प्रकाश सिंह

Swami Prasad Maurya: राजनीति में कोई भी बयान अनावश्यक नहीं होते। नेताओं के बयान के पीछे पार्टी की रणनीति होती है। राजनीति में प्रयोग होते रहते हैं। कभी-कभी पार्टियों को इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) इन दिनों अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। उनके बयानों से सपा जहां एक तरफ दूरी बना रही है, वहीं उनको ऐसी बयानबाजी करने से रोक भी नहीं रही है। वैसे तो सपा (Samajwadi Party) के निशाने पर हमेशा हिंदुत्व रहा है, शायद यही वजह है कि जनता के बीच सपा की छवि हिंदू विरोधी रही है। वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय राजनीति मंw आए बदलाव ने जाति, धर्म, मजहब और परिवारवाद की राजनीति करने वालों को न सिर्फ सत्ता से बाहर कर दिया बल्कि उनके वजूद को खतरे में ला दिया।

सत्ता की छटपटाहट में कुछ विपक्षी दलों के नेताओं ने ईवीएम के साथ देश की संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर सवाल उठाने में भी कोई संकोच नहीं किया। जबकि उनके इन सवालों को कोई आधार नहीं रहा। हालांकि देश की समझदार जनता ने ऐसे दलों और नेताओं को चुनाव में इसका माकूल जवाब भी दिया। अब जब लोकसभा चुनाव 2024 करीब है, तब समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) एकबार फिर अपने चिरपरिचित पुराने अंदाज में दिखने लगी है। उस बार उसका हथियार आजम खान के जगह स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) बनते दिख रहे हैं। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में एक दौर था जब आजम खान को बदजुबानी के लिए जाना जाता था। वक्त बदला तो सपा नेता बदजुबानी तो दूर आज वोट देने लायक नहीं रह गए हैं।

विवादों के बीच अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर यह साफ कर दिया किया पार्टी की तरफ से दलितों का नेतृत्व स्वामी प्रसाद मौर्य करेंगे। बाकी वह इन दिनों खुद को शूद्र बताकर दोहरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। खुद को शूद्र कहकर एक तरफ जहां पिछड़ों में वह पैठ मजबूत करने की राजनीति कर रहे हैं, वहीं बीजेपी को शूद्र बताने का षडयंत्र भी रच रहे हैं।

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की चुप्पी बता रही साजिश

स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के विवादित बयानों पर समाजवादी पार्टी की चुप्पी बता रही है कि सपा इस बार लोकसभा 2024 का चुनाव हिंदुत्व बनाम दलित करने की कोशिश कर रही है। इसको करने के लिए उसने पिछड़ों का नेतृत्व करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को चुना है। स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी के लिए कितने मुफीद साबित होंगे यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन उनका बयान सामाजिक ताने बाने को तोड़ने का काम कर रहा है। वहीं सोशल मीडिया पर स्वामी के समर्थक और उनके बयान से आहत लोग जिस तरह भिड़ते नजर आ रहे हैं, उससे समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थिति भयावह हो सकती है।

धर्म को गलत साबित बताने की नाकाम कोशिश

हिंदू धर्म से ताल्लुक रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य उसी धर्म व मजहब को गलत साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। दलितों व पिछड़ों के वह पहले नेता नहीं है तो हिंदू धर्म पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उनसे पहले भी कई नेता ऐसे हुए हो जो हिंदू धर्म के खिलाफ जहर उगल कर राजनीतिक पहचान पाई है। जनता के बीच जनाधार खो चुके स्वामी प्रसाद मौर्य सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए हिंदू धर्म और हिंदू धर्माचार्यों को चुना है। मगर हिंदू धर्म की सहजता है कि वह चाहे धर्म का माने या फिर इसी तरह की गाली दें। उन्हें तब तक हिंदू माना जाता रहेगा, जबतक वह इस्लाम कबूल नहीं कर लेते। फिलहाल उनके इस बयान से समाज में नफरत फैल रही है, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ सकता है।

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रामचरितमानस (Ramcharitmanas Row) पर टिप्पणी से शुरू हुआ स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान ब्राह्मणों से होते हुए हिंदू धर्माचार्यों तक पहुंच गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का तर्क है कि जो उनका गला काटने के लिए इनाम की बात कर रहे हैं, वह किसी आतंकी से कम नहीं हैं। उन्हें समझना होगा उनका इशारा जिस धर्म की तरफ है, उस पर अगर उन्होंने इस तरह की टिप्पणी की होती, तो शायद वह अब तक इस तरह की बयानबाजी करते नजर न आते।

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