आलोचना के नए मानदंडों को स्थापित करना होगा। इसके लिए आलोचकों का विषय को गंभीरता से समझना समय की मांग है। पुराना जो कुछ भी है, उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है, लेकिन नए विमर्शों और विचारों का आना अभी बाकी है।

प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हमें आलोचना के भारतीय मानदंड स्थापित करने होंगे। हम पश्चिम के अनुगामी नहीं हो सकते। भारत की समस्याएं अलग हैं और इसकी समस्याओं के समाधान के लिए हमें भारतीय मानदंडों को स्थापित करना होगा और उसी के आधार पर समाज एवं साहित्य की व्याख्या करनी होगी।

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बंगीय हिंदी परिषद के निदेशक डॉ. रणजीत कुमार ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आचार्य शुक्ल और आचार्य द्विवेदी ने हिंदी आलोचना की जिस रीढ़ को तैयार किया था, उसे आचार्य नंददुलारे वाजपेयी से लेकर डॉ. नागेंद्र, डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. नामवर सिंह, रमेश कुंतल मेघ, विजयानंद त्रिपाठी और मैनेजर पांडेय समेत कई महान आलोचकों ने एक सुदृढ ढांचा प्रदान किया। उसकी बाद की पीढ़ी ने उसे सजाया संवारा और आज की वर्तमान पीढ़ी उसे एक नई धार देने का प्रयास कर रही है।

आयोजन में स्वागत भाषण बंगीय हिंदी परिषद के मंत्री डॉ. राजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन परिषद की उप-निदेशक प्रियंका सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन साहित्य मंत्री राजेश सिंह ने दिया।

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