UP Nikay Chunav 2023: हर बार। लगातार। श्रेष्ठतम नतीजे यूं ही नहीं आ जाते। इसके लिए पूरी शिद्दत से दिन-रात लगना होता है। वर्षों से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) यही काम करते रहे हैं। तब भी जब उनको जीत सुनिश्चित जान पड़ती थी। गोरखपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते हुए हुए उन्होंने नगरीय निकाय के एक चुनाव में 74 जनसभाएं करके भाजपा के पक्ष में बाजी पलट दी थी। वह भी तब मेयर भाजपा का ही बनेगा इसका उनको पूरा यकीन था। नगरीय निकाय चुनावों में भी बतौर मुख्यमंत्री वह यही कर रहे हैं। सूबे की कमान संभालने के बाद चुनाव दर चुनाव वह इसी शिद्दत से प्रचार में जान लड़ा देते हैं। फिर तो मौसम भी उनके अभियान के आड़े नहीं आता।

पहले चरण में योगी ने की थी करीब 28 सभाएं

मालूम हो कि नगर निकाय के पहले चरण के चुनावों में सीएम योगी ने 28 जनसभाएं व सम्मेलन किये थे। इस दौरान वह 37 जिलों में से करीब दो दर्जन जिलों में पहुंचे। जिन 10 शहरों में नगर निगम के चुनाव होने थे उन सबमें वह गये।

वोट डालने के तुरंत बाद दूसरे चरण के प्रचार में जुटे

पहले चरण का मतदान 4 मई (गुरुवार) को हुआ। अपने गृह जनपद गोरखपुर में मतदान के तुरंत बाद वह दूसरे चरण के प्रचार के लिए सिद्धार्थनगर, बस्ती, सुल्तानपुर और अयोध्या के तूफानी दौरे पर निकल गए। अयोध्या के लिए तो यह उनका दूसरा दौरा था। अगले दिन शुक्रवार (5 मई) को उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर, मेरठ और गाजियाबाद का तूफानी दौरा किया। शनिवार को तय कार्यक्रम के अनुसार वह बतौर स्टार प्रचारक कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनावी दौरे पर हैं।

9 मई तक के प्रस्तावित दौरों की रूपरेखा तैयार

आगे उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों के लिए उनके दौरों का कार्यक्रम पहले से ही प्रस्तावित है। इस क्रम में 8 मई सोमवार को बाराबंकी, मीरजापुर और अयोध्या एवं 9 मई मंगलवार को कानपुर, बाँदा एवं चित्रकूट में उनकी चुनावी सभाएं प्रस्तावित हैं। माना जा रहा है कि दूसरे चरण का प्रचार खत्म होने के बाद जब उनके इस चुनाव के बाबत दौरों की गिनती होगी तो यह खुद में एक रिकॉर्ड होगा। हर चुनावी सभा में भाजपा शासनकाल में हुए स्थानीय स्तर पर विकास कार्य, इन विकास कार्यों को तेज गति देने के लिए लोगों से ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने का अनुरोध होता है। हर चुनाव की तरह सुशासन एवं विकास के लिए अपराध एवं भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति का असरदार तरीके से जिक्र जरूर रहता है।

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तूफानी प्रचार के आगे विपक्ष कहीं मुकाबले में नहीं

रही बात प्रमुख विपक्षी दलों की तो कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इन चुनावों में कहीं है ही नहीं। बसपा ने समन्वय की सारी जिम्मेदारी मंडलीय समन्वयकों के सर डाल दी है। पार्टी की मुखिया को अब भी उम्मीद है कि दलित वोट तो उनके हैं ही। मुस्लिम मिल जाएं तो उनकी पार्टी कुछ गुल खिला सकती है। इसी उम्मीद में उन्होंने 17 नगर निगमों में 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की बात तो लखनऊ में उनका प्रचार मेट्रो तक सीमित रहा। गोरखपुर एवं सहारनपुर वह जरूर गये, पर रस्म अदायगी के तौर पर। क्योंकि वह पहले चरण के चुनावों के बिल्कुल अंत में निकले।

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