रविंद्र प्रसाद मिश्र

लखनऊ: राजनीति में सच ही कहा गया है कि यहां कोई किसी का सगा नहीं होता। यहां दोस्ती और दुश्मनी दोनों अवसर पर निर्भर करते हैं। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की राजनीति गरमाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का इस बार दांव उल्टा पड़ गया है। यूपी की राजनीति में देखा जाए तो स्वामी प्रसाद मौर्य सत्ता के ‘स्वामी’ रहे हैं। प्रदेश में जिसकी सरकार बनी स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी बदलकर उसमें शामिल होने में देर नहीं लगाई। इस बार भी उन्होंने चुनाव से ऐन वक्त पहले बीजेपी से इस्तीफा देकर सपा का दामन थामकर सबको चौका दिया। प्रदेश की राजनीति में बड़ा चेहरा बन चुके स्वामी को भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनका एक गलत फैसला उन्हें अर्श से फर्श पर ला देगी। इस बार उन्होंने पार्टी बदलने में जल्दबाजी व गलती दोनों कर दी। नतीजा जहां वह अपनी सीट नहीं निकाल पाए, वहीं समाजवादी पार्टी गठबंधन भी सत्ता से दूर चली गई है।

403 विधानसभा सीटों में समाजवादी पार्टी को महज 111 सीटें हासिल हुई है, यह स्थिति तब है तक प्रदेश में सपा की लहर थी। दलबदलू और अवसरवादी नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद इस बड़ी चूक कर बैठे जिसके चलते न तो वह पार्टी के रह गए और न ही जनता ने उन्हें स्वीकार किया। नतीजा, उन्हें फाजिलनगर सीट से बुरी तरह का हार का समना करना पड़ा है। स्वामी प्रसाद मौर्य 26 वर्षों से यूपी विधानसभा के सदस्य चुने जाते रहे हैं। प्रदेश की राजनीति में उनका अलग स्थान हुआ करता था, लेकिन एक गलती ने उन्हें प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर ला दिया है।

दल बदलने में माहिर स्वामी प्रसाद मौर्य ने वर्ष 2016 में मायावती को धोखा देते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था। उस वक्त प्रदेश में बीजेपी की आंधी थी। वर्ष 2017 में बीजेपी ने उन्हें पडरौना से उम्मीदवार बनाया और वह चुनाव जीते भी। इस सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य वर्ष 2007 से लगातार चुनाव लड़ते और जीतते आए। बीजेपी छोड़ने के बाद उनकी यह सीट खतरे में आ गई। यहां उनकी हार को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने उन्हें फाजिल नगर मैदान में उतारा। सत्ता के साथ रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य से नाराज जनता ने इस बार उन्हें नकार दिया और वह चुनाव बुरी तरह से हार गए हैं।

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इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य एक समय था जब मायावती के सबसे करीबी माने जाते थे। उन्हें अंबेडकरवादी राजनीति के बड़े चेहरे के रूप में माना गया। 2 जनवरी, 1954 में प्रतापगढ़ में जन्में स्वामी प्रसाद मौर्य पहली बार अक्टूबर, 1996 में दलमऊ विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर यूपी विधानसभा पहुंचे थे।

बीजेपी छोड़ने के बाद इन नेताओं की समाप्त हुई राजनीति

राजनीति में एक दल से दूसरे दल में नेताओं का आना जाना लगा रहता है। अक्सर नेता खुद के लाभ के चलते पाला बदलते हैं, लेकिन पाला बदलने के बाद वह इसके वह न सिर्फ पार्टी नेतृत्व को जिम्मेदार ठहरात है, बल्कि पार्टी की नीतियों पर सवाल उठाने लगते हैं। मायावती की करीबी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा छोड़ने के बाद मायावती पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। इतना ही नहीं इस बार बीजेपी छोड़ने पर उन्होंने सीएम योगी पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए सांप और नेवला का उदाहरण देकर कटाक्ष भी किया था। बता दें कि बीजेपी को कोसने वाले उदित राज, शत्रुघ्न सिन्हा, स्वामी प्रसाद मौर्य सरीखे कई ऐसे दिग्गज हुए, जिनके पार्टी छोड़ते ही राजनीति में उनका वजूद ही खत्म हो गया।

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