रवींद्र प्रसाद मिश्र

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का तीसरा चरण संपन्न हो चुका है। ऐसे में यहां स्थिति भी काफी हद तक साफ हो चुकी है। बात वहीं निकलकर सामने आ रही है, जिसकी चर्चा चुनाव से पहले हो रही थी। तीनों चरणों के मतदान में भाजपा और सपा में कड़ी टक्कर के संकेत मिल रहे है। इसबार का विधानसभा चुनाव कुछ खास रहने वाला है। चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति की तस्वीर बदलने की उम्मीद है। क्योंकि इस बार 4 दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव पर है। यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे सीएम योगी आदित्यनाथ, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड़ा की राजनीतिक भविष्य को तय करेंगे। फिलहाल यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है, फिर भी बसपा और कांग्रेस की आई सीटें मायावती और प्रियंका गांधी के नेतृत्व क्षमता को दर्शाएंगे। मायावती और प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने सरकार बनाने की नहीं पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है।

प्रदेश की सत्ता संभाल चुके अखिलेश यादव जो अब समाजवादी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं उनके सामने खुद को साबित करने की चुनौती है, वहीं गोरखपुर से लगातार सांसद चुने जाने की हैट्रिक लगाने मुख्यमंत्री के सामने दोबारा सत्ता में आने की चुनौती है। ऐसे में अगर योगी आदित्यनाथ अगर दोबार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं तो उनका कद और बढ़ जाएगा। माना जा रहा है कि इस जीत के बाद केंद्र की राजनीति करने के लिए उनका रास्ता प्रशस्त हो जाएगा। हालांकि पार्टी अभी उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। वोटिंग के आंकड़ों को देखें तो समाजवादी पार्टी बेहतर प्रदर्शन भी कर रही है। लेकिन अगर बात की जाए सत्ता हासिल करने की, तो बीजेपी के मुकाबले सपा पीछे नजर आ रही है।

चुनाव से पहले सपा के पक्ष में जो माहौल बना हुआ था, टिकट बंटवारे और चुनाव के दौरान पार्टी नेताओं के दबंगई वाले भाषण ने जनता को एकबार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह नई नहीं बल्कि वही सपा है, जिसपर गुंडों की पार्टी होने का तमगा लगा है। सपा ने नाहिद हसन और जेल में बंद आजम खान को टिकट देकर यह साबित कर दिया कि चेहरा बदलने से पार्टी की सोच नहीं बदल सकती।

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फिलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद को बेहतर शासक साबित कर चुके हैं, तभी तो बीजेपी इसबार यूपी विधानसभा का चुनाव योगी आदित्यनाथ के नाम पर लड़ रही है। चुनाव में जहां पार्टी सत्ता में आने पर क्या करेगी मुद्दा हुआ करता था, वहीं भाजपा पहले की सरकारों में क्या होता था और योगी राज में क्या हुआ इस मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। राजनीति के क्षेत्र में यह बहुत बड़ा परिवर्तन है। इतना ही नहीं क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, रालोद जिनका वजूद जातीय समीकरण पर टिका था, वह भी हिल चुका है। वहीं अगर इस बार सपा सत्ता से बाहर होती है तो पार्टी के अंदर का यादववाद का काकश भी टूटेगा। क्योंकि पांच साल इंतजार यादववाद पर भी भारी पड़ रहा है।

वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद को बेहतर साबित करने के लिए पार्टी के सभी निर्णय अपने हाथों में ले चुके हैं। समाजवादी पार्टी पर लग रहे परिवारवाद के आरोपों को ध्यान में रखते हुए इस बार उन्होंने परिवार के लोगों को चुनाव लड़ने से दूर भी रखा। लेकिन अपराधियों से सपा का मोहपाश अभी भी दिख रहा है। मुख्तिार अंसारी के बेटे ने जिस तरह मंच से अधिकारियों को धमकी देते हुए कहा चुका है कि अखिलेश भैया से उसकी बात हो गई है कि सरकार बनने पर जबतक अधिकारियों से हिसाब किताब नहीं कर लिया जाता किसी का ट्रांसफर पोस्टिंग नहीं होगी। इतने आक्रामक बयान पर अखिलेश की चुप्पी यह बता रही है कि सपा बदले की आग में कितना जल रही है। अखिलेश को यह सोचना होगा कि राजनीति जनता की सेवा के लिए है, बदला लेने के लिए नहीं। क्योंकि जनता अगर अदला लेने पर आ गई तो ऐसे नेताओं को कही पनाह नहीं मिलेगी।

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