राघवेंद्र प्रसाद मिश्र

लखनऊ: चुनी हुई सरकार से उम्मीद होती है कि जनसेवक के रूप में जनता की समस्याओं का वह समाधान करने का कार्य करेगी। युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराकर खुद को बेहतर सरकार साबित करने की कोशिश करेगी। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनने के बाद युवाओं को उनसे काफी उम्मीदें थी। नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं को लगने लगा था कि अब प्रदेश में बिना भेदभाव के योग्यता के आधार पर नौकरी मिल सकेगी। लेकिन अधिकारियों के भरोसे सरकार चलाने वाले योगी आदित्यनाथ के राज में युवाओं का कॅरियर बर्बाद होता नजर आ रहा है। योगी आदित्यनाथ की सरकार में पेपर लीक होने का नया रिकॉर्ड बन गया है। भर्ती परीक्षा कोई भी हो यहां पेपर पहले ही लीक हो जा रहा है। यूपीपीसीएस, समीक्षा अधिकारी के बाद अब पुलिस भर्ती परीक्षा को पेपर लीक होना सरकार की नीति और नीयत दोनों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

दोषियों पर कार्रवाई की जगह पोल खोलने वालों को भेजा जा रहा जेल

भ्रष्ट और तानाशाह सरकार की जब भी बात होगी, तो योगी आदित्यनाथ की सरकार का नाम सबसे ऊपर आएगा। यह ऐसी सरकार है जो सच दिखाने पर दोषियों पर कार्रवाई करने की जगह पत्रकारों को जेल भेजकर खुद को इमानदार होने का ढोंग रच रही है। इस सरकार में सबसे ज्यादा दमन सच का हो रहा है। परीक्षा पेपर लीक होना इस सरकार में जहां आम बात सी हो गई है। वहीं इसकी पोल खोलने वालों को झूठा बताकर फर्जी मुकदमे में फंसाना सरकार और सरकारी तंत्र की आदत सी पड़ गई है। ऐसे में सरकारी तंत्र में कैसे सुधार हो पाएगा यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

सच का दमन कर रहे सरकारी नुमाइंदे

योगी राज में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को मिली छूट का खामियाजा आज हर कोई भुगत रहा है। इमानदार सरकार के नाम पर रिश्वतखोरी चरम पर है। आंकड़ों के मुताबिक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में अब तक छह बार पेपर लीक हो चुके हैं। हर बार दोषियों पर कार्रवाई से पहले सरकारी गुंडे इसका खुलासा करने वालों का दमन करने में जुट जाते हैं। नतीजतन, पेपर लीक का मामला थमने की जगह बढ़ता ही जा रहा है।

झूठ बोलने में माहिर है सरकारी तंत्र

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह उनका पूरा सरकारी तंत्र झूठ बोलने में माहिर है। योगी सरकार के आंकड़े और हकीकत में हुए काम यह बताने के लिए काफी है कि प्रदेश का मुखिया कितना झूठा है। यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा में पेपर लीक मामले को पहले दबाने की कोशिश की गई। पूरा सरकारी तंत्र इसे अफवाह बताने में जुटा रहा। पेपर लीक का खुलासा करने वाले यूट्यूबर ललित पाठक के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस की तरफ से ललित पाठक का दमन करने की पूरी कोशिश की गई। वो तो पुलिस भर्ती के अभ्यर्थियों के बढ़ते आक्रोश और विरोध प्रदर्शन के सामने योगी सरकार को झुकना पड़ा और पेपर लीक का सच स्वीकारने के साथ ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई आश्वासन देना पड़ा। मामले में जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है जिस सरकार में यूपीएससी की परीक्षा में सीबीआई जांच के आदेश के बावजूद आज तक कुछ नहीं हुआ, उस सरकार में एसआईटी की जांच क्या होगी, इसे समझा जा सकता है।

यूट्यूबर को गिरफ्तार करने वालों पर क्या होगी कार्रवाई

यूपी पुलिस भर्ती पेपर लीक का खुलासा करने वाले यूट्यूबर ललित पाठक को यूपी पुलिस ने अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। अब जब योगी सरकार खुद पेपर लीक के सच को स्वीकार कर भर्ती परीक्षा को रद्द करने के साथ ही आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मामले को दबाने के लिए जिन पुलिसकर्मियों ने यूट्यूबर ललित पाठक को फर्जी केस में जेल भेजा है, क्या उनपर कार्रवाई होगी। यदि ऐसा नहीं होता है, तो इस सरकार में इंसाफ की उम्मीद करना बेमानी है।

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मीडिया बिका नहीं कमजोर हुआ है

विपक्ष में बैठे लोग और चापलूसी व दलाली कर बड़े पत्रकार कहलाने वाले आज सच बोलने वाले पत्रकारों के बिका हुआ बताने में कोई संकोच नहीं करते। जबकि बिकने की वजह से ऐसे लोग कभी बड़े पत्रकार बनकर सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करते थे। मीडिया को बदनाम करने वाले पत्रकारों की आज खुद की पोल खुल गई है और वह हाशिए पर पहुंच चुके हैं। वहीं विपक्ष और जनता दोनों मीडिया पर बिकाऊ होने का आरोप लगाते हैं। जबकि सच यह है कि बिकाऊ पत्रकारों से ये लोग अपना स्क्रिप्ट पढ़वाते व लिखवाते हैं। अवसरवाद की राजनीति में मीडिया बिका नहीं, बल्कि कमजोर हुआ है। अच्छे लोगों से मीडिया को ताकत मिलती है। जब अच्छे लोग की संख्या कम होगी, तो मीडिया का कमजोर होना स्वाभाविक है। मीडिया का साथ कितने लोग देते हैं, यह पत्रकारों पर हो रही कार्रवाइयों से देखा जा सकता है। विपक्ष मीडिया के जरिए अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश लगातार कर रहा है। ऐसे में जो उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठते उन्हें बिकाऊ बताने का चलन चल पड़ा है।

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