प्रकाश सिंह

गोंडा: सपा के पक्ष में मजबूत लहर के बावजूद भी पार्टी का सत्ता से बाहर होना काफी शर्मनाक है। 403 विधानसभा सीटों में से 111 पर सिमट जाना वास्तव में सोचने वाली बात है। इसके लिए जहां पार्टी नेतृत्व जिम्मेदार है, वहीं सपा नेताओं की हरकतों ने राज्य में बनती हुई सपा की सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। गोंडा में मिले सपा की करारी हार की वजह यहां के पुराने दिग्गज नेता हैं। करनैलगंज विधानसभा सीट पर सपा प्रत्याशी योगेश प्रताप सिंह ने आराजकता का जो नंगा नाच किया वह लोकतंत्र के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। बीजेपी प्रत्याशी समर्थक परिवार के साथ उन्होंने घर में घुस कर न सिर्फ मारपीट की बल्कि महिलाओं के साथ भी अभद्रता की। मतदान के एक दिन पहले उन्होंने यहां कि जनता को यह मता दिया कि यह नई नहीं वही पुरानी सपा जिस पर गुंडों की पार्टी होने का आरोप लगते आ रहे हैं। नतीजा सबके सामने है, सत्ता विरोधी लहर के बावजूद बीजेपी प्रत्याशी की इस सीट पर शानदार जीत हुई है।

दो घरानों से बाहर निकली करनैलगंज की राजनीति

गौरतलब है कि करनैलगंज विधानसभा सीट पर दशकों से दो परिवारों का कब्जा रहा है, जिसमें एक बीजेपी के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भइया और दूसरा सपा प्रत्याशी रहे योगेश प्रताप सिंह का घराना है। यहां की राजनीति अब तक इन्हीं दो परिवारों में सिमट कर रह गई थी। बीजेपी ने इस बार अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भइया का जैसे ही टिकट काटा दोनों परिवार एक हो गए। वह यह भूल गए कि जनता यह सब देख रही है। जो नेता कल तक एक दूसरे की कमियां गिनाकर जनता को गुमराह कर रहे थे, वहीं आज जनता के सामने दूसरा विकल्प देखते ही एक हो गए। योगेश प्रताप सिंह की गुंडई से आजीज जनता इस बार उनकी चालबाजी का जवाब देने का मन बना लिया। सपा के पक्ष में रुझान के बावजूद जनता ने बीजेपी के नए प्रत्याशी पर विश्वास जताया और अपना नेता चुना।

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हराने में हार गए सब

बीजेपी प्रत्याशी को हराने के लिए सपा प्रत्याशी योगेश प्रताप ने सारे दांव आजमा डाले। गुंडई के बदौलत जनता को धमकाने के साथ बीजेपी के नेताओं को तोड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लंबे समय से बीजेपी से जुड़े दिग्विजय सिंह व भूपेंद्र सिंह को सपा में शामिल कराकर जनता को यह संदेश देने की कोशिश की कि बीजेपी के नेता उनके साथ हैं। लेकिन नतीजा जनता को देना था। करनैलगंज की जनता की तरफ से दिए गए जनादेश ने इन अवसरवादी और दलबदलू नेताओं की राजनीति को नकार दिया। अब ऐसे नेता करनैलगंज की राजनीति में हाशिए पर चले गए हैं।

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